कुशाल सिंह दहिया को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे – हरपाल जटराणा
नई दिल्ली। भारत पर लगभग 700 वर्षों तक मुगलो ने शासन किया था, और हिंदुत्व की रक्षा करने के लिए गुरु तेग बहादुर की शहादत को सभी नमन करते हैं और उनकी शहादत से जुड़ा बहुत बड़ा इतिहास सोनीपत के एक गांव से जुड़ा हुआ है। शहीद और क्रांतिकारियों के लिए कार्य कर रहे हरपाल सिंह जटराणा कहते है जिन्होंने गुरु तेग बहादुर के शीश को सुरक्षित करने के लिए अपना शीश कटा दिया था। उस महान बलिदानी का नाम था कुशाल सिंह दहिया। कहा जाता है जब औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का कत्ल करने के बाद भी उनके पार्थिव शरीर के कई टुकड़े करवा कर अलग-अलग स्थान पर ले जाने के लिए कहा था, लेकिन शायद ईश्वर को यह मंजूर नहीं था। उस वक्त तेज आंधी और बारिश आने के कारण से उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी और इस दौरान गुरु तेग बहादुर के कुछ शिष्य उनके पार्थिक शरीर को वहां से ले जाने में कामयाब हुए और एक शिष्य उनके धड़ को अपने घर रखकर घर को आग लगा दी और दूसरे शिष्य उनके शीश को लेकर आनंदपुर साहिब की तरफ चल दिए, लेकिन औरंगजेब को यह कतई मंजूर नहीं था की गुरु तेग बहादुर का शरीर यहां से कोई ले जाए। उसने अपनी सेना को आदेश देकर इसका प्रयास भी किया, लेकिन तब तक क्रांतिकारी जैता सिंह सोनीपत के नजदीक एक गांव में पहुंच चुके थे और गांव वालों ने जेता सिंह का साथ देने का प्रण भी ले लिया था, लेकिन वहां पर एक अनोखी घटना घटी जिसने क्रांतिकारी इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। गांव के रहने वाले कुशाल सिंह दहिया ने कहा कि मैं गुरु तेग बहादुर के पवित्र शीश की रक्षा करने के लिए अपना शीश देने के लिए तैयार हूं और उन्होंने ऐसा किया भी, जिससे औरंगजेब की सेना को कुशाल सिंह का शीश दे दिया गया और गुरु तेग बहादुर का शिश आनंदपुर साहिब पहुंच गया और उस सोनीपत के गांव का नाम बडखालसा हो गया। हरपाल सिंह जटराणा कहते हैं कि जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी उस महान क्रांतिकारी शहीद कुशाल सिंह दहिया को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। इस पर क्षेत्र वासियों को अवश्य विचार करना चाहिए और जिस सम्मान पर शहीद कुशाल सिंह का हक बनता है, उसे दिलवाने का प्रयास करना चाहिए। यही देश के शहीदों को देशवासियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।