कमजोर वृद्धि और बदले वैश्विक परिवेश में चुनौतीपूर्ण होगा 2025-26 का बजट
(महाबीर सिंह – वरिष्ठ पत्रकार)
देश दुनिया में बदले आर्थिक हालात को देखते हुये नरेन्द्र मोदी सरकार का वित्त वर्ष 2025-26 का बजट काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है। कमजोर आर्थिक वृद्धि, डालर के मुकाबले रूपये में गिरावट और निर्यात बढ़ाने की चुनौतियों के बीच वित्त एवं कार्पोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी 2025 को नया बजट पेश करेंगी।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका की व्यापार नीति में बदलाव निश्चित माना जा रहा है। शेयर बाजार पर इसका असर पिछले साल अक्टूबर – नवंबर से ही दिख रहा है। विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों मेें लगातार बिकवाली कर रहे हैं जिससे डालर के मुकाबले रूपया गिर रहा है। इस वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.4 प्रतिशत रहने का अग्रिम अनुमान आया है। यह आंकड़ा चार वर्ष में सबसे कम है। खुदरा महंगाई का आंकड़ा 5 प्रतिशत से उपर बना हुआ है। दिसंबर में यह 5.22 प्रतिशत रहा।
इन परिस्थितियों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का काम चुनौतीपूर्ण हो गया है। सबसे बड़ी चुनौती देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने की होगी। विदेशी निवेशक यहां निवेश बढ़ायें, इसके लिये बजट में जरूरी कदम उठाने होंगे। विदेश व्यापार के मोर्चे पर निर्यात बढ़ाने की बड़ी चुनौती है। हमारे वस्तु निर्यात के मुकाबले आयात काफी अधिक होता है। आयात को तर्कसंगत बनाने के विकल्प तलाशने होंगे। आंकड़ों की यदि बात की जाये तो चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से दिसंबर तक कुल वस्तु निर्यात एक साल पहले के मुकाबले 1.6 प्रतिशत बढ़कर 321.71 अरब डालर रहा है जबकि इसी अवधि में आयात 5.1 प्रतिशत बढ़कर 532.48 अरब डालर तक पहुंच गया। यानी वस्तु व्यापार में 210 अरब डालर का घाटा है। सेवा निर्यात इसकी कितनी भरपाई कर पायेगा यह समय बतायेगा। अक्टूबर तक सेवा निर्यात 216 अरब डालर और आयात 114 अरब डालर रहा था।
नरेन्द्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का यह बजट ऐसे समय पेश होने जा रहा है जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार चुनाव जीतकर अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं। डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर अनिश्चतता है, वह कब क्या करेंगे अनुमान नहीं लगाया जा सकता। वह ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे के साथ सत्ता में लौटे हैं। वह दूसरों की बेहतरी के लिये अमेरिका का पैसा खर्च करने के पक्ष में नहीं है, बल्कि वह चाहते हैं कि जो अमेरिका का साथ चाहता है वह किसी न किसी रूप में अमेरिका को मजबूत बनाने के लिये आगे आये। उन्होंने उंचे आयात शुल्क की वसूली के लिये बाह्य राजस्व विभाग बनाने की घोषणा की है। चीन और अमेरिका, भारत के सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है, ऐसे में भारत पर अमेरिका की बदली नीतियों का असर तो पड़ेगा ही। अमेरिका भारत से दवायें, चिकित्सा उपकरण, हीरा, आभूषण, कृषि और इंजीनियरिंग आदि उत्पादों का आयात करता है। वहीं, भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में खाद्य तेल, पेट्रोलियम, लौहा, इस्पात, प्लास्टिक और इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक उपकरण, कीमती पत्थर आदि का आयात करता है। हालांकि, अमेरिका और चीन के बीच यदि व्यापार युद्ध तेज होता है तो भारतीय निर्यात को कुछ अवसर मिल सकता है।
सकल घरेलू अनुपात (जीडीपी) की वृद्धि धीमी पड़ी है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह 5.4 प्रतिशत रही जो पिछली सात तिमाहियों में सबसे कम है। जबकि एक साल पहले इसी तिमाही में यह 8.1 प्रतिशत रही थी। एनएसओ के अग्रिम अनुमान के मुताबिक पूरे साल की आर्थिक वृद्धि 6.4 प्रतिशत रह सकती है। जीडीपी वृद्धि को फिर से सात से आठ प्रतिशत की रफ्तार से आगे बढ़ाना वित्त मंत्री के समक्ष बड़ी चुनौती होगी। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह अस्थाई दौर है, आम चुनाव और कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों के कारण वृद्धि धीमी पड़ी है। भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर से अपनी चाल पकड़ेगी। सरकार को बजट में अर्थव्यवस्था में खपत बढ़ाने के उपाय करने होंगे। सार्वजनिक निवेश के साथ ही निजी निवेश बढ़ना चाहिये। माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी दरों को यदि और तर्कसंगत बनाया जाता है तो विभिन्न उत्पादों की मांग बढ़ेगी। हालांकि, विनिर्माण और उत्पादों के मामले में पर्यावरण का भी ध्यान रखना होगा। पर्यावरण अनुकूल उत्पाद और उत्पादन प्रक्रिया को अपनाना होगा। रोजगार और कौशल बढ़ाने के लिये पिछले बजट में की गई घोषणाओं को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाना होगा।
मध्यम वर्ग को प्रोत्साहन देते हुये आयकर स्लैब में बदलाव किया जा सकता है। पिछले बजट में वित्त मंत्री ने वेतनभोगी करदाताओं के लिये नई आयकर व्यवस्था में मानक कटौती को बढ़ाकर 75,000 रूप्ये और पेंशनभोगियों के लिये पारिवारिक पेंशन पर 25,000 रूपये कर दिया था। कुल मिलाकर सात लाख रूपये तक की आय कर मुक्त कर दी गई। कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि वेतनभोगियों के लिये 10 लाख रूपये तक की आय को कर मुक्त कर देना चाहिये। इससे नौकरी पेशा वर्ग के हाथ में अधिक पैसा बचेगा और अर्थव्यवस्था में मांग और खपत बढ़ेगी। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि सोने पर आयात शुल्क को भी तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये। पिछले बजट में सोना, चांदी पर आयांत शुल्क घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया गया था। इससे कीमती धातुओं का आयात तेजी से बढ़ा है जिसका असर व्यापार घाटे पर दिखता है।
मई 2014 में सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार का यह 12वां बजट होगा। इसके अलावा, फरवरी 2019 और 2024 में दो अंतरिम बजट भी पेश किये गये। इन्हें मिलाकर यह 14वां बजट होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरिम बजट सहित लगातार आठवां बजट पेश करेंगी जो कि एक रिकार्ड होगा। जून 2024 में तीसरे कार्यकाल में सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार का यह दूसरा बजट होगा। जुलाई 2024 में वित्त वर्ष 2024-25 का पूर्ण बजट पेश किया गया था। यह बजट कुल 48.21 लाख करोड़ रूपये का अनुमान था। इसमें 37 लाख करोड़ रूपये राजस्व व्यय और 11 लाख करोड़ रूपये पूंजी व्यय अनुमानित था। विशेषज्ञों का मानना है कि पूंजी व्यय के मोर्चे पर बजट अनुमानों के मुकाबले खर्च कुछ कम रह सकता है। वहीं बेहतर राजस्व प्राप्ति के चलते चालू वित्त वर्ष का वित्तीय घाटा 4.9 प्रतिशत बजट अनुमान के मुकाबले 4.8 प्रतिशत अथवा इससे भी कम रह सकता है।