राष्ट्रीय

उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली धामी सरकार से मांग की शीघ्र गढ़वाली ,जौनसारी कुमाऊनी ,बोली को विधानसभा में सत्र में रखकर केंद्र सरकार को भेजें

देहरादून,उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली द्वारा गढ़वाली कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु लगातार प्रयास किया जा रहा है। इसी कड़ी में 30 जून 2023 व 1 जुलाई, 2023 को देहरादून प्रवास के दौरान मंच के एक प्रतिनिधिमंडल ने देहरादून में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भाषा मंत्री सुबोध उनियाल , उत्तरखण्ड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व विधायक प्रीतम सिंह तथा डोईवाला विधायक बृजभूषण गैरोला तथा बरिष्ठ आंदोलनकारी, पूर्व राज्यमंत्री राजेन्द्र शाह समेत कई विधायकों से देहरादून में मुलाकात करके मांग पत्र सौंपा, जिसमें उत्तरराखण्ड सरकार से मांग की गई कि सरकार आगामी विधानसभा सत्र में गढ़वाली कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव सदन चर्चा के बाद पास करके केंद्र सरकार को भेजा जाए। जिसमें केन्द्र सरकार से मांग की जाए कि शीघ्र गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।

उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने बताया कि मुख्यमंत्री व भाषा मंत्री ने हमारी मांग पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम इस दिशा में अवश्य पहल करेंगे। इस दिशा में उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली काफी समय से काम कर रहा है। अभी तक मंच केंद्र सरकार को 4 चार ज्ञापन सौंप चूका है।

भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि गढ़वाली कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु हमारी सरकार हर संभव पहल करेगी। ज्ञातव्य हो कि डाक्टर विनोद बछेती के संरक्षण में उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली लगातार भाषाई सरोकारों पर काम कर रहा है।

मुख्यमंत्री एवं भाषा मंत्री से मुलाकात करने वाले प्रातिनिधि मण्डल में उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी, अनिल कुमार पंत, जयपाल सिंह रावत, दर्शन सिंह रावत, जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, सुशील बुडाकोटी आदि शामिल थे।

प्रतिनिधि मण्डल ने देहरादून में अनेकों साहित्यकारों जिनमें रमा़कात बेंजवाल , मदन मोहन डुकलाण, लोकेश नवानी, दिनेश शास्त्री, डॉक्टर नीता कुकरेती, बीना बेंजवाल, गणेश खुगशाल गणी, आशीष सुन्दरियाल, आदि से भी मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि उत्तराखण्ड में सभी साहित्यकार व भाषा प्रेमी इस मांग को और अधिक मुखर होकर उठायें। सभी साहित्यकार गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु सहमत हैं और आशा की जानी चाहिए कि आगामी समय में सरकार द्वारा गढ़वाली कुमाऊनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु निर्णायक पहल की जाएगी।

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