दिल्लीराष्ट्रीय

रोजगार और वृद्धि पर फोकस के साथ सहयोगियों को साधने वाला बजट

लेखक महाबीर सिंह

वरिष्ठ पत्रकार

 

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट 23 जुलाई 2024 को पेश कर दिया गया है। बजट को लेकर कई तरह की बातें सामने आई हैं। विपक्ष इस बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज दिये जाने की वजह से जहां इसे कुर्सी बचाने वाला बजट बता रहा है, वहीं सरकार इसे रोजगार बढ़ाने वाला और आर्थिक वृद्धि को गति देने वाला बजट बता रही है। कुल 48.21 लाख करोड़ रूपये के इस बजट में 11 लाख 11 हजार 111 करोड़ रूपये (जीडीपी का 3.4 प्रतिशत) पूंजी खर्च के लिये प्रावधान किया गया है। राज्यों को भी बुनियादी ढांचे में निवेश के लिये डेढ़ लाख करोड़ रूपये के दीर्घकालिक ब्याज मुक्त कर्ज का प्रावधान रखा गया है जो कि अंतरिम बजट जैसा ही है।

उद्योगपतियों ने बजट को आर्थिक लिहाज से संतुलित बताया जबकि विशेषज्ञ और जानकार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस बजट को वित्तीय रूप से फिट और राजनीतिक सूझबूझ वाला बता रहे हैं। वित्तीय तौर पर इस लिये फिट बताया जा रहा है कि 2024-25 में राजकोषीय घाटे के 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान इसमें रखा गया है, जो कि 2023-24 के 5.6 प्रतिशत से बड़ी कमी लाने वाला है। राजकोषीय घाटा जितना कम होता है उतना ही सरकार की बाजार उधारी कम रहती है और परिणामस्वरूप ब्याज दर और महंगाई पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

बजट में मध्यम वर्ग को राहत देते हुये नई कर प्रणाली के टैक्स स्लैब में कुछ बदलाव किये गये हैं। पुरानी व्यवस्था का कोई जिक्र नहीं यानी उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। नये टैक्स स्लैब में तीन लाख रूपये तक की आय को पहले की तरह कर मुक्त रखा गया और उसके बाद तीन से छह लाख रूपये के स्लैब को तीन से सात लाख रूपये और छह से नौ लाख रूपये के स्लैब को सात से दस लाख रूपये कर दिया गया है। इनमें क्रमशः पांच और 10 प्रतिशत की दर से कर देय होगा। इसके बाद के स्लैब में कोई बदलाव नहीं है। नई कर प्रणाली में मानक कटौती को भी 50 हजार रूपये से बढ़ाकर 75,000 रूपये और पेंशनभोगियों के लिये 15,000 रूपये से बढ़ाकर 25,000 करोड़ रूपये कर दिया गया है। कहा गया है कि इससे वेतनभोगी कर्मचारियों को 17,500 रूपये तक की बचत होगी। कुल मिलाकर विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आपकी केवल वेतन आय है तो नई कर प्रणाली में 7.75 लाख रूपये पर कोई कर नहीं देना होगा। जबकि पुरानी कर प्रणाली में पांच लाख रूपये तक की आय ही कर मुक्त है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आयकर रिटर्न भरने वालों के साथ ही नई कर प्रणाली को अपनाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। निर्धारण वर्ष 2024- 25 के लिये 31 जुलाई 2024 तक कुल 7.28 करोड़ आईटीआर भरी गई जिनमें 5.27 करोड ने नई कर प्रणाली के तहत रिटर्न दाखिल की है। यानी 72 प्रतिशत करदाताओं को नई कर प्रणाली पसंद आई जबकि केवल 28 प्रतिशत ही पुरानी आयकर व्यवस्था में रह गये हैं।

बजट में पूंजीगत लाभकर को लेकर भी काफी चर्चा है। सरकार का दावा है कि वह विभिन्न कर व्यवस्थाओं को सरल बनाया गया है। वित्तीय संपत्तियों पर अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर अब 20 प्रतिशत की दर से कर लगेगा, वहीं पूंजीगत लाभकर छूट सीमा को एक लाख से बढ़ाकर सवा लाख रूपये कर दिया गया है। यानी सवा लाख रूपये तक का पूंजीगत लाभ होने पर कर नहीं लगेगा उससे ज्यादा पर ही लगेगा। जबकि दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) को सभी वित्तीय और गैर-वित्तीय संपत्तियों पर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है। इस व्यवस्था से अब शेयर बाजारों में सूचीबद्ध और गैर-सूचीबद्ध दोनों तरह के शेयरों पर समान एलटीसीजी लगेगा। इससे स्टार्टअप कंपनियों में पैसा लगाने वालों के लिये अपना निवेश निकालना आसान होगा। रीएल एस्टेट संपत्तियों पर पूंजीगत लाभ के मामले में बड़ा बदलाव किया गया है। रीएल एस्टेट संपत्तियों पर एलटीसीजी की गणना करते हुये अब महंगाई लाभ नहीं मिलेगा। इससे प्रापर्टी कारोबार करने वालों की चिंता बढ़ी है। हालांकि, सरकार का कहना है कि रीएल एस्टेट पर कर व्यवस्था को सरल बनाया गया है। इस पर एलटीसीजी को 20 से घटाकर 12.5 प्रतिशत किया गया है लेकिन दूसरी तरफ महंगाई संबंधी गणना अब इसमें नहीं होगी। विशेषज्ञ मानते हैं इससे कर बोझ बढ़ेगा। वित्त मंत्री ने हालांकि, यह भी स्पष्ट किया है कि 1 अप्रैल 2001 से पहले अधिग्रहीत संपत्तियों पर यह व्यवस्था लागू नहीं होगी। दरअसल, जो बदलाव किया गया है उससे पूंजीगत लाभकर राशि ज्यादा होगी, पर कर की दर कम की गई हैै। वहीं पहले महंगाई के साथ गणना होने पर पूंजीगत लाभ राशि कम होती पर 20 प्रतिशत की उंची दर से कर लगता है। तो यह परिस्थिति विशेष पर निर्भर करेगा कि कहां किसे लाभ मिलता है। इस तरह की भी खबरें हैं कि निवेशकों ने सरकार से फिलहाल दोनों व्यवस्थाओं को लागू रखने का आग्रह किया है। हो सकता है कि वित्त विधेयक में इस दिशा में कोई कदम उठाया जाये। वहीं शेयर बाजार में वायदा और विकल्प कारोबार पर प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) को बढ़ाकर क्रमशः 0.02 प्रतिशत और 0.1 प्रतिशत कर दिया गया है। शेयर बायबैंक में अब प्राप्तकर्ता को मिलने वाली रकम कर योग्य होगी। पहले कंपनी शेयरों की बायबैंक पर कर का भुगतान करती थी लेकिन अब निवेशक को यह देने होंगे।

पिछले वित्त वर्ष में 8.2 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि और अनुमान से अधिक राजस्व प्राप्ति के साथ साथ रिजर्व बैंक से मिले 2.10 लाख करोड़ रूपये के बंपर लाभांश से भरे खजाने के बाद यह बजट पेश किया गया है। यही वजह है कि इसमें मोदी सरकार 3.0 में महत्वपूर्ण साझीदार तेलगू देशम और जनता दल (यूनाइटेड) शासित राज्यों क्रमशः आंध्र प्रदेश और बिहार को विकास कार्यों के लिये पैकेज दिये गये हैं। आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून के तहत राज्य को बहुपक्षीय विकास एजेंसियों के माध्यम से चालू वित्त वर्ष के दौरान 15,000 करोड़ रूपये की विशेष वित्तीय सहायता दी जायेगी। कुछ और विकास कार्यों में भी मदद की जायेगी। वहीं बिहार में बाढ़ प्रबंधन के लिये कोशी-मेची अंतरराज्यीय संपर्क योजना और अन्य योजनाओं के लिये 11,500 करोड़ रूपये की वित्तीय सहायता के अलावा विभिन्न पर्यटन स्थलों के विकास के लिये सड़क परियोजनाओं को बड़ी राशि आवंटित की गई है। कुल मिलाकर राज्य को करीब 60,000 करोड़ रूपये का वित्तीय पैकेज दिया गया है। असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में भूस्खलन, और बाढ़ प्रबंधन आदि कार्यों के लिये भी केन्द्र सरकार सहायता उपलब्ध करायेगी। ओडीशा के लिये भी मंदिरों, स्मारकों, वन्यजीव अभ्यारणों और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये विभिन्न विकास कार्यों के लिये सहायता उपलब्ध कराई जायेगी। कुल मिलाकर बजट में कई राज्यों में विकास कार्यों के लिये सहायता उपलब्ध कराने की घोषणा की गई है।


 

 

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