नई दिल्ली,। वीर चंद्रसिंह गढ़वाली की 127वी जयंती पर उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान ने अपना चौथा स्थापना दिवस आईटीओ स्थित राजेंद्र भवन के खचाखच भरे सभागार में उत्तराखंड के लोकगीतों व लोकनृत्यों के मंचन, उत्तराखंड की तीन विख्यात विभूतियो को सम्मानित कर व संस्थान की स्मारिका ‘वीरधरा’ का लोकार्पण कर हर्षोल्लाष के साथ मनाया।
संस्थान के कलाकारों द्वारा वंदना ‘कतुभोल कैलास’ के साथ ही आयोजन का श्री गणेश किया गया। ततपश्चात संस्थान के संरक्षक कुलदीप भंडारी, अध्यक्षा संयोगिता ध्यानी पंत व सचिव सुमित्रा किशोर ने कार्यक्रम का शुभारंभ सभागार में उपस्थित प्रबुद्ध जनो के अभिवादन व संस्थान के द्वारा विगत तीन वर्षों मे किए गए कार्यो व मिली सफलता पर सभी सहयोगियों को धन्यवाद देने के साथ-साथ आयोजन में स्मानित होने वाली तीनों विभूतियों के द्वारा किए गए अमिट विलक्षण कार्यो के बारे अवगत कराया। स्थापना दिवस का शुभारंभ द्वीप प्रज्वालित कर किया गया। दीप प्रज्वलित सतीश नोडियाल, कुलदीप भंडारी, अनिल पंत, गजेंद्र चौहान, एस के नेगी, हरि सेमवाल, हेम पंत, सच्चिदानंद शर्मा, महेंद्र लटवाल, चंद्रमोहन पपनै, सुषमा जुगरान ध्यानी, दर्शन सिंह रावत, पवन मैठाणी, विमला गढ़वाली, मुहब्बत सिंह राणा, मीना कंडवाल, जगदंबा थपलियाल, सतीश शर्मा, सुनील नेगी इत्यादि द्वारा किया गया।
आयोजन के मुख्य अतिथि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान मे कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने उत्तराखंड की ख्याति प्राप्त लोकगायिका रेखा धस्माना को गायन, देश के पहले वीडियो फिल्म निर्माण के क्षेत्र मे कैलाश द्विवेदी व रंगकर्म मे प्रसिद्ध रंगकर्मी प्यारी नेगी को मरणोपरांत वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली सम्मान से नवाजा। संस्थान की ओर से शॉल, स्मृति चिन्ह व पांच हजार एक सौ रुपया मुख्य अतिथि के हाथों सम्मान स्वरूप प्रत्येक विभूति को भेटस्वरूप प्रदान किया गया। स्व.प्यारी नेगी का सम्मान उनकी पुत्री लक्ष्मी शर्मा ने अपने परिवार के सदस्यों की उपस्थिति मे ग्रहण किया गया। उत्तराखंड फिल्म व नाट्य संस्थान के चौथे स्थापना दिवस पर मुख्य अतिथि हरीश रावत ने संस्थान की अध्यक्षा संयोगिता ध्यानी पंत व सभी सदस्यों व सभागार मे उपस्थित प्रबुद्ध जनो का आभार व्यक्त किया व जननायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली को उनके 127वे जन्म दिवस पर नमन कर देश की आजादी के लिए उनके द्वारा दिए योगदान व उनके कठिन जीवन संघर्ष का उल्लैख कर उन्हे ज्योति स्तम्भ की संज्ञा दी। उनके अदम्य साहस व सूझबूझ के द्वारा किए गए कार्यो को गौरवशाली बताया। हरीश रावत ने कहा जिन अग्रेजों के आगे कोई आवाज नही उठा सकता था इस वीर सैनिक ने बहादुरी का परिचय दिया। पठान स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इंकार किया। आदेश उल्लघन पर कारावास झेली। देश को मिली आजादी के बाद साधारण जीवन जिया। लोगो के बीच उनका मान सम्मान था। हरीश रावत ने कहा वे सदा उत्तराखंड के विकास के लिए चिंतित रहते थे। मै स्वयं इंदिरा जी की चिठ्ठी उन्हे सोपता था। वे सदा कहते थे मुझे कुछ नही चाहिये। उनका व्यक्तित्व बहुत ऊँचा था। उनमें त्याग की क्षमता थी। गांधी जी को चन्द्रसिंह गढ़वाली जैसे वीर सपूतो से अहिंसक आंदोलन चलाने मे बल मिला। हरीश रावत ने कहा चंद्र सिंह गढ़वाली हमारी धरोहर है। उत्तराखंड की उन्नति मे हरीश रावत ने अपने वक्तव्य मे चार आधार मुख्य बताए प्रकृति, संस्कृति, बुद्धिकौशल व जैव विविधता। उन्होंने कहा कि अगर ये चारो समीकरण एक हो जाऐंगे तो कोई भी उत्तराखंडी गरीब नही रहेगा। उन्होने कहा पलायन के लिए कोई मॉडल बचाने के लिए नही है। इस पहल को आगे बढाने हेतु छोटे गुणों का प्रयोग करना होगा, आगे आना होगा। हमारे अंचल के पहाड़ी मोटे खाद्यानों को विश्व खाद्द्य व विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पौष्टिक माना है। भांग के पेड को आईसीआर ने स्वास्थ के लिहाज से महत्ता दी है। यह कीमती पेड है। इससे साबुन, वस्त्र, लुगदी, व दवाई बनती है। बहुत से प्राकृतिक उत्पादों को संवर्धित करना है।
उन्होने कहा कि प्रत्येक उत्तराखंडी को हफ्ते मे दो दिन प्रवास मे अपने अंचल के खाद्य अनाजो का भोजन करना चाहिए। संस्कृति का विशुद्ध रूप रखने के लिए वहां के लोकजीवन से जुड़ना होगा। उसे अपनाए। हमारी संस्कृति हमारी चलती हुई पहचान है। हमारा शिल्प सबसे बेहतर है। स्टोन कारीगरी सुप्रसिद्ध है। खुशी के मौके पर वहां के गीत संगीत को जरूर गाए- बजाए। ऐसा करने से चंद्र सिंह गढ़वाली के बताए सच्चे रास्ते पर हम अपने आप को चलता हुआ पाऐंगे। यही उन्हे सच्ची श्रधांजलि भी होगी। हरीश रावत ने सभी सम्मान ग्रहण किए लोगो को बधाई व सभागार मे उपस्थित सभी श्रोताओं को नववर्ष की शुभकामनाऐ दी व आयोजित लोकगीतों व नृत्यो का लुफ्त उठाया। संस्थान के कलाकारों ने कृपाल सिंह रावत के संगीत निर्देशन व सावित्री छेत्री के नृत्य निर्देशन में उत्तराखंड के लोकगीत व नृत्य मंचित किए। नट गौरी रावत व नटी कुसुम चौहान के आंचलिक बोली मे व्यक्त संवादों के द्वारा हास्य अन्दाज मे लोकगीत व नृत्यो का रोचक प्रस्तुतिकरण श्रोताओं को बहुत भाया।
नृत्य गीत-
शेरू रे सुन्दर चौधरी….
हरीश मधुर का लोकगीत-
कैलै बजे मुरली, बेड़ा ऊंची नीची डाडूमा….
बसन्ती रूडी बोए…..
जौनसारी युगल नृत्य गीत-
ले फूली चला लपय्या…..
सम्मान प्राप्त रेखा धस्माना के तीन लोकगीत-
1- रैली जब तै सूर्य चंद्रमा, जब तै धरती माँ हरियाली।
तब तक तुमोर नाम रोल, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली।
2- ये दर्जी..मेरी आंगड़ी बने दे….
3-विदेश जोलों भंडारी झमको…..
नेपाली हास्य गीत-
मै नि ज्याडो नेपाल, रामरो रामरो यो गढ़वाल मा……
नृत्यगीत-
ओ विलमा, चाँदी को बटना
चंद्रकांता शर्मा लोकगीत-
तेरी पैली नजर मारि ग यै…
तेरी जवानी कै नजर लागि…..
कुसुम बिष्ट व महेंद्र रावत
नृत्य गीत-
झिलमिल झिलमिल…….
सभी लोकनृत्य व गीत श्रोताओं को बहुत भाए। सावित्री छेत्री व शोभा भट्ट का नृत्य निर्देशन प्रभावशाली था। हास्य गीतों मे धर्मेंद्र चौहान व कोमल राणा नेगी ने अपने हास्य हावभाव व नाटकीय नृत्य से दर्शको की खूब तालियां बटोरी। अन्य गायकों मे हरीश मधुर, महेंद्र रावत, चंद्रकांता शर्मा, कुसुम बिष्ट, सुरभि, वंदना शर्मा, लता बवाडी, अंजू भंडारी व अनु भंडारी ने अपने मधुर कंठ से सबको प्रभावित किया। नर्तकों मे जयपाल नेगी, धर्मेंद्र, पुष्कर, रघुवीर, कोमल नेगी, मनीषा भट्ट, कृतिका, मधुमिता, गीता बिष्ट व आरू ने नृत्य की विविध विधाओं में जलवा बिखेरा वाद्ययंत्रों मे हारमोनियम मे कृपाल सिंह रावत, की बोर्ड मे मोटी साह, ढोलक गोरे पन्त, तबला सुन्दर, पैड अरुण व बासुरी सतेंद्र नेगी ने सुरबद्ध सँगत देकर कार्यक्रम को सफल बनाया। कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व संस्थान के प्रशासक बी लाल शास्त्री की अनुपस्थिति मे उनका सन्देश कार्यक्रम संचालक ब्रजमोहन शर्मा ने पढ़ कर सुनाया, जिसमे सभी संस्थान के पदाधिकारियों व कलाकारों को कार्यक्रम आयोजन मे निष्ठां पूर्वक कार्य निभाने व कार्यक्रम की सफलता की कामना की गई थी। समस्त कार्यक्रम का संचालन ब्रजमोहन शर्मा ने निराले अंदाज मे बखूबी निभाया।
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