व्यंग विधा के अनूठे शिल्पी उर्मिल थपलियाल पंचतत्व मे विलीन
सी एम पपनैं
लखनऊ। आधुनिक रंगमंच पर नौटंकी से लेकर व्यंग तक, एक नया मुकाम हासिल करने और उसे पहचान दिलवाने वाले, सु-विख्यात वरिष्ठ रंगमंच निर्देशक, डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल का मंगलवार, 20 जुलाई 2021 की सांय 5.30 बजे, 79 वर्ष की उम्र में लखनऊ इंदिरानगर स्थित आवास पर, कैंसर की बीमारी से निधन की खबर सुन, लखनऊ का रंगमंच सूना हो गया था।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली सहित, मुंबई व देश के अन्य प्रदेशो के रंगमंच से जुडे रंगकर्मी शोक मे डूब गए थे। अंतिम समय मे, पत्नी बीना थपलियाल, बेटा रितेश व बेटी ऋतुन उनकी देखभाल कर रहे थे। 21 जुलाई दिन मे उनका अंतिम संस्कार भैसांकुंड शमशान घाट पर कर दिया गया। चिता को मुखाग्नि उनके पुत्र रितेश द्वारा दी गई।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ द्वारा, डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल के निधन की खबर सुन, श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए व्यक्त किया गया, ‘अपनी प्रतिभा के माध्यम से उर्मिल थपलियाल ने रंगमंच और साहित्य की दुनिया को स्मृद्ध किया। उनके निधन ने कला और साहित्य के क्षेत्र मे, एक खालीपन पैदा कर दिया है, जिसे भरना मुश्किल होगा।’
डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल का जन्म 2 जून, 1943 को पौड़ी गढ़वाल के खैड़ गांव में हुआ था। बाल्यकाल में ही वे देहरादून को पलायन कर गए थे। देहरादून मे ही उनकी शिक्षा पूर्ण हुई थी।उत्तराखंड मे मंचित होने वाली लोकनाट्य शैली की रामलीला का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा था।स्थानीय रामलीला में वे सीता का किरदार निभाते थे। रंगकर्म में जाने की प्रेरणा उन्हे यहीं से मिली थी।
आकाशवाणी में हिंदी और अंग्रेजी के प्रमुख समाचार वाचक रहे, डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल, सरकारी सेवा में, 1965 से सोहनलाल थपलियाल नाम से विख्यात रहे थे। आकाशवाणी के साथ-साथ वे लखनऊ के रंगकर्म से भी, जीवन के अंतिम समय तक जुडे रहे। 1972 लखनऊ मे स्थापित सु-विख्यात ‘दर्पण’ थियेटर ग्रुप के वे संस्थापक सदस्यों मे रहे। रंगकर्म के क्षितिज पर ही वे उर्मिल थपलियाल के नाम से लोकप्रिय हुए थे।
उत्तरप्रदेश की प्रमुख नाट्य विधा नौटंकी व स्वांग को नया रूप देने और उन्हे लोकप्रिय बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। बोलियों के रंगमंच पर पीएचडी, उत्साही और बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल को नौटंकी से लेकर व्यंग लेखन तक ही, महारथ हासिल नहीं थी, किसी भी नाट्य विधा के निर्देशन मे भी वे निपुण थे। व्यंग की मुहावरेदार भाषा के वे कुशल कलाकार थे। उनके व्यंग, दर्शकों व पाठकों को चमत्कृत करते थे। जो अन्यत्र कही नहीं दिखलाई देता था। आकाशवाणी मे भी, मंच की तर्ज पर नाटक रिकार्ड करवाने की परंपरा, उनके ही द्वारा शुरू की गई थी। नौटंकी व स्वांग विधाओ को रंगमंच से जोडने व पहचान दिलवाने वाले वे पहले रंगमंच निर्देशक थे। किसी भी नाटक के मंचन से पूर्व वे नाट्य गाथा, मंच व संगीत इत्यादि सभी पक्षों की बारीकियों पर मंथन करते थे। उक्त खूबिया ही, उनके नाटकों को सफल व यादगार बनाती थी।
नाट्य विधा की लगभग प्रत्येक शैली के करीब, 140 नाटकों का डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल द्वारा, एक किरदार व एक सफल नाट्य निर्देशक के रूप मे निर्वहन किया गया। हिंदी, अवधी, और गढ़वाली नाटकों के लिए विशेष रूप से वे जाने जाते थे।लोकबोली मे नौटंकियों की संगीतमय प्रस्तुति देने मे वे माहिर थे। उत्तरप्रदेश की प्रमुख नाट्य विधा, नौटंकी व स्वांग को नया रूप देने और लोकप्रिय बनाने मे उनका बड़ा योगदान रहा। डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल द्वारा, लखनऊ की ‘दर्पण’ नामक थियेटर ग्रुप के लिए, एक नाटककार के रूप मे दर्जनों नाटक लिखे तथा उनका निर्देशन किया। उनके द्वारा अंतिम निर्देशित नाटक ‘हे ब्रेख़्त’ 19 जनवरी, 2000 को मंचित किया गया था।
डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल द्वारा, रचित नौटंकी ‘हरिश चन्नर की लड़ाई’ देश के अनेक भागों में मंचित हुई। अन्य रचित व निर्देशित नाटको मे हयवदन, अबू हसन, हुइये वही राम रचि राखा, मुख्यमंत्री की सृष्टि, शहीदों ने लो जगाई जो, सूरज कहा से उगता है, आक्टोपस, कनुप्रिया, गोदान, किसी एक फूल का नाम लो, सूर्य की अंतिम किरण, गुफाए, यहूदी की बेटी, हनीमून, खूबसूरत बहू, कमला इत्यादि भी देश के विभिन्न रंगमंचो पर मंचित होने वाले नाटक रहे।
रंगमंच और रेडियो पर छाए रहने वाले, डॉ.उर्मिल कुमार थपलियाल के व्यंग और नाट्यशास्त्र के लेख, देश के प्रतिष्ठित अखबारो मे छपते रहते थे। बहुविधा का यह रंगकर्मी, नाट्य निर्देशक, नाटककार, व्यंगकार व कवि, रंगकर्म के क्षेत्र मे बृहद फलक पर विख्यात रहा। उर्मिल जी बेहद जीवंत व्यक्ति थे। उनकी आवाज में सबको अपना बना लेने का हुनर था। उनके रंगकर्म का प्रभावशाली जादू ही था, लोग जो खिचे चले आते थे।
डा.उर्मिल थपलियाल को उनके द्वारा निर्देशित नाटको तथा नाट्य लेखन के क्षेत्र मे, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, उत्तरप्रदेश संगीत नाटक अकादमी सम्मान, यश भारती तथा रत्न सम्मान, अट्टाहस शिखर सम्मान, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा कला भूषण तथा भारतेन्दु हरीशचन्द्र पुरुष्कार सहित अन्य अनेको संस्थाओ द्वारा भी सम्मानों से नवाजा गया था।
रचनाकार अपनी रचनाओ के माध्यम से पीढ़ियों तक जिंदा रहता है। उर्मिल थपलियाल द्वारा,
अपनी व्यंग से ओतप्रोत रचनाओ के माध्यम से, समाज के बहुत सारे मूल्यों और विडंबनाओ को नट और नटी के माध्यम से, जिस खूबी से समाज को समझाया गया, जागरूक किया गया, वैसा और किसी रचनाकार द्वारा कही दृष्टिगत नहीं होता है। नौटंकी के पुनरुद्धार, नौटंकी के रागो पर लिखी पुस्तक और रंगमंच को लोकप्रिय बनाने के लिए जीवनभर काम करने वाले सु- विख्यात रचनाकार व नाट्य निर्देशक उर्मिल थपलियाल को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा, वे आधुनिक रंगमंच पर अपनी नागरी नौटंकी शैली जनक के रूप में सदा जीवित रहैंगे। याद किए जाते रहैंगे।