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प्रधानमंत्री की कोरोना विषाणु संक्रमण के बढते त्राहिमान के दौर मे सकारात्मक भाव रखने की अपील के मायने

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। कोरोना विषाणु संक्रमण देश मे पहले चरण मे कोहराम मचा कर, दूसरे चरण मे, त्राहिमान मचाए हुए है। कोरोना संक्रमण का सामना करना एक बात है, लेकिन इस संक्रमण के आगे लाचारी, बेबसी, सूखे आसुओ की त्रासदी वह हकीकत है, जिसमें पता नहीं, कितने महीने व साल तक देश के जनमानस को जूझते रहना होगा।

रविवार के आंकड़ों के मुताबिक अब तक हमारे देश की लगभग एक सौ अठ्ठतीस करोड की आबादी मे, कोरोना विषाणु संक्रमण के करीब अठ्ठाईस लाख एक्टिव केस हो चुके हैं। जब कि हमारे देश मे मात्र, 44 हजार निजी क्षेत्र के अस्पताल व 26 हजार सरकारी कुल 70 हजार निर्मित अस्पतालों में बिस्तरो की संख्या, निजी अस्पतालों मे बारह लाख व सरकारी मे मात्र साढ़े सात लाख ही है।

आईसीयू इकाइयां निजी अस्पतालों मे उनसठ हजार व सरकारी मे पैंतीस हजार तथा वैन्टीलेटरो की संख्या, निजी अस्पतालों मे तीस हजार व सरकारी मे अठारह हजार मात्र है।

देश के अस्पतालों की दशा व दिशा का आंकलन कर, अनुमान सहज रूप से लगाया जा सकता है, बढते कोरोना संक्रमण के दौर मे हमारा देश स्वास्थ सुविधाओ के मामले मे, कहा खड़ा है? निजी अस्पताल, आंकड़ों के मुताबिक प्रतिवर्ष साढे़ चार अरब रुपयों का कारोबार कैसे कर रहे हैं? देश के आम व गरीब जनमानस को इन निजी अस्पतालों से क्या लाभ मिल रहा है? खासकर इस कोरोना महामारी के दौर मे।

आमतौर पर कोरोना संकट के इस भयावह दौर मे, व्यक्त किया जा रहा है, देश में स्वास्थ सुविधाऐ चरमरा गई हैं। असलियत मे, आंकड़ों के मुताबिक देश मे स्वास्थ सुविधाऐ हैं ही नहीं। इस महामारी ने इसका पूरा खुलासा कर दिया है। स्पष्ट देखा जा रहा है, हमारे देश में स्वास्थ सुविधाओ की भारी कमी है, साथ ही स्वास्थ कर्मियो का अकाल है। उनकी संख्या सीमित है। महामारी के एक साल मे स्वास्थ कर्मियो की भर्ती की कोई मुहीम नहीं चली है। दूसरी ओर, भारत में डाक्टर, नर्से और दूसरे स्वास्थकर्मी लगातार एक वर्ष से संक्रमण पर काम करते-करते थकने लगे हैं। कुछ कोरोना संक्रमित होकर, अपनी जान भी गवा चुके हैं।

अवलोकन कर ज्ञात होता है, दुनिया के अनेक देश, अपने नागरिको के स्वास्थ को प्राथमिकता देते हैं। अभियान चला कर, स्वास्थ कर्मियो और वाॅलिंटियर्स की भर्ती कर आपात स्थिति में जनसरोकारो हेतु, काम मे लाए जाते हैं। इसलिए उक्त देश, स्वास्थ सेवाओ को बेहतर बनाने हेतु, दुनिया भर मे जाने जाते हैं। हमारे देश में नागरिको का स्वास्थ्य किसी की प्राथमिकता मे नही है। जनमानस अपनी किस्मत से जी रहा है।

अवलोकन कर व्यक्त किया जा सकता है, सुनियोजित तरीके से देश की सरकारी सुविधाओ को खत्म होने दिया गया है, ताकि उनके समानांतर निजी स्वास्थ्य व्यवस्था फल फूल सके। भारत जैसे गरीब व विशाल आबादी वाले देश मे, क्या यह मॉडल काम कर सकता है? सवाल खड़ा होता है। कोरोना की महामारी ने इस सवाल को स्पष्ट व साबित कर दिया है, यह भारत जैसे गरीब देश मे संभव नहीं है। निजी चिकित्सा व्यवस्था के साथ-साथ सरकारी व्यवस्था भी, कोरोना महामारी की लहर आते ही, धरासाई दिख रही है।

कोरोना महामारी के इस भयावह दौर मे, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सुझाऐ गए ‘थ्री टी’ यानी टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमैंट के मंत्र पर भी ध्यान नहीं दिया गया। दिए गए मंत्र के तहत, न तो लैब्स बढ़ाऐ गए, न सरकारी लैब्स मे टैक्नीशियनो की भर्ती की गई, न ही टैस्ट के लिए नए किट्स बनाने का कोई नया करार ही हुआ।

कोरोना विषाणु संक्रमण की दूसरी लहर की सबसे बडी परिघटना मे देखा जा रहा है, हर जगह कांट्रेक्ट ट्रेसिंग बंद है। किसी भी तरीके से यह पता नहीं लगाया जा रहा है, कि अगर कोई संक्रमित हुआ है, तो कैसे हुआ, उसका स्रोत क्या है, और स्रोत से और कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं। कांट्रेक्ट ट्रेसिंग नहीं हो रही है, इसलिए संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा है।

आक्सीजन की कमी दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खुद कमान संभाल लेने के बाद भी, संकट दूर नहीं हो रहा है। देश के कई राज्यों में आक्सीजन संकट जारी है। कई मरीजो की स्थिति गंभीर है। पीड़ित लोगों के परिजनों का आरोप है कि, आक्सीजन की काला बाजारी हो रही है। आक्सीजन की कमी दूर करने के लिए जो आपात उपाय किए जा रहे हैं, वे भी कामयाब नहीं हैं। बडे शहरो के साथ अब छोटे शहरो मे भी, आक्सीजन की कमी से मौते होने लगी हैं।

आंकड़ों के मुताबिक भारत में आक्सीजन उत्पाद और खपत में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। सात हजार मीट्रिक टन आक्सीजन का कुल उत्पाद देश मे होता है। महामारी के इस दौर मे आक्सीजन की भारी किल्लत से मौतो का आंकड़ा बढ़ता देख, केन्द्र सरकार द्वारा सैद्धांतिक मंजूरी के तहत, आनन-फानन मे पीएम केयर्स फंड से देश के 551 जिलों मे, जल्द से जल्द मेडिकल आक्सीजन उत्पादन संयन्त्रो को लगाने की मंजूरी दी गई है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा खरीद की जाने वाले उक्त संयन्त्रो से, जिला स्तर पर आक्सीजन की उपलब्धता बढ़ने से, किल्लत दूर होने का कयास लगाया जा रहा है।

आक्सीजन के मामले में, दूरदर्शिता के भाव रख, देश के नेतृत्व को क्या नहीं चाहिए था कि, माह अप्रैल, 2020 मे पहले लाकडाउन लगाने के दस दिन के अंदर , कार्यक्रम क्रियान्वयन और योजना मंत्रालय के एक अधिकार प्राप्त 11 सदस्यीय समूह द्वारा, आक्सीजन का उत्पादन बढ़ाए जाने पर जो सामूहिक राय, उद्योग परिसंघ के गैस इंडस्ट्री से बात कर उत्पादन बढ़ाने की पहल हेतु केन्द्र सरकार को दी गई थी। उक्त राय पर त्वरित ध्यान आकर्षित कर आक्सीजन उत्पादन पर ध्यान दिया जाना चाहिए था? साथ ही, माह नवम्बर 2020 मे एक समिति द्वारा आक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने और कीमत निर्धारित करने की बात पर केन्द्र सरकार द्वारा अगर ध्यान दिया जाता, तो निश्चय ही, आक्सीजन की कमी से हो रही मौतो की अनहोनी को रोका नहीं जा सकता था।

भारत मे आक्सीजन के अभाव व हो रही मौतो पर जर्मनी और फ्रांस का ध्यान भी आकर्षित हुआ है, उक्त देशो के साथ-साथ सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात द्वारा भी मदद की पहल की गई है। हवाई जहाजो के जरिए उक्त देशो से आक्सीजन आयात की जा रही है। अमेरिकी ने भी इस मामले में अपना रुख अब सकारात्मक कर लिया है, जो भारत के लिए कुछ राहत भरा होगा।

बढते कोरोना विषाणु संक्रमण के मध्येनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए गए कदम, विदेशो से मिल रहे अपेक्षित सहयोग तथा ‘मन की बात’ कार्यक्रम की 76वी कड़ी मे, कोरोन विषाणु संक्रमण के प्रति सकारात्मक भाव रखने की प्रधानमंत्री की अपील तथा विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों की सलाह को प्राथमिकता देने की बात पर निश्चय ही भारतीय जनमानस को विश्वाश रखना होगा, प्रधानमंत्री की बात पर, दिन पर दिन बढते व भयावह होते जा रहे कोरोना संक्रमण के बावजूद।

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