राष्ट्रीय हरेला उत्सव में बोले भाजपा महासचिव : उत्तराखंड केवल राज्य नहीं, पर्यावरणीय चेतना का केंद्र बिंदु है*
Amar chand नई दिल्ली।जिन पर्वों और परंपराओं में प्रकृति की पूजा हो, वहां जीवन केवल सांस नहीं बल्कि संस्कार बन जाता है। कुछ ऐसी ही भावनाओं के साथ नई दिल्ली के गोल मार्केट स्थित ऐतिहासिक जैन भवन में उत्तराखंडी समुदाय की एक विराट सांस्कृतिक और चेतनात्मक उपस्थिति देखने को मिली, जब पर्वतीय लोकविकास समिति और अपनी धरोहर न्यास द्वारा राष्ट्रीय हरेला उत्सव का भव्य आयोजन किया गया। इस मौके पर दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों से आए वरिष्ठ अधिकारी, जनप्रतिनिधि, समाजसेवी, कलाकार, पत्रकार, शिक्षाविद् और हजारों की संख्या में उत्तराखंडी प्रवासी जन शामिल हुए।
इस गौरवपूर्ण आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तराखंड के प्रभारी दुष्यंत गौतम ने कहा कि उत्तराखंड एक राज्य नहीं, बल्कि विचार है। एक ऐसी भूमि जहां की संस्कृति, परंपरा और लोग देश को दिशा देने का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि “उत्तराखंडी समाज ने अपने कर्म, व्यवहार और संस्कारों से देश की राजधानी सहित हर हिस्से में अपनी एक खास पहचान बनाई है। हरेला जैसे पर्व केवल पेड़ लगाने की औपचारिकता नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव, प्रकृति के प्रति निष्ठा और धरती मां के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक हैं।”
समारोह की औपचारिक शुरुआत नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की सांसद सुश्री बांसुरी स्वराज के उद्घाटन संबोधन से हुई। उन्होंने कहा कि “हरेला अब उत्तराखंड तक सीमित नहीं रहा, यह पूरे देश का पर्व बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का ‘एक वृक्ष माँ के नाम’ का संकल्प वास्तव में इसी सांस्कृतिक चेतना से प्रेरित है। उन्होंने पर्वतीय लोकविकास समिति की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं बल्कि वृक्ष के संरक्षण, संवर्धन और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को भी अपने साथ लेकर चल रही है।”
उत्तराखंड भाजपा के आर्थिक प्रकोष्ठ के संयोजक और समिति के परामर्शदाता सीए राजेश्वर पैन्यूली ने स्वागत भाषण में कहा कि दिल्ली-NCR में रहकर उत्तराखंड की अस्मिता को बचाना, उसकी भाषा-बोली, संस्कृति और सामाजिक चेतना को जीवित रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि “हमारा उद्देश्य केवल उत्सव मनाना नहीं, बल्कि ऐसे आयोजनों के माध्यम से एक समर्पित सामाजिक चेतना विकसित करना है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने।”
इस समारोह में पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र के विधायक रविंद्र सिंह नेगी ने कहा कि “उत्तरायणी की तरह अब हरेला भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रहा है। दिल्ली जैसे महानगर में उत्तराखंडी समाज ने अपनी मेहनत, ईमानदारी और संस्कृति के बल पर जिस विश्वास को अर्जित किया है, वह प्रशंसनीय है। मैं यह देखकर प्रसन्न हूं कि सांस्कृतिक चेतना के माध्यम से हम सामाजिक एकता को भी मजबूत कर रहे हैं।”
कार्यक्रम के दौरान जिन प्रतिष्ठित व्यक्तियों को “राष्ट्र गौरव सम्मान” प्रदान किया गया उनमें भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ. डी.पी. सेमवाल, पूर्व सैन्य अधिकारी ले. जनरल अरविंद सिंह रावत, संस्कृत विद्वान डॉ. जीतराम भट्ट, कृषि वैज्ञानिक नरेंद्र मेहता, लेखक एवं शिक्षाविद प्रो. सुरेश बंदूनी, साहित्यकार प्रो. हरेंद्र सिंह असवाल, शिक्षाविद संजय भारतीय, भाजपा नेत्री श्रीमती माया सिंह बिष्ट, भाषाविद श्री रमेश चंद्र घिल्डियाल, समाजसेवी डॉ. राजेश्वरी कापड़ी, लाखीराम डबराल और दुर्गा सिंह भंडारी प्रमुख रहे।
इसी क्रम में धरोहर सम्मान से भी कई समाजसेवियों और रचनात्मक व्यक्तित्वों को नवाजा गया जिनमें श्री नेपाल सिंह, डॉ. मनोज कुमार कैन, श्री मंगल सिंह नेगी, श्री अनिल पंत, श्री शशि मोहन रावत, श्रीमती लक्ष्मी नेगी, श्रीमती तृप्ति जोशी, श्री राजेश डंडरियाल, श्री दिनेश बम, श्री संजय मठपाल, डॉ. नवदीप जोशी और डॉ. विपिन मैखुरी सम्मिलित रहे।
कार्यक्रम का सांस्कृतिक पक्ष भी उतना ही सशक्त रहा। दिल्ली-एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों से आई उत्तराखंडी बहनों ने भक्ति भाव से युक्त हरेला गीत, भजन और लोकनृत्य प्रस्तुत किए। ढोल-दमाऊं, मशकबीन और रणसिंगा की थाप पर पूरा सभागार झूम उठा। यह दृश्य न केवल एक सांस्कृतिक महोत्सव था बल्कि उत्तराखंड की आत्मा का जीवंत रूप था।
अपनी धरोहर के अध्यक्ष श्री विजय भट्ट ने हरेला की अवधारणा और इसके आगामी कार्ययोजना पर विस्तार से जानकारी दी। पर्वतीय लोकविकास समिति के अध्यक्ष डॉ. शशिमोहन शर्मा एवं संयोजक कुंदन सिंह रौथान ने अतिथियों का आभार जताया। कार्यक्रम के संचालन में संयोजक प्रो. सूर्य प्रकाश सेमवाल ने अत्यंत प्रेरक रूप से कहा कि “पर्यावरणीय संकट, जलवायु परिवर्तन और जल संकट की जो भयावहता आज विश्व महसूस कर रहा है, उसका हल हमारी परंपराओं में छिपा है। हरेला पर्व अब हमारी व्यक्तिगत नहीं, राष्ट्रीय और वैश्विक जिम्मेदारी बन चुका है।”
अंत में हिम उत्तरायणी पत्रिका के प्रबंधक श्री विजय सती ने सबका आभार व्यक्त किया और संकल्प लिया कि इस चेतना को जन-जन तक पहुंचाया जाएगा।
यह आयोजन एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक था, जो यह संदेश दे गया कि उत्तराखंड की धरती से उपजे पर्व केवल परंपरा नहीं, परिवर्तन का माध्यम हैं। और यह परिवर्तन अब वृक्षों के माध्यम से, संस्कारों के साथ, और समाज के समर्पण से आएगा।