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टिहरी डैम की झील — पानी के नीचे समाया एक शहर और 35 गांवों की अनकही दास्तान

टिहरी डैम की झील — पानी के नीचे समाया एक शहर और 35 गांवों की अनकही दास्तान

 

देहरादून।उत्तराखंड की गहरी घाटियों में, गंगा और भागीरथी की गोद में बसा था — टिहरी। यह शहर सिर्फ पत्थरों और मकानों का समूह नहीं था, बल्कि पीढ़ियों से चलती आ रही संस्कृति, परंपराओं और रिश्तों की धड़कन था। चौपालों पर होती गपशप, मंदिरों में बजती घंटियां, खेतों में गूंजते गीत, और भागीरथी की लहरों पर खेलते बच्चे यह सब टिहरी की पहचान था।

लेकिन 1978 में एक सपना आकार लेने लगा — एक ऐसा सपना जो देश के लिए बिजली, पानी और सिंचाई का विशाल स्रोत बन सकता था। यह था टिहरी डैम का सपना। विकास के इस सपने की कीमत बहुत बड़ी थी — एक पूरा शहर और उसके साथ 35 गांव इस झील के पानी में हमेशा के लिए खो जाने वाले थे।

वर्षों तक संघर्ष चला। कुछ लोग विरोध में खड़े हुए, तो कुछ ने इसे देशहित में स्वीकार किया। और फिर, धीरे-धीरे, टिहरी की गलियां, स्कूल, बाजार और मंदिर — सब एक-एक कर खाली होने लगे। लोगों ने अपनी पुरानी तस्वीरें, दादी के दिए बर्तन, और आंगन की मिट्टी तक साथ ले जाने की कोशिश की। लेकिन हर कोई जानता था कि जो पीछे छूट जाएगा, वह कभी वापस नहीं आएगा।

डैम के बनने के साथ ही भागीरथी की पुरानी धारा बदल गई। झील का पानी धीरे-धीरे बढ़ा, और एक दिन, वह क्षण आ गया जब टिहरी की आखिरी छत भी पानी में डूब गई। अब उस जगह पर जहां कभी घंटियों की आवाज गूंजती थी, आज सिर्फ गहरे नीले पानी की खामोशी है।

टिहरी डैम एशिया का सबसे ऊंचा और विशाल डैम बन गया। इसकी ऊंचाई 260 मीटर है और इसमें 2.6 अरब घन मीटर से ज्यादा पानी समा सकता है। यह उत्तर भारत को बिजली, सिंचाई और पेयजल देता है। लेकिन इस झील के नीचे आज भी सोया है पुराना टिहरी शहर और वे 35 गांव, जिनकी गलियों में कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं।

विस्थापित लोग आज नए टिहरी, ऋषिकेश, देहरादून और देश के अलग-अलग हिस्सों में बस गए हैं। लेकिन दिल के किसी कोने में, उनका गांव अब भी जिंदा है — वही खेत, वही चौपाल, वही पुराना मंदिर।

आज टिहरी झील एक पर्यटक स्वर्ग बन चुकी है। नौकायन, पैरासेलिंग, जेट स्कीइंग और मनमोहक दृश्य यहां आने वालों को आकर्षित करते हैं। पर जो लोग इसकी गहराई के इतिहास को जानते हैं, उनके लिए यह झील सिर्फ रोमांच का स्थान नहीं, बल्कि बलिदान, बिछड़न और विकास की कीमत का जीवंत स्मारक है।

टिहरी की कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी विकास की राह में हमें अपनी सबसे प्यारी चीजें छोड़नी पड़ती हैं, और वह दर्द आने वाली पीढ़ियों के दिलों में भी जिंदा रहता है।

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