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कड़े कानून, सख्त एक्शन और कड़ी निगरानी से रुकेगा नकली दवाइयां का गोरखधंधा

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

नई दिल्ली: देश में आम आदमी पर स्वास्थ्य सुरक्षा का संकट लगातार गहराता जा रहा है। हाल ही में देश के अलग-अलग शहरों से हजारों करोड़ रुपये की नकली दवाइयां पकड़ी गई। समय-समय पर नकली दवाइयों के भंडाफोड़ का मामला सामने आता रहता है। लेकिन इस गोरखधंधे पर रोक लगाना अब भी चुनौती बना हुआ है। नकली दवाइयों के गोरखधंधे का कारोबार लगतार बढ़ता जा रहा है। यह महज अपराध नहीं, बल्कि सीधे आम आदमी के जीवन को खतरे में डालने का काला कारोबार है। सरकार, संबंधित एजेंसियों, डॉक्टरों और विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।

नकली दवाइयों अक्सर जहरीली या अवैध तत्वों से भरी होती हैं, जिनका इस्तेमाल गंभीर बीमारी या मौत का कारण बन सकती हैं। भारत जैसे देश में, जहां लाखों लोग महंगी दवाइयों को भी सस्ती कीमत पर खरीदने की कोशिश करते हैं, वे नकली दवाइयां के तेजी से फैल रहे जाल में फंस जाते हैं।

हाल के वर्षों में कई बड़े स्कैम सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, अलग-अलग राज्यों में करोड़ों रुपये की नकली दवाइयां जब्त की गईं, लेकिन इनके निर्माताओं और आपूर्ति नेटवर्क तक सही तरीके से पहुँचने में अधिकारियों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह स्पष्ट करता है कि केवल पकड़ने और जब्त करने से समस्या हल नहीं होगी।

इस पूरे मामले के लिए जिम्मेदारी कई पक्षों पर है। सबसे पहली जिम्मेदारी सरकार और उसके नियामक संस्थानों की है। ड्रग कंट्रोल और एफडीए जैसे निकायों को कड़े निगरानी तंत्र और आधुनिक तकनीक के माध्यम से नकली दवाइयों की पहचान और रोकथाम करनी चाहिए। दूसरी ओर, अवैध कारोबारियों और दवा कंपनियों के भ्रष्टाचार ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है। कई बार कंपनियां नकली या घटिया दवाइयों को कानूनी झंझट से बचने के लिए बाजार में डाल देती हैं।

सामाजिक जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण है। आम नागरिकों को भी सतर्क रहने की जरूरत है। केवल सस्ती दवाइयों के लालच में बिना प्रमाणित स्रोत से दवा खरीदना खतरनाक साबित हो सकता है। डिजिटल टेक्नोलॉजी के माध्यम से अब कई प्रमाणित और वैरिफाइड दवा विक्रेताओं के ऐप और वेबसाइट मौजूद हैं, जिन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए।

समस्या का स्थायी समाधान कड़े कानून, कड़ी निगरानी, और जागरूकता से ही संभव है। सरकार को आवश्यक संसाधन और आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराना होंगे ताकि नकली दवाइयों के पूरे नेटवर्क का भंडाफोड़ किया जा सके। साथ ही, समाज और मीडिया की भूमिका भी अहम है। नागरिकों को इस गंभीर मुद्दे पर सतर्क करना और उन्हें सुरक्षित दवा खरीदने के तरीके बताना अत्यंत आवश्यक है।

यदि इन उपायों को तुरंत लागू नहीं किया गया, तो नकली दवाइयों का यह गोरखधंधा केवल बढ़ता जाएगा और आम आदमी का जीवन खतरे में रहेगा। इसलिए अब वक्त है कि सरकार, उद्योग और समाज मिलकर इस समस्या के खिलाफ ठोस कदम उठाएं और भारत को सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाओं वाला देश बनाएं।

*हाल में जब्त नकली दवा के आंकड़े उत्तर प्रदेश FSDA ने एक साल में 1,039 छापों में ₹30.77 करोड़ की नकली दवाइयाँ जब्त कीं। दिल्ली पुलिस ने जुलाई 2025 में 1.1 लाख नकली जीवन रक्षक दवाइयाँ जब्त कीं, जिनकी कीमत करोड़ों में थी।

*कोलकाता में जनवरी 2025 में ₹6.6 करोड़ की कैंसर और मधुमेह की नकली दवाइयाँ जब्त की गईं।

*अहमदाबाद में जुलाई 2025 में ₹17 लाख की स्पीरियस दवाइयाँ जब्त की गईं।

* दिल्ली में जुलाई 2025 में ₹2.15 करोड़ की जीवन रक्षक दवाइयाँ जब्त की गईं।

*आगरा में अगस्त 2025 में ₹2.92 करोड़ की नकली दवाइयाँ जब्त की गईं।

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