पानी की बर्बादी रोकने और जल संरक्षण के लिये सरकार को भेजे गए कुछ सुझाव
नई दिल्ली | एक तरफ पानी की लगातार बदतर होती उपलब्धता व गुणवत्ता और दूसरी तरफ बाढ़-सुखाड़ की हर साल सामने आने वाली समस्याओं के बीच पानी की बर्बादी रोकने और जल संरक्षण के लिये व्यापक स्तर पर प्रबंधन करने की मांग तेजी से जोर पकड़ रही है। खास तौर से प्राकृतिक जलश्रोतों के अंधाधुंध दोहन की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण पेयजल की उपलब्धता प्रभावित होने और बरसात का पानी नदी-नाले से होकर समुद्र में जाकर बर्बाद हो जाने की समस्या दूर करने के लिए सरकार को सुझाव दिया गया है कि अगर बरसात के पानी को जमा करने का इंतजाम कर लिया जाए तो पानी से जुड़ी तमाम परेशानियों को सिरे से दूर किया जा सकता है। इस मसले को लेकर हुए व्यापक अध्ययन के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर केन्द्र व राज्य सरकारों के संबंधित विभागों को विस्तृत रिपोर्ट भेजी गई है जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि पानी की परेशानी को हमेशा के लिए दूर करने का एकमात्र उपाय प्रकृति सम्मत तौर तरीकों को अपनाना ही है। इसके तहत प्रकृति द्वारा प्रदान किये जा रहे विभिन्न स्रोतों के जल का उसी तरीके से इस्तेमाल होना चाहिए जिसका इंतजाम करते हुए प्रकृति ने इस पूरी व्यवस्था में जल का वितरण किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि इस वैज्ञानिक व्यवस्था को बढ़ावा दिया गया तो ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, बाढ़, सूखा व पानी से जुड़ी तमाम समस्याएं हमेषा के लिए खत्म हो जाएंगी और मानव जाति को स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी, पोषक आहार और प्रदूषण मुक्त माहौल का कुदरती जन्मजात हक एक बार फिर हासिल हो जाएगा।
बीते तीस सालों से पानी के मसले पर व्यापक अध्ययन कर रहे प्रसिद्ध वैज्ञानिक व यूनिवर्स रिफॉर्म ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष श्याम सुंदर राठी ने राजधानी स्थित ऐतिहासिक लालकिले के 15 अगस्त पार्क में आयोजित समारोह में उक्त बातें साझा कीं। उन्होंने कहा कि इंसान को सांस लेने के लिए प्रदूषण मुक्त ताजी हवा, शुद्ध पीने का पानी, भरपेट पौष्टिक भोजन प्राकृतिक तत्वों से ही हासिल होता है। पिछले कुछ सालों से यह प्राकृतिक व्यवस्था हमारी अज्ञानता और गलतियों के कारण नष्ट-भ्रष्ट हो गई है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्स रिफॉर्म ऑर्गनाइजेशन ने इस व्यवस्था को फिर से चुस्त-दुरुस्त करने का बीड़ा उठाया है। सभी वैज्ञानिकों को इस मिशन में सहयोग देना चाहिए। जरूरत से ज्यादा प्राकृतिक दोहन से ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, भंडारण, जल समस्या और खाद्य समस्या आदि समस्याएं सिर उठा रही हैं।
उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम में पानी का भंडारण कर हम मानव जाति को जल के संकट से मुक्ति दिला सकते हैं। प्राकृतिक जल का बड़ी-बड़ी टंकियों में भंडारण कर मानव समुदाय को पीने के पानी के संकट से मुक्ति मिल जाएगी। भूगर्भ जल का आवश्यकता से अधिक दोहन न कर हम पेड़-पौधे और वनस्पति को नया जीवन दे सकते हैं। बेहद कम लागत से पनबिजली के उत्पादन को बढ़ावा देकर हम उद्योगों और चिमनियों से निकले धुएं से लोगों को राहत दिला सकते है। प्रदूषण मुक्त पावर जेनरेशन सिस्टम अपना कर पावर और एनर्जी की मांग पूरी की जा सकती है। इस मौके पर यूआरओ के सचिव सरोजा साहू ने कहा कि आज के दौर की सबसे ज्यादा आवश्यकता स्वच्छ हवा और स्वच्छ जल है और इस महामारी के बीच वैज्ञानिक श्याम सुंदर राठी का लाल किले के ऐतिहासिक मैदान से दिया गया संदेश निश्चित तौर पर मानवता के ऊपर एक उपकार रहेगा। इसी तर्ज पर समाजसेवी भूपेंद्र रावत ने कहा कि पूरे ब्रह्मांड में ये ग्रह है जहां जल है। हमें पानी का वैज्ञानिक तरीके से भंडारण करके उसे बचाना भी है और उसकी पर्याप्त उपलब्धता भी कायम करनी है।