म्यांमार भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक महत्वपूर्ण अंश है : धर्मेन्द्र प्रधान
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने म्यांमार के केन्द्रीय निर्माण, विद्युत एवं ऊर्जा मंत्री यू विन खाइंग के साथ नई दिल्ली में बैठक की। म्यांमार के मंत्री अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की प्रथम महासभा में भाग लेने के लिए भारत के आधिकारिक दौरे पर आए। बैठक के दौरान दोनों ही मंत्रियों ने हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में द्विपक्षीय सहभागिता से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। दोनों मंत्रियों ने अपस्ट्रीम सेक्टर अर्थात तेल एवं गैस की खोज से जुड़े क्षेत्र में भारतीय कंपनियों द्वारा म्यांमार में किये गये वर्तमान निवेश के साथ-साथ भावी निवेश पर भी विचार-विमर्श किया। वर्तमान में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) और गेल ने म्यांमार के गैस उत्पादन ब्लॉकों में निवेश कर रखा है। ओवीएल ने भी म्यांमार के खोज अथवा उत्खनन ब्लॉकों में हिस्सेदारी हासिल की है। भारतीय कंपनियां यथा आईओसीएल, एनआरएल और एचपीसीएल म्यांमार को पेट्रोलियम उत्पादों, लुब्रिकेंट्स और पैराफिन मोम का निर्यात कर रही हैं। हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में दोनों देशों की सहभागिता निरंतर बढ़ती जा रही है। भारत की पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम) कंपनियों ने म्यांमार के अपस्ट्रीम (कच्चे तेल की खोज एवं उत्पादन) और मिडस्ट्रीम (ढुलाई, भंडारण एवं विपणन) क्षेत्रों में एक अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा राशि का निवेश किया है।
श्री प्रधान ने म्यांमार के मिडस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में भारत द्वारा दिखाई जा रही रुचि को साझा किया। भारत ने म्यांमार में एक रिफाइनरी की स्थापना करने के साथ-साथ पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण, वितरण और विपणन में भी रुचि दिखाई है। श्री प्रधान ने हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में प्रशिक्षण देने और क्षमता निर्माण में म्यांमार की सहायता करने के भी प्रस्ताव रखे। यह म्यांमार के मंत्री की दूसरी भारत यात्रा थी। अपनी पिछली यात्रा के दौरान श्री यू विन खाइंड ने आईओसीएल की पानीपत रिफाइनरी का दौरा किया था। श्री प्रधान ने यह बात रेखांकित की कि म्यांमार भी भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक महत्वपूर्ण अंश है। इसके साथ ही म्यांमार आसियान देशों के लिए मित्रता सेतु भी है। दोनों मंत्रियों ने हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम करने और इसे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बनाने में रुचि दिखाई।