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भगतदा होने के मायने

जानिए अपने नेता को

अमर चंद्र
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी यदि जनता के बीच ‘भगतदा’ के नाम से लोकप्रिय हैं, तो इसके खास मायने हैं। हर कोई राजनेता इस तरह का सम्मान हासिल नहीं कर सकता। जनता का सम्मान वास्तव में वही राजनेता प्राप्त कर सकता है जो सत्ता के अहंकार में आम लोगों को न भूल जाए। भगतदा जब सत्ता में नहीं थे तब भी आम लोगों के प्रति उनका प्रेम भाव रहा और जब सत्ता में आए तब भी जनता से हमेशा बड़ी आत्मीयता से मिले। धर्मराज युधिष्ठिर की तरह समभाव उनके भीतर हमेशा बना रहा।
भगतदा में न सिर्फ धर्मराज युद्धिष्ठिर जैसा समभाव का गुण है, बल्कि वे हर राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं के लिए भीष्म पितामह की तरह आदरणीय रहे हैं। उत्तराखंड में हर राजनीतिक पार्टी के नेता उन्हें आदर भाव से देखते हैं। हर कोई यूँ ही उनका सम्मान नहीं करता, बल्कि वे सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, साहित्यकारों और राजनेताओं के लिए इस मायने में प्रेरणा स्रोत रहे हैं कि जीवन में कर्म पथ पर आगे बढ़ते रहो, फल के अधिकारी तुम स्वयं हो। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी यही कहा है कि जो कर्म करेगा वही फल का अधिकारी भी है। भगतदा का कर्म पथ और उनका संघर्ष हर किसी के लिए प्रेरणादायक है।
आज की पीढ़ी को बेशक राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र की उनकी ऊँचाइयाँ दिखाई देती हों, लेकिन भगतदा न सिर्फ शिखर पुरुष हैं, बल्कि नीव की ईंट भी हैं। उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की जड़ें जमाने में भगतदा की मेहनत और ईमानदारी को भला कौन भुला सकता है? उन्होंने समाज और राष्ट्र को सर्वोपरि रखा, तो लोग उनके विचारों से प्रभावित होते रहे। निसंदेह यह उन्हीं की तपस्या और मेहनत का ही फल है कि आज उत्तराखंड में भाजपा एक मजबूत पार्टी के रूप में शासन करती आ रही है।
देश की आजादी से पहले ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के वर्ष यानी 1942 में जन्मे भगतदा का एक शानदार राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन रहा है। आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की शिक्षा प्राप्त भगतदा यदि चाहते तो युवा अवस्था में ही सरकारी सेवा में जाकर आराम की जिंदगी जी लेते, लेकिन उनके दिल में गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों के प्रति दया का भाव था जो उन्हें पत्रकारिता, साहित्य, समाज सेवा और राजनीति में खींच लाया। यह अलग बात है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें जनता की सेवा करने का बहुत कम समय मिला, लेकिन ‘उत्तरांचल प्रदेश क्यों’ और ‘उत्तरांचल: संघर्ष एवं समाधान’ नामक उनकी दो पुस्तकें इस बात की साक्षी हैं कि राज्य के विकास के लिए भगतदा की दृष्टि कितनी गहरी रही है। उनकी सोच राज्य के विकास की नींव बनी। वे उत्तराखंड में ऐसे संतुलित विकास के पक्षधर रहे हैं जिससे पर्यावरण भी बचा रहे और लोगों को बेहतर सुविधाएं भी उपलब्ध हो सकें।

एक कुशल संगठनकर्ता के रूप में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा संगठन के लिए उनकी सेवाएं मील का पत्थर साबित हुई हैं। वे उत्तराखंड भाजपा के पहले अध्यक्ष तो भाजपा संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे हैं। राष्ट्र के प्रति उनके असीम प्रेम भाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने राजभवन को लोक भवन में बदला। उनके कार्यकाल के दौरान राज भवन में ब्रिटिश काल के एक बंकर में स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों के लिए ‘क्रांति गाथा’ दीर्घा का निर्माण हुआ। शिक्षा के विकास में उनकी गहरी रुचि का सहज अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्यपाल रहते हुए उन्होंने विश्वविद्यालयों का दौरा किया तथा शिक्षकों और छात्रों से संवाद कायम किया।
भगतदा इस मायने में भी खास हैं कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की तरह ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के मंत्र को आत्मसात किया। उनका सादगीपूर्ण जीवन वास्तव में जनता को बहुत प्रिय है। उत्तराखंड की धरती के लिए उन जैसे सरल नेता का होना गौरव की बात है।
अच्छी बात है कि भगतदा जीवन के चौथे पड़ाव में भी राज्य और देश के बारे में सोचते हैं। वे गंभीरता से देश और समाज के लिए सक्रिय हैं। भगवान बदरी-केदार उन्हें स्वस्थ और सानंद रखें ताकि उनका आशीर्वाद नई पीढ़ियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहे। भावी चिरागों को रोशन करता रहे।

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