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सर्वोच्च न्यायालय पर हमले के विरोध में मुंबई में वकीलों का प्रदर्शन न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रहार नहीं सहेगा भारत!

Amar sandesh मुंबई।भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति बी.आर. गवई पर हुए हमले के विरोध में ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU) और अंधेरी न्यायालय, मुंबई के अधिवक्ताओं ने सीजेएम न्यायालय परिसर में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक चला, जिसमें 30 से अधिक अधिवक्ताओं ने भाग लिया।

इस विरोध में एडवोकेट. चंद्रकांत बोजगर (महाराष्ट्र राज्य सचिव), एड. दीपक विश्वकर्मा, एड. एलन परेरा, एड. ओ.पी. सिंह, एड. प्रदीप सालवी, एड. विश्वास अवघड़े, एड. स्वर्णांशु शेखर, एड. संध्या पाटील, एड. संजय पांडे और एड. किशोर सहित अनेक अधिवक्ता उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में इस हमले को न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर सुनियोजित हमला बताया।

6 अक्टूबर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ में सुनवाई के दौरान 71 वर्षीय अधिवक्ता राकेश किशोर ने “सनातन धर्म” के नाम पर नारे लगाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंका। सौभाग्य से वह जूता न्यायपीठ तक नहीं पहुंचा। मुख्य न्यायाधीश गवई ने अद्भुत संयम का परिचय देते हुए कहा, “ऐसी चीजों से प्रभावित होने वाला मैं आखिरी व्यक्ति हूं। कृपया कार्यवाही जारी रखें।” उनके इस संयमित व्यवहार ने न्यायपालिका की गरिमा को और ऊंचा किया।

इस घटना की देशभर में कड़ी निंदा की जा रही है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने आरोपी अधिवक्ता राकेश किशोर का लाइसेंस निलंबित कर दिया है और इसे व्यावसायिक आचरण का गंभीर उल्लंघन माना है। ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन ने इस हमले को सर्वोच्च न्यायालय और न्यायिक स्वतंत्रता पर खुला हमला करार दिया है। संगठन का कहना है कि यह कृत्य दक्षिणपंथी सांप्रदायिक तत्वों द्वारा न्यायपालिका की निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने की सुनियोजित कोशिश है। एआईएलयू ने कहा कि न्यायमूर्ति गवई को उनकी दलित पृष्ठभूमि और संविधान की मूल भावना की रक्षा के लिए उनके न्यायिक दृष्टिकोण के कारण निशाना बनाया जा रहा है।

AILU ने इस घटना को केवल न्यायपालिका पर हमला नहीं बल्कि राष्ट्र की विवेकशीलता पर प्रहार बताया है। जो न केवल न्यायपालिका बल्कि भारत के लोकतांत्रिक संविधान की मूल संरचना के लिए भी खतरा है। इस प्रकार की जातिगत और धार्मिक उन्माद से प्रेरित घटनाएं देश की न्यायिक संस्थाओं की साख को कमजोर करती हैं।

AILU ने इस हमले की तत्काल और निष्पक्ष जांच की मांग की है तथा दोषियों और उनके पीछे किसी भी षड्यंत्रकारी तत्व के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की अपील की है। संगठन ने पूरे देश के वकीलों, बार एसोसिएशनों और नागरिकों से एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है ताकि इस प्रकार की घटनाएं दोबारा न दोहराई जाएं।

AILU द्वारा देशव्यापी आंदोलन की योजना बनाई जा रही है, जिसमें शांतिपूर्ण रैलियां, ऑनलाइन अभियान, याचिकाएं और जन-जागरण सभाएं आयोजित की जाएंगी। संगठन का कहना है कि यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं बल्कि भारत के संविधान की आत्मा पर प्रहार है और हर नागरिक तथा वकील को इस चुनौती के सामने एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए।

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