कोटद्वार: ऋषि कण्व की तपोभूमि, जहाँ सम्राट भरत का हुआ था जन्म
Amar sandesh Kotdwar.।उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार क्षेत्र में स्थित कण्वाश्रम भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह आश्रम मालन नदी के तट पर, हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्थित है, और इसे ऋषि कण्व की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, इस आश्रम में ऋषि कण्व ने मेनका और विश्वामित्र की पुत्री शकुंतला का पालन-पोषण किया था। यहीं पर शकुंतला और राजा दुष्यंत के पुत्र भरत का जन्म हुआ, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा।
शैक्षिक केंद्र: कण्वाश्रम प्राचीन काल में एक प्रमुख वैदिक शिक्षा केंद्र था, जहाँ चारों वेदों और छह वेदांगों की शिक्षा दी जाती थी।
आध्यात्मिक स्थल: यह आश्रम योग, तपस्या और यज्ञों का केंद्र रहा है, जहाँ ऋषि-मुनि कठोर तपस्या करते थे।
भौगोलिक स्थिति: मालन नदी के दोनों तटों पर फैले सघन वन के मध्य स्थित यह आश्रम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है।
आधुनिक विकास और महोत्सव
1956 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानन्द के प्रयासों से कण्वाश्रम का पुनर्निर्माण शुरू हुआ। तब से यहाँ हर वर्ष वसंत पंचमी के अवसर पर तीन दिवसीय कण्वाश्रम महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल प्रतियोगिताएं और स्थानीय कला का प्रदर्शन होता है।
पर्यटन और संरक्षण की आवश्यकता
कण्वाश्रम न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्यटन की दृष्टि से भी एक आकर्षक स्थल है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और ऐतिहासिक महत्व पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। हालांकि, इस धरोहर के संरक्षण और विकास के लिए और प्रयासों की आवश्यकता है।
कण्वाश्रम भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य रत्न है, जिसे संरक्षित और प्रचारित करने की आवश्यकता है। यह आश्रम न केवल हमारे अतीत का प्रतीक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।