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अपनी धरोहर न्यास’ द्वारा हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर में आयोजित किया गया ‘धरोहर संवाद’ 

सी एम पपनैं

श्रीनगर (गढ़वाल)। उत्तराखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन तथा राज्य के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वांगीण विकास हेतु चिंतित प्रबुद्ध जनों द्वारा वर्ष 2021 हरेला पर्व पर गठित सामाजिक संस्था ‘अपनी धरोहर न्यास’ से जुड़े प्रबुद्घ जनों द्वारा 22 और 23 जून को ‘हिमालय जन कल्याण समिति’ के सानिध्य में हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर (गढ़वाल) चौरास परिसर में ‘धरोहर संवाद’ का प्रभावशाली और ज्ञानवर्धक आयोजन का श्रीगणेश मुख्य अतिथि डॉ. धन सिंह रावत कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड सरकार तथा एल पी जोशी महानिदेशक टिहरी डेम की अध्यक्षता तथा विशिष्ट अतिथियों में प्रमुख प्रो. दुर्गेश पंत महानिदेशक यूकांस्ट, डॉ. नीलांबर पांडे सेवानिवृत निर्देशक गृह मंत्रालय भारत सरकार, प्रोफेसर सतीश चंद्र सती विभागाध्यक्ष रसायन विज्ञान एच एन बी विश्व विद्यालय, प्रो. डी आर पुरोहित संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त तथा ‘अपनी धरोहर न्यास’ अध्यक्ष विजय भट्ट मंचासीनों की प्रभावी उपस्थिति में किया गया।

आयोजित ‘धरोहर संवाद’ के प्रथम सत्र का श्रीगणेश मंचासीन प्रबुद्ध जनों द्वारा श्रीगणेश व भारत माता के चित्र पर पुष्प अर्पित कर व दीप प्रज्ज्वलित कर तथा मांगल गीत गायिका राखी रावत व रीना चौहान द्वारा मांगल गीत-

ल्यो पाटा फूटा मासी का धूप दयो भूमि रेगे….।

के गायन तथा आयोजक संस्था पदाधिकारियों द्वारा मंचासीनो का स्वागत अभिनन्दन कर व उत्तराखंड के हस्तशिल्पी दिनेश लाल द्वारा निर्मित ढोल-दमाऊ के अति प्रभावशाली प्रतीक चिन्ह सम्मान स्वरूप भेंट कर किया गया।

विश्व विद्यालय के खचाखच भरे सभागार में आयोजक संस्था पदाधिकारियों प्रमोद उनियाल तथा सुनीता जोशी द्वारा संस्था स्थापना के उद्देश्यों व विगत वर्षों में किए गए क्रियाकलापों के बावत विस्तार से अवगत कराया गया। उक्त क्रियाकलापों को निर्मित प्रभावशाली डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से भी प्रदर्शित किया गया। आयोजन के इस अवसर पर ‘अपनी धरोहर न्यास’ द्वारा प्रकाशित अपनी धरोहर स्मारिका-2025 का लोकार्पण मंचासीन जनों के साथ-साथ स्मारिका प्रधान संपादक प्रोफेसर सूर्य प्रकाश सेमवाल, संपादक चंद्र मोहन पपनै, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) गुड्डी बिष्ट, समाजसेवी के एस टकोला इत्यादि इत्यादि के कर कमलों किया गया।

कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत की उपस्थिति में कार्यक्रम आयोजक संस्था ‘अपनी धरोहर न्यास’ अध्यक्ष विजय भट्ट द्वारा संस्था स्थापना के उद्देश्यों व मिल रही सफलता के बावत अवगत कराया गया। कहा गया, संस्था का मुख्य उद्देश्य राज्य के विकास में योगदान देना, राज्य की संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन हेतु प्रयासरत रहना तथा राज्य के लोगों के रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा तथा कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्न करना मुख्य उद्देश्य है।

संस्था अध्यक्ष विजय भट्ट द्वारा बेबाक होकर कहा गया, सरकार के भरोसे कार्य ज्यादा टिकाऊ नहीं रहते हैं, इसलिए गठित संस्था द्वारा कोशिश की गई है स्थानीय लोगों को जोड़ा जाए। संस्था अपने कार्यों व मुद्दों के बल जनमानस के मध्य सफलता की ओर निरंतर अग्रसर है। लोगों में उत्साह जगा है, संस्था का कारवां बढ़ता चला जा रहा है। विश्व विद्यालयों के प्रोफेसर, लेखक, उद्योग जगत से जुड़े लोग, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े लोगों की जैसी सोच थी वैसी ही संस्था की नीव पड़ी है, भविष्य में अंचल के लिए जो भी होगा अच्छा होगा, सोचा जा सकता है।

आयोजित कार्यक्रम मुख्य अतिथि डॉ. धन सिंह रावत कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड सरकार द्वारा कहा गया, धीरे धीरे उत्तराखंड में ढोल परंपरा समाप्त हो रही है। ढोल महंगे होने से उन्होंने अनेकों ढोल वादकों को ढोल मुहैया कराए। कहा गया, हमें संकल्प लेकर अपने व्याह बरातों व अन्य शुभ अवसरों पर ढोल वादकों को आमंत्रित कर अपनी परंपराओं को संजोना होगा, उन्हें प्रोत्साहित करना होगा, चाहे हमें आंदोलन ही क्यों न करना पड़े। अवगत कराया गया, देहरादून में ढोल बज रहा है, अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं। हमें अपनी ढोल परंपरा को जीवित रखना है।

धन सिंह रावत द्वारा अवगत कराया गया, अंचल में शिक्षारत चालीस लाख बच्चों को हमारी विभूतियों के बाबत जानकारी ही नहीं थी। हमने छठी कक्षा से विरासत नामक किताब से उत्तराखंड की विरासत को संजोने का कार्य किया है, अंचल व देश की विभूतियों को भी। कहा गया, अस्सी फीसद मंदिरों में पुजारी नहीं हैं। नई पीढ़ी को यह पद्धति सिखानी होगी, नहीं तो यह समाप्त हो जायेगी। कहा गया, धारी देवी में बद्रीनाथ से ज्यादा दर्शनार्थी आते हैं। कुमाऊं के मंदिरों में भी लाखों देशी, विदेशी दर्शनार्थी आ जा रहे हैं। अंचल के पैठानी में राहु का एक ही मंदिर है। उक्त मंदिर में गोवा के मंत्री द्वारा तेईस दिनों तक पूजा अर्चना की गई है। उक्त मंदिर की बढ़ती प्रतिष्ठा को देख कयास लगाया जा सकता है भविष्य में उक्त मंदिर में भी लाखों दर्शनार्थियों का हुजूम उमड़ने लगेगा। हेमकुंड साहिब की यात्रा वर्ष में एक बार जरूर की जा रही है। आज कैंची धाम के प्रति लाखों लोगों की बढ़ती आस्था व जनसैलाब को देख वहां जाने के लिए चार बार सोचना पड़ता है। कहा गया, प्रोफेसर डी आर पुरोहित जी द्वारा विभिन्न विधाओं में कार्य किया गया है, नंदा राज जात को वैश्विक फलक पर प्रचारित किया। धन सिंह रावत द्वारा अवगत कराया गया, उन्होंने स्वयं प्रोफेसर पुरोहित द्वारा आयोजित धार्मिक यात्राओं और अन्य आंदोलनों में भाग लिया है।

आयोजक संस्था ‘अपनी धरोहर न्यास’ द्वारा कैबिनेट मंत्री को उत्तराखंड की लोक संस्कृति, पर्यावरण, कृषि आधारित साहित्य व सम्मान तथा अन्य जन सरोकारों से प्रमुख रूप से जुड़े ग्यारह सूत्री ज्ञापन पर कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत द्वारा कहा गया, सौंपे गए ज्ञापन में बासठ फीसद कार्य उनके विभाग से जुड़े हुए हैं, जिन्हें हर संभव पूरा किया जाएगा। उन्हें धरोहर बनाया जायेगा। कहा गया, अंचल से पलायन किए लोग अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति को आगे ले जा रहे हैं, जो स्थानीय स्तर पर दिखाई नहीं दे रहा है। कहा गया, हमारे किसानो का ज्ञान किसी भी उप कुलपति से कम नहीं हैं, अंचल के पांच किसानों को सरकार द्वारा डिलीट की उपाधि प्रदान की गई है। कहा गया, अनेक प्रमुख कार्यों के संवर्धन हेतु केंद्र सरकार भी बढ़-चढ़ कर मदद कर रही है।

धन सिंह रावत द्वारा कहा गया, मुख्यमंत्री धामी जी द्वारा अंचल की महिलाओं को सबसे ज्यादा आगे बढ़ाने का कार्य किया गया है। साठ हजार महिला समूहों को जीरो फीसद ब्याज पर ऋण दिया गया है। कहा गया, आज मड़ुआ की मांग इतनी बढ़ गई है, मिल नहीं रहा है। अंचल में मड़ुवे की क्लस्टर खेती कर उसके उत्पादन को बढ़ाने हेतु योजना बनाई जा रही है। अंचल में गठित रेशम फेडरेशन करोड़ों का व्यवसाय कर रहा है। एक साड़ी लाख रुपए में बिक रही है। ब्रांडिंग के बाद उत्पाद बहुत बिक रहे हैं। कहा गया, अंचल वासी आगे आकर नौले-धारों को संरक्षित कर धरोहर बनाए।

धन सिंह रावत द्वारा कहा गया, धरोहर संस्था व उसके कार्यों को प्रचारित करे। धरोहर के माध्यम से अंचल के जनमानस को ताकत मिलेगी ऐसा मेरा विश्वास है।

आयोजन के दूसरे सत्र में गठित ‘अपनी धरोहर न्यास’ संस्था द्वारा प्रथम पुस्तक कुंभ का श्रीगणेश प्रोफेसर दुर्गेश पंत महानिदेशक यूकोष्ट के कर कमलों किया गया। पुस्तक कुंभ का श्रीगणेश करते हुए दुर्गेश पंत द्वारा कहा गया, धरोहर नहीं तो कुछ नहीं, परंपराएं नहीं तो कुछ नहीं। कहा गया, जो परंपराएं इसी हिमालयी अंचल से शुरू हुई वे परंपराएं इसी अंचल में समाधि ले लें विडंबना कही जायेगी। यह हिमालयी अंचल देवभूमि भी है, युक्ति भी है, सबका समाधान इसी हिमालयी देवभूमि से ही है। कहा गया, हमारी धरोहर में विद्यापीठ हेमवती नंदन बहुगुणा विश्व विद्यालय है। जो कार्य धरोहर संस्था द्वारा किया जा रहा है, दूर तक जायेगा।

प्रोफेसर दुर्गेश पंत द्वारा कहा गया, मानव मात्र में धरोहर की दो बाते कहनी हैं, अंचल के प्रत्येक जनपद में साइंस टेक्नोलॉजी के लिए संस्थान खुल रहे हैं। मातृशक्ति से ही राज्य गठन हुआ है, उत्तराखंड उसी से प्रफ्फुलित होता है। उक्त धरोहर उत्तराखंड की थाती है।

आयोजित धरोहर संवाद के तीसरे सत्र में संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त प्रोफेसर डी आर पुरोहित के सानिध्य में उत्तराखंड अंचल गढ़वाल के सुप्रसिद्ध ढोल वादक डॉ. सुमन लाल (पुजार गांव चंदर बदनी) तथा कुमाऊं के सुप्रसिद्ध ढोल वादक मोहन राम (नलखा डुगरचा बागेश्वर) द्वारा उत्तराखंड के ढोल वाद्य के महत्व तथा उसके विभिन्न तालों के बावत ज्ञानवर्धक बातें ढोल वादन कर बताई गई। उक्त ढोल वादकों द्वारा उत्तराखंड के आंचलिक ढोल वादकों की दुर्दशा पर भी बेबाक होकर बात रखी गई, अपनी भावुकता व निराशा उजागर की गई।

आयोजन के इस महत्वपूर्ण सत्र में प्रोफेसर डी आर पुरोहित द्वारा ढोल वादन की अनेकों तालों पर प्रभावशाली अंदाज में ज्ञानवर्धक प्रकाश डाला गया व उपस्थित वादकों को उक्त तालों को ढोल में बजवा कर अंचल के जनमानस द्वारा समय-समय पर आयोजित किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के अनुष्ठानों में ढोल के महत्व पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। ढोल वादकों द्वारा विभिन्न तालों में किए गए ढोल वादन पर सभागार में उपस्थित प्रबुद्ध जनों द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गई, तालियों की गड़गड़ाहट से ढोल व दमांऊ वादकों का उत्साहवर्धन किया गया।

आयोजित शक्ति संवाद सत्र में मंचासीन प्रबुद्ध महिलाओं में प्रमुख मुख्य अतिथि श्रीनगर महापौर आरती भंडारी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. पुष्पा जोशी, अंचल की प्रसिद्ध मांगल गायिका राखी दर्गा रावत व समाज सेविकाओं में प्रमुख कंचन गुनसोला तथा सुनीता जोशी द्वारा कहा गया, उत्तराखंड की नारी शक्ति पर जितना बोला जाए कम है। उत्तराखंड की नारी शक्ति का विभिन्न क्षेत्रों में अमिट योगदान रहा है। कहा गया, उत्तराखंड की पहचान उनकी आंचलिक संस्कृति है। हम अपनी धरोहर की बात कर रहे हैं, अवलोकन किया जाए हम अपने बच्चों को क्या सिखा रहे हैं। वक्ताओं द्वारा संयुक्त परिवार की महत्ता पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया। संयुक्त परिवार को सबसे बड़ी धरोहर माना गया, जिस बल न सिर्फ परिवार बल्कि समाज के उत्थान व उसकी सामूहिक शक्ति के बाबत अवगत कराया गया। उक्त धरोहर को बचाने व समृद्ध करने हेतु महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया। प्रबुद्ध महिला वक्ताओं द्वारा आयोजित ‘धरोहर संवाद’ को अपनी जड़ों से जुड़ने का प्रेरणादाई प्रयास कहा गया। 

अल्मोड़ा से वर्चुवल संबोधन में प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया द्वारा आयोजित प्रभावशाली आयोजन हेतु आयोजकों को शुभकामनाएं देते हुए कहा गया, उत्तराखंड की लोक संस्कृति का व्यापक फलक है। ऐतिहासिक कालखंडों का अध्ययन मनन कर जानना होगा संस्कृति का विकास कैसे हुआ। कहा गया, उत्तराखंड अंचल की विशिष्ठ संस्कृति रही है जिसने भारत की संस्कृति को प्रभावित किया है। कोल जनजाति प्रथम संस्कृति की घोतक रही है। अंचल में अनेकों जनजातीया आज भी निवासरत हैं जिनका सांस्कृतिक आधार को निर्मित करने में महत्व रहा है। दक्षिण में थारू और बुक्सा जनजाति का संस्कृति के निर्माण में बड़ा योगदान है। साथ ही तीर्थों का संस्कृति निर्माण में बड़ा योगदान रहा है। अंचल के जनजीवन से जुड़ी लोकगाथाएं, गीत, संगीत में वह आज भी दिखाई देता है। कहा गया, वैदिक काल से कुमाऊं और गढ़वाल में अनेकों ऐसे शब्द हैं जो हिंदी में नहीं हैं। संस्कृत की व्यापक परंपरा अंचल में रही है। धर्म और आस्था में विश्वास करने वाले लोग अंचल में रहे हैं। अन्य संस्कृतियों के तत्वों का मिश्रण भी अंचल की संस्कृति में घुलामिला रहा है। भारत में सनातन संस्कृति का लघु रूप अंचल में देखा जाता है।

प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया द्वारा कहा गया, सभ्यता और परंपराओं से ही संस्कृति बनती है। कालांतर में विकार भी आते हैं। सांस्कृतिक परिवर्तन विकास के साथ होते हैं। सांस्कृतिक परिवर्तन विकास के साथ होते हैं। लेकिन मूल तत्व आज भी हैं। प्राकृतिक चित्रण जो हुआ है यथार्थ चित्रण रहा है। कहा गया, कालीदास के बाद व्यापक संस्कृति की परंपरा चलायमान रही है। कहा गया, ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में देखना चाहिए क्यों अंचल के गीतों में यह परंपरा छाई। अंचल की लोकगाथाओं की भी व्यापक परंपरा रही है जो करीब दो सौ प्रकार की पाई जाती है। बताया गया, चौदहवीं व पंद्रहवी सदी के बाद राजुला मालूशाही लोकगाथा सामने आई। अल्मोड़ा में नंदा देवी गाथा व गंगनाथ गाथाएं गाई जाती हैं। लोकगीतों व संस्कार गीतों की विशाल परंपरा रही है। सैंकड़ों कथाओं में हमारे विश्वास और रीति रिवाजों की परंपराएं देखी जाती हैं। लोकगीत साहित्य में लोक वनस्पतियों का व्यापक वर्णन है। आवश्यकता है अंचल का जनमानस उक्त विधाओं के ज्ञान के क्षेत्र में आगे आए। प्राणी समाज में भी प्रकृति का बड़ा प्रभाव रहा है। आज विकृतियां आ रही हैं। परंपरा और विकास एक दूसरे के विरोधी माने जाते हैं। जो समाज प्रकृति के साथ तानाबाना बुन कर चलता था आज सब दुष्प्रभावित हो रहे हैं।

प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया द्वारा कहा गया, फिल्मी जीवन यथार्थ से हट कर होता है। सोशल मीडिया में इस पर वाह्य तत्वों पर प्रभाव डाला गया है। संस्कृति के नाम पर जो भौंडे प्रदर्शन होते हैं संस्कृति पर सवाल खड़े होते हैं। कहा गया, संस्कृति के जो मूल आधार हैं उसकी जड़ों पर जाना होगा। वास्तविक स्वरूप को आगे लाना होगा, ऐसे आयोजन कर जैसा हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर में आयोजित हो रहा है।

आयोजित ‘धरोहर संवाद’ के अंतर्गत बुद्धिजीवी सत्र में गणेश कुकसाल ‘गणी’, डॉ. नंद किशोर हटवाल, कुंदन सिंह टकोला व चंद्र मोहन पपनै द्वारा अंचल के विभिन्न विधाओं से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर बेबाक होकर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। वक्ताओं द्वारा कहा गया, हम अपनी पारंपरिक लोक संस्कृति की परिपाटी पर चलायमान रहे। अपनी बोली-भाषा के महत्व को समझे। कहा गया, भाषा का ज्ञान न होने पर संस्कृति नहीं बच सकती। जिस समाज को अपनी संस्कृति बचानी होगी, उसे जानना होगा ढोल वाद्य का महत्व।

प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा कहा गया, ढोल देव वाद्य है। दुनिया में सबसे ज्यादा ढोल ही बजता है। लोग बैंड बाजे वाले को हजारों रुपया देते हैं। ढोल वादक को चंद सौ रुपए में टरका दिया जाता है। सोहन लाल, मोहन राम ने अपनी संस्कृति से संबद्ध ढोल को आज तक नहीं छोड़ा है। मोहन राम की तीन पीढ़ियां एक साथ ढोल वादन का काम कर रही हैं, जो यहां प्रत्यक्ष उपस्थित हैं।

प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा कहा गया, संस्कृति इंसानों की होती है। यही संस्कृति दुनिया के उलट फेर की कहानी होती है। वैश्विक फलक पर भी सांस्कृतिक विरासत बचाना मुख्य रहा है। ताकतवर संस्कृतियां कमजोर संस्कृतियों को निगल जाती है। संस्कृति समाधि के इतिहास के बाबत पता ही नहीं चलता। अंचल में तोलच्छा बोलने वालों ने गढ़वाली बोली अपनाई। जोहारी बोलने वालों ने कुमाऊनी बोली अपनाई जिससे ये दोनों बोलिया तोलच्छा और जोहारी समाप्त हो गई। कहा गया, पौंडा नृत्य सिर्फ ढोल में ही नाचा जा सकता है बैंड में नहीं। भाषा समाप्त होने पर बहुत कुछ समाप्त हो जाता है। लोकगीत मंच पर आ रहे हैं, लोकनृत्य समाप्त हो रहे हैं। कहा गया, कथा व कहानियां बहुत बड़ा माध्यम होती हैं संस्कृति संवर्धन हेतु। लोक साहित्य में हजारों लोगों ने बहुत कार्य किया है। उसमें से बाल साहित्य नहीं निकाला गया है। शिक्षा मानव निर्माण करती है, संस्कृति का संवर्धन करती है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, धरोहर व्यापक शब्द है। धरोहर मूर्त भी है अमूर्त भी। धरोहर का ढांचा भौतिक है, इसकी रक्षा करना हम सभी का कर्तव्य है। कहा गया पहले देशाटन और तीर्थाटन होता था आज भोग़टन हो रहा है, जो हास कर रहा है। कहा गया, हमारी बोली भाषा सब समावेशी है। जिस नारी ने समस्त विश्व को पर्यावरण का अर्थ समझाया उस चिपको नारी गौरा देवी को भारत रत्न मिले।

विद्ववान वक्ताओं द्वारा कहा गया, धरोहर सबसे जुड़ी हुई है, मिट्टी से जुड़ी हुई है। जो कुछ भी अंचल वासी राज्य और राज्य के बाहर जुगत कर रहे हैं हृदय से जुड़ कर कर रहे हैं। कहा गया, देवभूमि युक्ति भूमि भी है, योग से जुड़ी हुई भूमि रही है। हिमालय ने सदा सॉल्यूशन दिए हैं, यह बात दुनियां जान रही है। युक्ति महत्वपूर्ण पक्ष है, अंचल के लोगों का बड़ा योगदान रहा है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, उत्तराखंड की लोकसंस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी अति समृद्ध रही है। अंचल का समयबद्ध विकास न होने से पलायन का क्रम बढ़ा है। संस्कृति का भी पलायन हुआ है। देश के विभिन्न राज्यों में प्रवासरत अंचल के लोगों द्वारा अंचल की पारंपरिक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु बड़े स्तर पर प्रयास किए जाते रहे हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर उत्तराखंड की लोक संस्कृति ने परचम लहराया है। कहा गया, दुखद है स्थापित केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा उत्तराखंड की आंचलिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े कलाकारों और संस्थाओं कोविगत एक दशक से दरकिनार कर उनको अनदेखा किया जाता रहा है। अंचल की पारंपरिक संस्कृति को मिटाने का काम किया जा रहा है जो अति निंदनीय है। कहा गया, लोक कलाकार ही नहीं रहेंगे, सांस्कृतिक संस्थाएं ही खत्म हो जाएंगी तो लोक संस्कृति कैसे बचेगी।

धरोहर संवाद के दूसरे दिन का आयोजन श्रीनगर के अदिति वेंडिंग पॉइंट के विशाल पंडाल में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रांतीय अध्यक्ष उत्तराखंड दिनेश सेमवाल की प्रभावी उपस्थिति तथा गणेश कुकसाल ‘गणी’ की अध्यक्षता व प्रोफेसर डी आर पुरोहित, प्रो. एस सी सती, प्रो. (डॉ.) गुड्डी बिष्ट तथा आयोजक संस्था अपनी धरोहर अध्यक्ष विजय भट्ट के सानिध्य में आयोजित किया गया।

आयोजित दूसरे दिन के धरोहर संवाद का श्रीगणेश प्रसिद्ध ढोल वादक मोहन राम व डॉ. सोहन लाल के ढोल वादन, मंचासीन मुख्य व विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन तथा मांगल गीत गायन तथा मुख्य व विशिष्ट अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन कर उन्हें स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया।

प्रोफेसर डॉ गुड्डी बिष्ट द्वारा मंचासीन मुख्य व अन्य अतिथियों के परिचय पर प्रकाश डाला गया। 22 जून को हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय चौरास परिसर में आयोजित महिलाओं के शक्ति संवाद सत्र में प्रबुद्ध महिलाओं द्वारा व्यक्त किए गए महत्वपूर्ण बातों से अवगत कराया गया। समाजसेवी के एस टकोला द्वारा उत्तराखंड की खेती किसानी व पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को आधार बना कर विचार रखे गए। प्रोफेसर डी आर पुरोहित द्वारा ढोल वादकों का परिचय और उनके ढोल वादन विधा के ज्ञान व ढोल वादकों से ढोल वादन की विभिन्न तालों को प्रभावशाली अंदाज में श्रोताओं के मध्य बजवा कर ढोल के महत्व और ढोल वादकों के अदभुत ज्ञान से अवगत करवाया गया। अपनी धरोहर संस्था के विभिन्न क्रिया कलापों पर निर्मित डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी इस अवसर पर किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रांतीय अध्यक्ष उत्तराखंड दिनेश सेमवाल द्वारा आयोजित धरोहर संवाद में आमंत्रित करने हेतु आयोजकों का धन्यवाद व्यक्त कर कहा गया, वे विद्ववान नहीं हैं, एक सामान्य शिक्षक रहे हैं। कहा गया, जो धरा में है वह हमारा है। वेद, पुराण, उपनिषद ज्ञान के भंडार थे जो ज्ञान अब दिखता नहीं पुनः उस ज्ञान भंडार की ओर लौटना होगा। गर्व से हमें कहना होगा हम हिन्दू हैं। कहा गया, व्यक्ति अगर चरित्रवान होगा तो कुछ नहीं हो सकता, उद्देश्य पूर्ति के लिए कार्य पद्धति का होना जरूरी है। कहा गया, गोल ज्यू संदेश यात्रा की साढ़े तीन हजार किलोमीटर की यात्रा कर भक्ति भाव जगाने का कार्य अपनी धरोहर न्यास संस्था अध्यक्ष विजय भट्ट जी द्वारा किया गया। प्रांतीय अध्यक्ष दिनेश सेमवाल द्वारा कहा गया, बिना विचलित हुए आगे बढ़ो, ध्येय लक्ष्य शुद्ध होना चाहिए। कहा गया, हिमालय से सागर तक निर्मित पृथ्वी देवों ने बनाई है। सब भारत माता की संतान हैं। प्राचीन साहित्य विज्ञान सम्मत है। पूजन से पूर्व संकल्प लेना होता है। हमारी संस्कृति आदिकाल से है। हमारी संस्कृति विराट है, उदार है, सबको स्थान दिया है। संतों ने अपने हिसाब से अलख जगाया है।

उत्तराखंड प्रांतीय अध्यक्ष दिनेश सेमवाल द्वारा कहा गया, परिवार की भाषा संकुचित हो गई है। ज्ञान संस्कार की निश्चित पद्धति नहीं है। हमें सामूहिक रूप से भोजन व संस्कार देने वाला घर बनाना है। वर्तमान में भोजन हेतु होटल संस्कृति बन रही है। हमें पारंपरिक भोजन बनाना चाहिए। उत्सवों में नए कपड़े बना कर उसे प्रचलन में लाए। कहा गया, एकत्रीकरण का बड़ा महत्व है। दो घरों का एक कुटुंब बनाना होगा, यह सोच बनानी पड़ेगी। शुद्ध पर्यावरण हेतु जल संरक्षण जरूरी है। ऊर्जा की बचत जरूरी है। कूड़ा प्रबंधन अपने घर अंदर से शुरू करना होगा। पशु और पक्षियों का संरक्षण पर्यावरण संरक्षण हेतु जरूरी है। अपने घर के आसपास संजीवनी वाटिका जरूर लगानी चाहिए। उक्त सभी कार्यों से प्रकृति में संतुलन बनेगा। परिवार, सामाजिक संरक्षण, कर्तव्य बोध पर भी प्रांतीय अध्यक्ष उत्तराखंड दिनेश सेमवाल द्वारा ज्ञानवर्धक तथ्यों से अवगत कराया गया। कहा गया, हमारी धरोहर अक्षुण्य रहनी चाहिए।

अपनी धरोहर न्यास संस्था अध्यक्ष विजय भट्ट द्वारा मुख्य अतिथि व अन्य सभी विशिष्ट अतिथियों, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय से जुड़े प्रोफेसरों व अन्य स्टाफ तथा दिल्ली, देहरादून, हल्द्वानी, पौड़ी, बागेश्वर तथा राज्य के अन्य विभिन्न स्थानों से धरोहर संवाद में पधारे सभी प्रबुद्ध जनों का आयोजन में सम्मिलित होने हेतु आभार व्यक्त कर आयोजित दो दिनों तक चले ‘धरोहर संवाद’ समापन की घोषणा की गई।

श्रीनगर में दो दिनों तक चले ‘धरोहर संवाद’ के विभिन्न सत्रों का प्रभावशाली मंच संचालन डॉ. प्रमोद उनियाल, प्रो. गुड्डी बिष्ट, डॉ. नंद किशोर हटवाल, प्रो. डी आर पुरोहित, गणेश कुकसाल ‘गणी’, कमल किशोर डिमरी, प्रोफेसर अनूप सनवाल इत्यादि इत्यादि द्वारा बखूबी संचालित किया गया।

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