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दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडी पत्रकारों की हरीश रावत संग ‘चाय पर चर्चा’ -बोले, “हमारी आवाज़ भी सुनी जाए”

Amar sandesh नई दिल्ली।दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आज एक विशेष मुलाकात के दौरान उत्तराखंड मूल के दिल्ली प्रवासी पत्रकारों और प्रकाशकों ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से ‘चाय पर चर्चा’ के दौरान अपने विचार रखे। इस संवाद में प्रवासी पत्रकारों ने उत्तराखंड सरकार द्वारा विज्ञापन वितरण नीति में हो रहे भेदभाव और उपेक्षा पर खुलकर चर्चा की।

पत्रकारों ने कहा कि वे वर्षों से उत्तराखंड की जनहित, समाज और शासन से जुड़ी खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित करते रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार की ओर से न तो उन्हें उचित पहचान मिलती है और न ही नियमित सरकारी विज्ञापन। पत्रकारों का कहना था कि सरकार करोड़ों रुपए के विज्ञापन तो बांटती है, परंतु दिल्ली में बसे उत्तराखंड मूल के छोटे समाचार पत्रों और पोर्टलों को नज़रअंदाज़ किया जाता है।

चर्चा के दौरान कई पत्रकारों ने यह भी कहा कि अन्य राज्यों की सरकारें अपने प्रवासी पत्रकारों को सम्मान और सहयोग देती हैं, जबकि उत्तराखंड में ऐसा माहौल नहीं दिखता। न तो मुख्यमंत्री या सांसद दिल्ली प्रवास के दौरान प्रवासी पत्रकारों से संवाद करते हैं और न ही राष्ट्रीय पर्वों या राज्य स्थापना दिवस जैसे अवसरों पर आमंत्रण दिया जाता है।

इस मौके पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरिपाल रावत,पंकज निगम ,समाजसेवी एव पत्रकार अनिल पंत, कुशाल जीना, वरिष्ठ पत्रकार —हरीश लखेड़ा, दीप सिलौड़ी, योगेश भट्ट, अमरचंद, निम्मी ठाकुर, सतेन्द्र राठौर, पंकज बिष्ट,सहित कई अन्य मौजूद रहे।

पत्रकारों की बातें ध्यानपूर्वक सुनने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि प्रवासी पत्रकार उत्तराखंड की पहचान को देशभर में मजबूत कर रहे हैं। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वे मुख्यमंत्री से मिलकर पत्रकारों की समस्याएं उठाएंगे और उचित समाधान के लिए प्रयास करेंगे।

श्री रावत ने यह भी कहा कि उनकी सरकार के समय छोटे और सोशल मीडिया पोर्टलों को मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू की गई थी, जिसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी पत्रकारों से एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान किया और सुझाव दिया कि “आप सब मिलकर एक साझा बैनर के तहत पोर्टल और यूट्यूब चैनल चलाएं ताकि आपकी आवाज़ मज़बूती से सुनी जाए।”

अंत में उन्होंने सामाजिक संस्थाओं और समाजसेवियों से भी अपील की कि वे प्रवासी पत्रकारों के प्रयासों को समर्थन और सहयोग दें, क्योंकि यही पत्रकार देश की राजधानी में उत्तराखंड की अस्मिता और जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

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