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“देश की धड़कन, भारत की आवाज़ – आकाशवाणी: 23 भाषाएं, 182 बोलियाँ और एकता का सेतु”

     ये आकाशवाणी है

Amar sandesh नई दिल्ली।भारत एक ऐसा देश है जहां भाषा हर सौ किलोमीटर में बदल जाती है। यहां न केवल संस्कृति में विविधता है, बल्कि हर क्षेत्र की अपनी एक विशिष्ट बोली, ध्वनि और अभिव्यक्ति भी है। इस विविधता के बीच भारत को एकता के सूत्र में बाँधने का काम जिस संस्था ने दशकों से पूरी सादगी, गहराई और प्रभाव के साथ किया है, वह है – आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो)।

आकाशवाणी सिर्फ एक प्रसारण माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा की आवाज़ है। यह वह मंच है जिसने हर भारतीय को उसकी अपनी भाषा में संवाद करने का अवसर दिया, उसकी भावनाओं को मंच प्रदान किया और उसे देश की मुख्यधारा से जोड़ा।

आकाशवाणी का यह अनूठा योगदान केवल शब्दों तक सीमित नहीं है। आज यह संस्था 23 भाषाओं और 182 बोलियों में नियमित रूप से प्रसारण करती है, जो अपने आप में विश्वभर में एक दुर्लभ उपलब्धि है। जहां एक ओर वैश्विक प्रसारण संस्थान अंग्रेज़ी या कुछ चुनिंदा भाषाओं तक सिमटे हुए हैं, वहीं आकाशवाणी भारत की भाषाई विविधता को समान महत्व और मंच देता है।

स्वतंत्रता से पहले 1936 में ऑल इंडिया रेडियो के रूप में आरंभ हुई यह संस्था, 1957 में “आकाशवाणी” के रूप में प्रसिद्ध हुई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, यह माध्यम समाचार, संदेश और विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख साधन बना। युद्ध के समय में, चुनावों के दौरान, आपदा की घड़ी में या फिर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में – आकाशवाणी देश के हर नागरिक तक सबसे पहले पहुंचने वाला माध्यम बना।

एक समय था जब खबरों के लिए लोगों का पहला और आखिरी भरोसा आकाशवाणी ही हुआ करता था। “ये आकाशवाणी है, अब आप समाचार सुनिए…” – यह उद्घोष हर घर, हर दुकान, हर गाँव के चौपाल में सुनाई देता था। रेडियो का छोटा-सा डिब्बा लोगों के लिए समाचार, संगीत, भक्ति, मनोरंजन और शिक्षा का विश्वकोश बन गया था।

टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव के साथ, जहाँ मोबाइल, टीवी और इंटरनेट ने नई पीढ़ी को घेर लिया है, वहीं आकाशवाणी ने स्वयं को समय के अनुरूप ढाला भी है। अब रेडियो केवल एएम और एफएम तक सीमित नहीं, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी सक्रिय है। NewsOnAIR मोबाइल ऐप, विविध भारती, एफएम गोल्ड, एफएम रेनबो जैसे चैनल्स के माध्यम से यह संस्था आज भी लाखों लोगों के दिलों में बसती है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का मासिक कार्यक्रम “मन की बात” भी इसी माध्यम से देश की आवाज़ बनकर गूंजता है।

ग्रामीण भारत और दूरदराज़ क्षेत्रों में आज भी रेडियो सबसे सुलभ, सरल और भरोसेमंद माध्यम है। किसान मौसम की जानकारी और कृषि सलाह आकाशवाणी से प्राप्त करते हैं। महिलाएं स्वास्थ्य, पोषण और आत्मनिर्भरता से जुड़े कार्यक्रम सुनती हैं। छात्र परीक्षा की तैयारी और सामान्य ज्ञान के लिए रेडियो का सहारा लेते हैं। और सीमाओं पर तैनात हमारे सैनिक – वे भी जयमाला जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से अपने परिवार की यादें संजोते हैं।

यह केवल सूचना नहीं, भावना का संवाद है।

भाषा से परे जाकर जब कोई बुज़ुर्ग अपनी मातृभाषा में भजन सुनता है, जब कोई बच्चा पहली बार रेडियो पर अपनी बोली में कहानी सुनता है, तब आकाशवाणी एक तकनीकी सेवा नहीं, बल्कि संवेदनाओं का सेतु बन जाता है। यही तो है भारत की सच्ची पहचान – विविधता में एकता।

आकाशवाणी ने समय के साथ आधुनिकता को अपनाया, लेकिन अपनी आत्मा को नहीं खोया। यह भारत के संविधान में वर्णित भाषाओं को समान महत्व देता है और उन बोलियों को भी मंच प्रदान करता है जो किसी मंच की तलाश में थीं। यह भारत को भारत से जोड़ने वाला माध्यम है – आत्मीय, सशक्त और सतत्।

आज जब देश डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा है, तब भी आकाशवाणी की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी 50 या 70 वर्ष पहले थी। यह देश की धड़कन है, आवाज़ है, चेतना है।

आज भी जब रेडियो पर ‘ये आकाशवाणी है…’ की उद्घोषणा सुनाई देती है, तो वह केवल सूचना की शुरुआत नहीं होती, वह विश्वास की पुनः स्थापना होती है।

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