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भीमताली शैली रामलीला की मुख्य पहचान है

सी एम पपनैं
नई दिल्ली। उत्तराखंड की भीमताली शैली रामलीला अपने आप मे बहुत सशक्त है। मानस के पद व चौपाइयों पर आधारित गेय शैली मे दस रात्रियों तक क्रमशः विभिन्न रागों के गायन पर आधारित यह रामलीला विश्व का सबसे बड़ा गेय नाट्य है।
रामलीला उत्तराखंड के लोगों की आस्था का सबसे बड़ा सम्बल रहा है। जिसको मंचित करना, देखना, सुनना और जीवन मे उतारना उत्तराखंडी लोगो की मानसिकता का आदर्श है। इसी आदर्श स्वरूप इस वर्ष दिल्ली एनसीआर के उत्तराखंडी प्रवासी बहुल इलाकों मे करीब दो सौ उत्तराखंडी प्रवासी संस्थाओं द्वारा रामलीला मंचन विभिन्न शैलियों व दृष्टियों मे मंचित किया जा रहा है।
दस दिनी उत्तराखंडी भीमताली शैली की रामलीला की गायन शैली व रागों की महत्ता को देखते हुए, जो प्रत्येक उत्तराखंडी मे आत्मसात है, इस पारंपरिक शैली की रामलीला को चंद दिनों या घन्टो मे मंचित करना किसी चुनोती से कम नही है।
दस दिनी भीमताली शैली रामलीला को मात्र तीन दिनों मे मंचित करने की चुनोती को पहली बार सन 1985 मे उत्तराखंड के प्रख्यात संगीतकार मोहन उप्रेती ने सु-विख्यात नाट्य निर्देशक बी एम शाह के निर्देशन सहयोग से पर्वतीय कला केंद्र के द्वारा मंचित कर ख्याति अर्जित की थी।
भीमताली शैली की इस गेय प्रधान रामलीला के अनेक शो देश-विदेश के अंतरराष्ट्रीय रंगमंचों पर पर्वतीय कला केंद्र द्वारा मंचित किए गए हैं।
भीमताली शैली की इस रामलीला को 6 अक्टूबर की सांय आईटीओ स्थित प्यारेलाल भवन सभागार मे उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगायक व संस्थापक ‘रुद्रवीणा’ संस्था शिवदत्त पंत द्वारा करीब तीस कलाकारों के कुशल सहयोग से मात्र चार घन्टे की अवधि मे मंचित करने का चुनोतीपूर्ण सराहनीय प्रयास किया गया।
‘रुद्रवीणा’ संस्था द्वारा आयोजित इस रामलीला का श्रीगणेश पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी के संबोधन व नैनीताल-उधमसिंह नगर सांसद अजय भट्ट, विश्व ब्राह्मण सभा उपाध्यक्ष के सी पांडे व दिल्ली के पूर्व भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट के कर कमलो दीप प्रज्वलन की रश्म के साथ प्रारम्भ हुआ।
रामलीला आयोजक ‘रुद्रवीणा’ संस्था के संरक्षक व विश्व ब्राह्मण सभा के उपाध्यक्ष के सी पांडे द्वारा मुख्य अतिथि चंद्रयान दो के वैज्ञानिकों व देश की वर्तमान सत्ता के मुखिया जैसी हस्तियों के गुरु रहे डॉ मुरली मनोहर जोशी के सम्मान मे उनके आदर्श व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला, आयोजन मे आने हेतु उनका आभार व्यक्त किया। अवगत कराया उनकी संस्था का रामलीला मंचन का 2018 के बाद 2019 मे यह दूसरा चुनोतीभरा प्रयास है। डॉ मुरली मनोहर जोशी, सांसद अजय भट्ट व मोहन सिंह बिष्ट के साथ-साथ अन्य आमंत्रित अतिथियो विनोद बछेती, गोपाल उप्रेती, दीप मोहन नेगी इत्यादि को सम्मान स्वरूप पुष्प गुच्छ व संस्था स्मृति चिन्ह भेट किए गए। सांसद अजय भट्ट ने श्रोताओं को संबोधित कर रामकथा के महत्व व उसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
चार घंटे की रामलीला का श्रीगणेश श्री रामचंद्र कृपालु भजमन…। श्रीराम वंदना से किया गया। मंचित रामलीला के दृश्यों मे सूत्रधार-नटी, रावण, कुंभकरण तथा विभीषण द्वारा हिमालय मे शिव तपस्या कर वरदान हाशिल करना, सन्तान विहीन दशरथ का चिंता व्यक्त कर मुनि आज्ञानुसार यज्ञ हेतु सहमत होना, दशरथ दरबार मे विश्वामित्र का आगमन व राम लक्ष्मण को मुनि की रक्षा हेतु वन भेजना, ताड़िका बध,  सीता स्वयंवर मे लक्ष्मण-परशुराम संवाद तथा सीता की भावपूर्ण विदाई, कैकयी-मंथरा संवाद, दशरथ-कैकयी संवाद, राम-लक्ष्मण-सीता वन गमन, सूर्पनखा नासिका क्षेदन, पंचवटी मे कपटी मृग आगमन, सीता हरण-जटायु मरण, शबरी आश्रम मे राम लक्ष्मण,  किष्किंधा मे राम-हनुमान मिलन, रावण-अंगद संवाद, राम-रावण युद्ध तथा राजतिलक तक की रामलीला का मंचन चार घन्टे की चुनोतीपूर्ण अवधि मे सफलता पूर्वक सम्पन्न किया गया।
मंचित रामलीला मे मानस की चौपाइयों व दोहो के गायन के साथ-साथ संवाद व संगीत की प्रधानता रही। हिमालय मे शिव-पार्वती दर्शन दृश्य ने रामलीला को जहां अच्छी शुरुआत दी, वही सीता स्वयंवर मे सीता की विदाई दृश्य ने श्रोताओं को भाव विभोर किया। परशुराम-लक्ष्मण संवाद व अंगद-रावण संवाद बेहद कम समय मे समेटे गए, फिर भी ठीक-ठाक रहे। कैकयी आरती वर्मा, मंथरा व शबरी संजय रावत, दशरथ महेश उपाध्याय, सूर्पनखा बबीता भंडारी, रावण व परशुराम शिवराज अधिकारी, नर्तक राजा व अंगद ललित मोहन, जनक मोहन सती व हनुमान की भूमिका मे विरेन्द्र कैडा ने प्रभावशाली अदाकारी व व्यक्त संवादों तथा मधुर गायन से श्रोताओं को प्रभावित किया।
राम-लक्ष्मण व सीता की भूमिका मे क्रमशः बसंत नेगी, भुवन शर्मा तथा अंजलि नोटियाल ने अच्छे गायन, संवाद व अभिनय की यादगार छाप छोडी।
दिल्ली रंगमंच के बड़े बैनरों से जुड़े कलाकार अखिलेश भट्ट, भूपाल सिंह बिष्ट, राजेंद्र नेगी तथा महेंद्र लटवाल ने क्रमश सूत्रधार/मेघनाथ, सुमंत, कपटी मृग व विश्वामित्र पात्र रूप मे शानदार अभिनय व संवाद बोल श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
मंचीय व्यवस्था, दृश्यों के बदलाव, मंच पीछे से व्यक्त रामलीला कथासार व कही- कही वाद्द्य संगीत मे तालमेल का अभाव दृष्टिगत था। पात्रो की वस्त्र सज्जा, आभूषण व श्रृंगार रामकथा के अनुकूल व प्रभावशाली था। प्रकाश व्यवस्था मंचित दृश्यों के अनुकूल थी।
मंचित रामलीला का सफल संगीत निर्देशन विरेंद्र नेगी ‘राही’ का था। हारमोनियम पर शिवदत्त पंत, तबला गौरव पंत, की बोर्ड विरेंद्र नेगी ‘राही’, बांसुरी विरेंद्र शैलानी, आप्टोपैड पर अरुण तिवारी ने संगत की। पर्दे के पीछे पाशर्व गायक-गायिका की भूमिका पुष्कर शास्त्री व दीपा पंत पालीवाल ने बखूबी निभाई।
‘रुद्रवीणा’ संस्थापक व सु-विख्यात लोकगायक शिवदत्त पंत एक विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। जिसकी पुष्ठि उनके द्वारा मंचित रामलीला के नाट्य निर्देशन से होती है। विगत दो दशकों से देश के अनेक शहरो मे उत्तराखंड के लोकगीतों, नृत्यो व लोकसंगीत को मंचित कर शिवदत्त पंत ने उत्तराखंड की पारंपरिक समृद्ध लोक सांस्कृतिक धरोहर के प्रचार प्रसार के मुख्य कुशल ध्वज वाहक के रूप मे काफी ख्याति अर्जित की है।
भीमताली शैली की दस दिनी रामलीला को चार घंटे मे सम्पन्न कर इस सु-विख्यात लोकगायक ने चुनोती भरा एक नया आयाम जरूर प्रस्तुत किया है। परंतु इस पारंपरिक गीतनाट्य शैली की रामलीला की संरचना मे जो रागों की विविधता है, जिसे सभी पात्र गाकर चरित्रों का विकास करते हैं। भीमताली शैली की रामलीला की मुख्य पहचान है। इस विधा को कायम रखना जरूरी है। तभी इस विश्व विख्यात रामलीला की मौलिकता कायम रह सकेगी। रचनात्मक रूप से इस गेय नाट्य मे अभिबृद्धि होती रहे, यह परंपरा आधुनिक रंगमंच पर इस प्रकार मंचित हो जिससे श्रोता इस भीमताली शैली की रामलीला के आकर्षण का संपूर्ण आनंद ले सके।
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