उत्तराखंड के सिविल सर्विस अधिकारियों, प्रवासी सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा अयोजित होली मिलन समारोहों में झूमा जनमानस
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। आधुनिक दौर में परंपरागत सांस्कृतिक धरोहर का क्षय धीरे-धीरे होता दिख रहा है। फिर भी दिल्ली एनसीआर में रच बस गए उत्तराखंडी प्रवासी बन्धुओं द्वारा अंचल की समृद्ध सांस्कृतिक होली गायन परंपरा के संरक्षण व संवर्धन का भरसक प्रयास किया जा रहा है। उत्तराखंडी प्रवासी बहुल इलाकों के घरो, भवनों व सभागारों में प्रवासी जनों को बड़ी संख्या में इकठ्ठा होकर बैठ व खड़ी होली गायन की महफिल सजा, परिपाठी को संजोए हुए देखना, सुनना सुकून देता नजर आता है। इस क्रम में गढ़वाल भवन, अल्मोड़ा भवन व नेहरू स्टेडियम के साथ-साथ समस्त उत्तराखंडी बहुल इलाकों में होली गायन की धूम मची रही। इस क्रम में हिंडन घाट किनारा भी होल्यारों से अछूता नहीं रहा। उक्त सब आयोजनों का अवलोकन कर समझा जा सकता है, उत्तराखंड के प्रवासी जनों में अपनी पारंपरिक लोक धरोहर को संजोए रखने के प्रति कितनी अगाध श्रद्धा व प्रेम भावना निहित है, इस आसमान को छूती महंगाई व बहुमूल्य समयाभाव के युग में भी।
होली के गीत-संगीत से सराबोर भव्य होली मिलन कार्यक्रम का एक ऐसा ही भव्य आयोजन 23 मार्च को नेहरु स्टेडियम के वीआईपी लांच में उत्तराखंड के सिविल सर्विस से जुडे़ अधिकारियों द्वारा ‘छबीलो गढ़वाल मेरो रंगीलो कुमाऊं’ होली मिलन समारोह अयोजित किया गया था। होली गीत, संगीत के साथ-साथ उत्तराखंड की लोकगायन की विभिन्न विधाओं के इस आयोजन का संगीत निर्देशन किया था विरेंद्र नेगी ‘राही’ द्वारा। गायक, गायिकाओं में प्रमुख थे नैन नाथ रावल, कमला देवी, भुवन रावत, भुवन गोस्वामी, मधु बेरिया साह, दीपा पंत पालीवाल, सौरव मैठानी तथा जौनसार के सूरत सिंह चौहान, सुल्तान सिंह तोमर, चमन रावत, तिलक राम शर्मा तथा राम सिंह तोमर।
आयोजित होली मिलन समारोह गणेश वंदना से आरंभ किया गया। होली गायन के गीतों में उपस्थित गायक कलाकारों द्वारा-
अखियन पड़त गुलाल….।
मोरी आंखो में डारी गुलाल….।
चल उड़ी जा भंवर तुझे मारंगे…।
मेरो री मन मोहन ललना…।
भर मुठ्ठी मारो गुलाल मेरो पिया..।
इत्यादि इत्यादि होली गीतों ने होली मिलन समारोह में उपस्थित उत्तराखंड के सिविल सर्विस से जुडे़ आईएएस, आईआरएस, आईपीएस, आईएफएस इत्यादि इत्यादि शीर्ष अधिकारियों को झूमने, नाचने व गाने को बाध्य किया। दीपा पंत पालीवाल के मिश्रित गायन, कमला देवी के लोकगायन व मधु बेरिया साह के शास्त्रीय होली गायन के साथ-साथ अल्मोड़ा के बुजुर्ग कैलाश चंद्र पांडे द्वारा लोकगायन की विभिन्न विधाओं में प्रस्तुत लोकगीतों ने करीब पांच घंटे तक चलायमान होली मिलन समारोह को यादगार बनाया।
सिविल सर्विस अधिकारियों द्वारा आयोजित समारोह को मुख्य आयोजन कर्ता व संयोजक हीरा बल्लभ जोशी (आईआरएस) द्वारा संबोधित कर अयोजन के मकसद के बावत अवगत करा, कहा गया, बाल्यकाल में उत्तराखंड के सुदूर ग्रामीण गांव में पाटी-दवात पकड़ शिक्षा की शुरुवात की थी। अंचल की लोक संस्कृति से रूबरू जरुर हुआ था, लेकिन उसकी जड़ व महत्ता तथा उससे जुड़े सामाजिक ताने बाने को बाद के दिनों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद ही जान पाया, उससे जुड़ पाया। अवगत कराया गया, अंचल विभिन्न स्मृद्ध विधाओं से ओतप्रोत है। बहुत से वाद्ययंत्र हैं, जो हमारी समृद्ध लोक संगीत के द्योतक हैं, इन वाद्ययंत्रों का जनक भी हमारा अंचल ही है। गायन विधा ऐसी है जो सवाल भी करती है, जवाब भी देती है और हंसी ठिठोली भी करती नजर आती है। लेकिन आज उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल से हो रहे भारी पलायन की वजह से गायन व वादन की अनेकों विधाएं समाप्ति की ओर अग्रसर हैं। ग्रामीण अंचल में आयुर्वेद से जुड़ी वैद्य इलाज की परंपरा का उन्मूलन कष्ट दायक है। अंचल में उपचार हेतु जड़ी-बूटियां मौजूद हैं, परंतु ज्ञान हास की कगार पर है, जो कष्ट दायक है। अवगत कराया गया, आज के आयोजन में अंचल के कुछ ऐसी लोकगायन की विभूतियों को आमंत्रित कर उनका गायन उस विधा के संरक्षण व संवर्धन हेतु करवाया जा रहा है, जिससे आज की प्रवासी युवा पीढ़ी को एक संदेश पहुंचाया जा सके। अंचल के लोग लोकगायन व वादन से जुडे़ कलाकारों को अहमियत दे, उनकी आर्थिक मदद कर अंचल की विभिन्न विधाओं का संरक्षण व संरक्षण कर अपनी आंचलिक सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में अपनी भूमिका का निर्वाह करें।
आयोजित होली मिलन समारोह का प्रभावशाली मंच संचालन नीति आयोग से जुडे़ अधिकारी युगल जोशी द्वारा संजय पंत (आईएएस), आर सी जोशी (आईआरएस), अरुण विजलवान (आईआरएस), भूपेंद्र कैंथोला (आईआरएस), दिनेश फुलारा, खुशाल सिंह रावत इत्यादि इत्यादि के सानिध्य में बखूबी किया गया।
होली मिलन समारोह का एक और प्रभावशाली आयोजन 23 मार्च की रात्रि को मीडोस क्लब, सैक्टर 108 नोएडा में उद्योग जगत की प्रमुख कंपनी टाटा व देश की कई अन्य कंपनियों में प्रमुख रूप से जुडे़ रहे उत्तराखंड की विभूतियों में प्रमुख रविंद्र जोशी और उनकी धर्म पत्नी ज्योति के सौजन्य से आयोजित किया गया। उक्त होली गायन के आयोजन में उत्तराखंड के जाने माने लोक गायकों व गायिकाओं में प्रमुख डॉक्टर कुसुम भट्ट, दिवान कनवाल व दीपा पंत पालीवाल द्वारा मोती साह के संगीत निर्देशन में होली गीतों ने ऐसा यादगार समां बांधा जो आमंत्रित श्रोताओं के दिलो दिमाग में लंबे समय तक संजोया रहेगा।
दिल्ली प्रवास में उत्तराखंडी प्रवासी जनों द्वारा अयोजित होली गीत-संगीत के आयोजनों में शास्त्रीय रागों से ओतप्रोत होली गायन में श्रोताओं को गाते-झूमते व सराहते देख सुकून मिलता है। इसी सुकून की प्राप्ति रविन्द्र जोशी व उनकी धर्मपत्नी ज्योति द्वारा आयोजित भव्य होली मिलन में बड़ी संख्या में उपस्थित प्रबुद्घ आमंत्रित अतिथियों के मध्य दृष्टिगत हुआ जो उक्त श्रोताओं की यादों में लम्बे अर्से तक रमा रहेगा।
उत्तराखंड के प्रवासी जनों के लिए होली महापर्व दिल में उमंग और खुशियों की सौगात लेकर आता है। अंचल के प्रवासी जनों के लिए होली रंगों के साथ-साथ रागों के संगम का अनूठा महापर्व है। दो माह तक प्रवासी बन्धु अपने घरों में बैठकी होली का उत्साह पूर्वक आयोजन कर न सिर्फ भरपूर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं, उत्तराखंड की इस समृद्ध लोकगायन व संगीत विधा का संवर्धन व संरक्षण भी करते नजर आते हैं।
उत्तराखंड की बैठकी व खड़ी होली को सांस्कृतिक विशेषता के तौर पर पूरे देश व वैश्विक फलक पर जाना जाता रहा है। विभिन्न रागों पर आधारित शास्त्रीय गायन बैठकी होली में ब्रज के साथ-साथ उर्दू का प्रभाव भी झलकता है। होली गायन की इस लोकविधा ने हिंदुस्तानी गीत-संगीत को समृद्ध करने के साथ-साथ समाज को एक नई समझ भी दी है। इस विशेषता के कारणवश इस होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है।
समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के नाते उत्तराखंडी गायन होली का प्रचलन व ख्याति सिर्फ उत्तराखंड तथा दिल्ली मे प्रवासरत अंचल वासियों तक ही सीमित न रह कर बढ़ते भू-मंडलीकरण के दौर में राष्ट्रीय व अन्तर्रराष्ट्रीय फलक पर भी उत्तराखंड के प्रवासी जनों के साथ-साथ अन्य समाज के लोगों के बीच भी प्रभावशाली पैठ जमाए हुए है।
उत्तराखंड की बैठकी होली कद्रदानों व कलाकारों दोनों का साझा मंच रहा है। दिल्ली प्रवास में उत्तराखंडी होली का शुभारंभ ऐतिहासिक रहा है। देश के गृहमंत्री रहे भारत रत्न स्व.पंडित गोबिंद बल्लभ पंत के सरकारी आवास पर आयोजित होने वाले होली समारोह से दिल्ली प्रवास में उत्तराखंड के होली गीत-संगीत का शुभारंभ माना जाता है। जिसका क्रम नब्बे के दशक तक लाल किले के प्रांगण तक पहुच, निर्बाध चलायमान रहा। प्रति वर्ष बिना आयोजको वाले इस होली उत्सव का समापन उत्तराखंड के प्रवासी जनों द्वारा छलड़ी के दिन लालकिले के प्रांगण मे सूर्य अस्त होने के साथ साज-बाज की गूंज के मध्य कर दिया जाता था।
सन 1974 से मंडी हाउस स्थित श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ख्यातिप्राप्त राष्ट्रीय होली महोत्सव जो विगत 2015 तक निर्बाध आयोजित किया जाता रहा, उक्त होली उत्सव में उत्तराखंड की सु-विख्यात सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र द्वारा उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली धाक जमाए रखी थी।
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते उनके आवास पर आयोजित होली उत्सव में भी पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली को खड़ी होली की धूम मचाने का अवसर मिला था। उक्त खड़ी होली आयोजन में अटल सरकार के कैबिनट मंत्रियों, विपक्षी दलों के नेताओं अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा कैबिनेट सचिव तथा अन्य जानेमाने पत्रकारों को नाचते-झूमते देखा जा सकता था। विश्व के अनेक देशों में भी इस संस्था द्वारा उत्तराखंड की पारंपरिक होली गीत-संगीत का मंचन सु-विख्यात रंगमंच संगीत निर्देशक स्व.मोहन उप्रेती के निर्देशन में मंचित कर होली गायन की इस समृद्ध विधा को अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्याति दिलवाई थी। 2024 माह फरवरी देश में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव ‘भारंगम’ के समापन दिवस पर पर्वतीय कला केंद्र द्वारा उत्तराखंड की खड़ी होली गायन शैली में कार्यक्रम मंचित कर राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ख्याति अर्जित करने का गौरव हासिल किया है।
पारंपरिक तौर पर उत्तराखंड के पहाड़ी अंचल में होली पर्व को बैठकी होली व खड़ी होली के साथ-साथ बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में तथा पहाड़ो में ठिठुरती कड़क ठंड के अंत और खेतों में नई बुआई के मौसम की शुरुआत के प्रतीक रूप में उमंग व हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
पारंपरिक तौर पर उत्तराखंड में माह पौष से बैठकी गायन होली का शुभारंभ कर फाल्गुन तक गाई जाती है। जिसके तहत पौष से बसंत पंचमी तक आध्यात्मिक तथा बसंत पंचमी से शिव रात्रि तक अर्धश्रंगारिक और उसके बाद श्रंगार रस में डूबी होली गायन की परंपरा का प्रचलन रहा है। होली गायन के रसों में भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण गोपियों की हंसी ठिठोली, प्रेमी-प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़ छाड़ इत्यादि के रसों का तानाबाना होता है। इस होली गायन में वात्सल्य, श्रंगार व भक्ति रस की एक साथ मौजूदगी इसकी मुख्य विशेषताओं में स्थान रखती है।
गायन में शास्त्रीय राग दादरा और ठुमरी ज्यादा प्रचलित रही हैं। होल्यार हारमोनियम के मधुर सुरों तबले व हुड़के की थाप तथा मंजीरे की खनक पर बैठकी होली मुक्त कंठ से भाग लगा गाते नजर आते हैं, जिस पर श्रोतागण झूम उठते हैं। राग धमार से होली गायन का आह्वान किया जाता है। राग श्याम कल्याण से बैठकी होली की शुरुआत व राग भैरवी से होली बैठकी के समापन की परंपरा का पालन होल्यारों द्वारा किया जाता है।
राग आधारित शास्त्रीय गीत-संगीत बैठकी होली परंपरा की शुरुआत पंद्रहवी शताब्दी में चंपावत के चंद राजाओं के महल तथा इसके आसपास के क्षेत्रो से मानी जाती है। माना जाता है चंद वंश के राज्य विस्तार के साथ-साथ शास्त्रीय होली गायन विधा का भी क्षेत्र विस्तृत होता चला गया। जिसका मुख्य केंद्र बाद के वर्षो में अल्मोड़ा बन गया था। स्मृद्धि की ओर बढ़ यह गायन विधा एक परंपरा सी बन गई थी, जिसका पालन कद्रदान व कलाकार आयोजित होली महफिलों में वर्तमान तक करते चले आ रहे हैं। जिसका नजारा कुछ हद तक सु-विख्यात लोकगायिका डॉक्टर कुसुम भट्ट, दीपा पंत पालीवाल तथा पर्वतीय कला केंद्र व हुक्का क्लब अल्मोड़ा से जु़ड़े लोक गायक दिवान कनवाल द्वारा विगत रात्रि उनके गीत-संगीत में देखने-सुनने को मिला।