बगल में छुरी
लेखक कवि– सुरेंद्र शर्मा
मुंह पर राम राम, बगल में छुरी
बना लो तुम ऐसे लोगों से दूरी
जीवन सुखी हो जायेगा तुम्हारा
बना लोगे अगर इस छुरी से दूरी
मुखौटे तो उतर ही जाते हैं कभी
बस थोड़ा वक्त लगता है
छुपा लेगा वो अपनी असलियत
उसे फिर भी ऐसा लगता है
कहता है पीठ पीछे कुछ भी
सामने खुद को अपना बताता है
भरी है नकारात्मकता उसमें
जब मिलता है तो गले लगाता है
बचकर रहना होगा उससे यारों
हर किसी की ज़िंदगी में वो होता है
खुश होता है असफलता पर तुम्हारी
तेरे सामने घड़ियाली आंसू जो रोता है
पहचान लो जितना जल्दी उसे
तेरे जुनून में भी जिसे फितूर नज़र आता है
निकाल दो अपने जीवन से उसे
तुझे तेरी राह में जो रोड़ा नज़र आता है
जाने क्यों करते हैं ऐसा लोग
अविश्वास पैदा करते है जीवन में तुम्हारे
खुद तो दोगली ज़िंदगी जीते है
हतोत्साहित करते हैं सपने पूरे करने में तुम्हारे
है एक ही दुआ भगवान से अब
जल्दी पहचान पाऊं मैं इन छुरी वालों को
फिर देकर इनको दुआ दिल से
ज़िंदगी से रवाना कर पाऊं इन छुरी वालों को।