दिल्लीराष्ट्रीय

व्यवसायिक जगत में परचम लहराने वाले उत्तराखंड की प्रेरणादायी विभूति सुरेश चंद्र पांडे

सी एम पपनैं

 

बड़ोदरा (गुजरात)। निष्ठा, ईमानदारी, सौहार्द, समर्पण तथा सीखी गई तकनीक के बल एक साधारण व्यवसायी व उद्यमी के लिए इस जटिल प्रतिस्पर्धा और आपाधापी भरे दौर में सीढ़ी चढ़ उच्च मुकाम हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। बदलती व्यवस्थाओं व देश के नागरिकों के जागरूक होने के क्रम में यह संभव होता नजर आया है किसी भी व्यवसाय व उद्यम के क्षेत्र में एक अदना व्यक्ति भी सीखी गई तकनीक, उच्च आदर्श तथा कार्यशैली के बल उच्च मानक स्थापित कर फर्श से अर्श तक पहुंच नामी व्यवसायियों के मध्य अपना नाम रोशन कर परचम लहरा सकता है।

व्यवसाय व उद्यम के क्षेत्र में सीखी गई तकनीक तथा जागरूकता के बल ही वर्ष 2000 से देश के विभिन्न राज्यों में परचम लहराने व अलख जगा कर उत्तराखंड का नाम रोशन करने वाले मध्य हिमालय उत्तराखंड पर्वतीय अंचल अल्मोड़ा जिले के बरतोली गांव के एक साधारण हिन्दू ब्राह्मण परिवार में 9 जनवरी 1968 को कुलोमनी पांडे व उदूली देवी के घर जन्मे सुरेश चंद्र पांडे वर्तमान में देश की पाइपलाइन सर्वे की सबसे अग्रणी कंपनी एस. के. पी. प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, रोजगार उत्पन्न करने तथा सामाजिक दायित्व निभाने की दिशा में मजबूती से काम करने में जुटे हुए हैं।

व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे द्वारा स्थापित उक्त कंपनी अपनी स्थापना के बाद से विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण तथा अन्वेषण कार्यों पाइप लाइन सर्वेक्षण, तेल और गैस अन्वेषण, रि-सर्वे, जीआईएस सर्वे, भूकंपीय सर्वे के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों की अनेकों परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण तथा भू-तकनीकी और जल विज्ञान जांच में विश्व स्तरीय सेवाए प्रदान करने वाली एक विख्यात कंपनी के नाम से जानी जाती है। व्यवसाय में निरंतर कड़ी मेहनत के बल उन्नति तथा लोगों को रोजगार मुहैया कराने की चाहत रखने वाले व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे एक लंबी यात्रा के तौर पर यांत्रिक और सिविल निर्माण के क्षेत्र में भी अपनी कंपनी का सफलता पूर्वक पदार्पण करवा कर कार्य विस्तार करते देखे जा रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ वर्तमान में विदेशों में भी कंपनी की विभिन्न टीमें गुणवत्ता पूर्ण और मात्रात्मक परिणामों के साथ नई ऊंचाइयों को प्राप्त करने और व्यवसाय के क्षेत्र में अव्वल बने रहने हेतु निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

इस चुनौतीपूर्ण यात्रा के दौरान एस. के. पी. प्रोजेक्ट प्रा. लिमिटेड ने सुरेश चन्द्र पांडे के कुशल दिशा निर्देशों व कार्यशैली के बल अपने सम्मानित ग्राहकों के लिए भी बड़ी संतुष्टि के साथ परियोजनाओं को सफलता पूर्वक निष्पादित करने का कार्य किया गया है, उत्कृष्ठता बनाए रखी गई है।

 

कुशाग्र बुद्धि के व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे द्वारा संचालित एस. के. पी. प्रोजेक्ट प्रा.लिमिटेड के 32 कार्यालयों में करीब 2000 स्थाई कर्मचारियों तथा सैकड़ों अस्थाई कर्मचारियों को रोजगार दिया गया है। रोजगार प्राप्त उक्त कंपनी कर्मचारियों में उत्तराखंड के करीब पचास फीसद लोग रोजगार प्राप्त कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

उक्त कंपनी का पंजीकृत कार्यालय गुजरात के विकसित शहर बड़ोदरा में, कॉर्पोरेट कार्यालय गौतम बुद्ध नगर नोएड़ा उत्तर प्रदेश के साथ-साथ, उत्तराखंड के हल्द्वानी तथा अन्य राज्यों के नगरों लखनऊ, सिलीगुड़ी, गुवाहाटी, जोरहाट, बोकारो, अगरतल्ला, दुर्गापुर, नागपुर, रायपुर, भुवनेश्वर, हैदराबाद, काकीनाड़ा तथा कोट्टायम में स्थापित हैं।

 

उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में जन्मे देश की प्रेरणादाई विभूति सुरेश चन्द्र पांडे की पारिवारिक जीवन गाथा पर्वतीय अंचल के एक आम अभाव ग्रस्त ग्रामीण परिवार की तरह ही रही है। परिवार में माता-पिता, चार भाई व दो बहने थी। दो भाई सेना में भर्ती हो गए थे। शिक्षा प्राप्त कर रोजगार की तलाश में सुरेश चन्द्र पांडे को भी अपने अंचल से पलायन करने को बाध्य होना पड़ा था। अनेकों प्रकार के कष्ट झेल अपने बलबूते और हिम्मत हौसले से अपनाए गए व्यवसाय के क्षेत्र में हाड़तोड़ मेहनत कर एक मुकाम हासिल कर चुका यह व्यवसाई आज देश-प्रदेश के उभरते हुए व्यवसायियों में अपना उच्च स्थान रखता है। गुजरात के दस बड़े व्यवसायियों में स्थान प्राप्त यह व्यवसाई उत्तराखंड के लोगों व अंचल की भावी पीढ़ी को प्रेरणा स्वरूप राह दिखाता नजर आता है।

 

व्यवसायी सुरेश चन्द्र पांडे ने पांचवी तक की शिक्षा उत्तराखंड अल्मोड़ा जिले के प्राइमरी स्कूल तौली से। छठवी से दसवी तक की शिक्षा राजकीय इंटर कालेज पनुआनौला से तथा साइंस विषय में ग्यारहवी व बारहवी बाड़ेछीना इंटर कालेज से पूर्ण की थी। उसके बाद अल्मोड़ा से वर्ष 1989 में आईआईटी की। माह अगस्त 1989 में सुरेश चन्द्र पांडे अपनी कुछ तमन्नाओं को साथ लेकर सेना में कार्यरत अपने बड़े भाई के पास गुजरात के बड़ोदरा शहर को रवाना हुए थे। 15 अगस्त 1989 रात्रि में बड़ोदरा रेलवे स्टेशन पहुंच रात्रि स्टेशन में ही गुजारी थी। दूसरे दिन बड़े भाई स्टेशन पहुंच भाई को घर ले गए थे। अकस्मात दो माह बाद ही बड़े भाई की आर्मी यूनिट बड़ोदरा से पठानकोट के लिए स्थातंरित हो गई थी। भाई साहब ने सुरेश पांडे जी को भी पठानकोट पहुंचने को कहा था। रेलवे का रिज़र्वेशन पंद्रह दिन बाद का मिला था। इस दौरान सुरेश जी को बड़ोदरा में ही रहना पड़ा।

 

एक दिन बड़ोदरा में घूमने के दौरान सड़क किनारे सुरेश जी को एक सरदार जी अपने खराब स्कूटर से जूझते हुए परेशान से दिखे, मदद कर उन्होने स्कूटर को दुरस्थ कर सरदार जी को परेशानी से मुक्त कर शाबाशी तो ली ही, परिचय जानने पर सुरेश जी ने अपनी बेरोजगारी की गाथा व भाई साहब के पठानकोट तबादले के बावत अवगत कराया गया। शरद नगर बड़ोदरा में रहने वाले सरदार जी ने सुरेश चन्द्र पांडे जी को मदद स्वरूप जम्मूसर बड़ोदरा में कार्यरत ओएनजीसी की फील्ड पार्टी कैम्प में पाइप लाइन सर्वे करने हेतु आमंत्रित कर दिया। फील्ड प्रबन्धक द्वारा उत्तराखंड के इस युवा को तय किया गया कार्य न देकर एक श्रमिक का कार्य दिया गया। उक्त कार्य में करीब चालीस किलो वजनी तार का भार कंधे में लाद कर सुरेश पांडे जी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना होता था। तीन-तीन किलोमीटर जाकर लाइन बिछानी होती थी। उक्त कार्य मिल जाने के बाद पठानकोट का रेलवे रिज़र्वेशन टिकट निरस्त करवा कर बड़े भाई साहब को पत्र भेज सुरेश पांडे जी द्वारा सूचित कर दिया गया था बड़ोदरा में नौकरी लग गई है।

 

सर्वे कार्य का मुआयना करने हेतु फील्ड पार्टी चीफ सरदार जी जब एक दिन कार्यस्थल पर पहुंचे उन्हें अवगत हुआ सुरेश चंद्र पांडे से सर्वे का काम न करा कर एक सामान ढोने वाले श्रमिक का कार्य करवाया जा रहा है। सरदार जी द्वारा तुरंत सुरेश जी को सर्वे का काम देने को कहा गया। उक्त निर्णय से कार्य कर रहे अन्य श्रमिक उत्तराखंड के इस युवा से चिढ़ने लगे थे। ओएनजीसी सर्वे उप-निदेशक द्वारा कार्य अवलोकन करने के पश्चात सुरेश जी द्वारा लगन और मेहनत से किए गए कार्य पर सदा खुशी जाहिर करने व शाबाशी देने से अन्य सभी कार्यरत श्रमिक भी उत्तराखंड के इस युवा के प्रति जगी कुंठा त्याग खुश रहने लगे थे।

 

प्रोजेक्ट अधिकारियों द्वारा उत्तराखंड के मेहनतकश युवा सुरेश चन्द्र पांडे के बुद्धि कौशल तथा काम के प्रति निष्ठा और ईमानदारी को देख प्रोजेक्ट से जुड़े खरीद फरोख्त का काम दे दिया गया। उक्त कार्य मिलने पर सुरेश जी की इन्कम भी बढ़ गई। उक्त फील्ड काम छ्ह माह तक चलता था। काम समाप्त होने पर तीन माह खाली रहना पड़ता था। रिक्त तीन महीनों में सुरेश चंद्र पांडे द्वारा तम्बू सिलने का कार्य किया गया। सर्वे का काम पुनः शुरू होने पर उससे फिर जुड़ गए।

 

वर्ष 1994 ओएनजीसी फील्ड पार्टी के साथ कार्यरत व बड़ोदरा में किराए के घर में निवासरत सुरेश चन्द्र पांडे के साथ फोन संपर्क पी पी नंबर पर ही किया जा सकता था। उक्त पी पी नंबर पर ही एक दिन सुरेश जी के पिता जी ने ट्रकंकाल कर ओएनजीसी अधिकारी को सुरेश जी की शादी तय हो जाने के बावत सूचित किया गया, सूचना प्राप्ति के बाद सुरेश जी बड़ोदरा से ट्रेन के जनरल डिब्बों में यात्रा कर हल्द्वानी और वहां से अपने गांव पनुआनौला पहुंचे।

 

सुरेश जी के पिता जी की चाहत थी विवाह में पहनने के लिए बेटा अपने लिए सूट सिलवा ले। साधारण कपड़ों में ही सुरेश जी दूल्हा बन ससुराल दनिया गांव रवाना हुए। दुल्हन का चेहरा भी सुबह बारात विदाई के वक्त पहली बार देखने को मिला। पंद्रह-बीस दिन तक सुरेश जी अंचल की मनोहारी और रमणीक हिमालयी प्रकृति का आनंद ले पत्नी के साथ खुशियां मनाते रहे। खुशियों में अति मदमस्त हो चुके सुरेश जी के मन में आया ठेकेदार की नौकरी करने के लिए अब बड़ोदरा नहीं जाना है।

 

गांव में सभापति के चुनाव की तैयारिया भी चल रही थी। गांव के कई लोग चाहते थे सुरेश चन्द्र पांडे चुनाव लड़ें। कुछ लोग इस पक्ष में नहीं थे। पत्नी द्वारा दिए गए सुझाव पर सुरेश जी ने चुनाव भी नहीं लड़ा और बड़ोदरा जाने की तैयारी शुरू की। ईज़ा और पत्नी द्वारा घर गांव के खाद्य पदार्थों से बांधी गई भारी भरकम पुंतरी लाद कर सुरेश जी गांव से हल्द्वानी और वहां से ट्रेन द्वारा मुरादाबाद पहुंचे। मुरादाबाद से उन्हें रुड़की सेना में कार्यरत अपने दूसरे भाई साहब को कुछ सामान देकर बड़ोदरा जाना था। मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर मंत्रमुग्ध करने वाले लुटेरों ने उत्तराखंड के इस भोले भाले युवा से उसे शादी में मिली सोने की अंगूठी, पत्नी द्वारा दिया गया शादी में मिला रुपया, शैक्षिक सार्टिफिकेट तथा अन्य सारा सामान लूट लिया गया। होश आने पर पूर्ण रूप से लूट चुके सुरेश जी बहुत रोए। पैंट की जेब में मात्र दो रुपए का नोट पता नहीं कैसे बचा रह गया था। रुड़की भाई के पास जाना जरूरी था। यात्रा टिकट का सवाल खड़ा हो गया था। रेलवे पुलिस को लूट की शिकायत करने पर सुरेश जी को ही खूब उल्टा-पुल्टा कहा गया, उनके साथ गाली-गलौच की गई। काफी रो-धो कर अनुनय विनय करने पर रेलवे पुलिस द्वारा रिपोर्ट में सिर्फ सार्टिफिकेट खोने की बात दर्ज करने को कहा गया।

 

पूर्ण रूप से लूट जाने के बाद निराशा में डूबा तथा दुविधा में पड़े इस पहाड़ी युवा को स्टेशन में ही रात्रि के 8-9 बज गए थे। रेलवे स्टेशन पर भटकने के दौरान गस्त कर रहा रेलवे पुलिस का एक जवान मिला, उसे भी इस भोले भाले युवा ने अपने लुट जाने की व्यथा से अवगत कराया। उक्त पुलिस वाले ने दया कर सुरेश जी को चाय बिस्किट खिला कर जीआरपीएफ से कह कर रुड़की वाली ट्रेन में बिना टिकट बिठा यात्रा का प्रबंध किया। रुड़की स्टेशन पहुंच खाली हाथ निराशा के भाव लेकर पैदल ही सुरेश जी भाई के पास पहुंचे। मुरादाबाद में घटी घटना से भाई को अवगत करा पैसे लेकर बड़ोदरा को रवाना हुए।

 

बड़ोदरा पहुंच रहने का ठौर ठिकाना था नहीं, रेलवे स्टेशन में ही सुरेश जी रुके। अगले दिन पुरानी कलौनी जहां पहले रहते थे वहां गए। सायं को किसी पहचान वाले लड़के के घर रुके। बाद के दिनों में संयुक्त रूप में एक लड़के के साथ रहने लगे। दिन में इधर उधर घूम कर सुरेश जी टाइम पास करते थे। घूमने के दौरान एक दिन किसी कुत्ते ने उन्हें काट दिया। चौदह इंजेक्शन लगने थे, पैसे थे नहीं। एक डिस्पेंसरी वाले से इंजेक्शन लगवाने हेतु प्रार्थना की उसने खूब भला बुरा कहा, सुरेश जी बहुत रोए। म्युनिसिपल डिस्पेंसरी के चक्कर काट कर उक्त इंजेक्शन लगवाए।

 

बड़ोदरा में कुछ दिन भटकने के बाद सुरेश जी ने हिम्मत हौसले के साथ कुछ कर गुजरने की ठानी। बड़ोदरा में काम करने के साथ-साथ पुनः बारहवी कक्षा साइंस, गणित तथा बाइलोजी से उत्तीर्ण की। उक्त आधार पर बड़ोदरा स्थित सुप्रसिद्ध एम एस यूनिवर्सिटी में एमएससी में एडमिशन लिया। उक्त यूनिवर्सिटी से ही इंजिनियरिंग की। उक्त शिक्षा के दौरान सुरेश जी सुबह जल्दी उठ नाश्ता-पानी कर बच्चों को पढ़ाते थे। प्रातः दस बजे से पांच बजे तक काम करते थे। सायं डिप्लोमा क्लासेस किया करते थे। इस तरह ओएनजीसी कलौनी में ही पांच-छह वर्ष तक किराए के मकानों में रह कर दिन गुजारे।

 

डिप्लोमा प्राप्ति के बाद सुरेश जी ने पुनः ठेकेदारी वाला काम शुरू करने की सोची। किसी परिचित चाहने वाले ने भी ठेकेदार के साथ कार्य करने की राय दी थी। वर्ष 1996-98 में एक ठेकेदार के साथ सुरेश जी ने कार्य शुरू किया। इस मध्य वर्ष 1997 में बिटिया डॉक्टर नेहा पांडे का जन्म अल्मोड़ा अस्पताल में हुआ था। बिटिया जन्म के तुरंत बाद ही सुरेश जी का भाग्य करवट लेने लगा था। ओएनजीसी में काम मिल गया था। पार्ट टाइम काम छोड़, सेकेंड हैंड खरीदी गई साइकिल छोड़, सेकेंड हैंड स्कूटर खरीद लिया गया था।

 

वर्ष 1998 में सुरेश चंद्र पांडे जी अपना पूरा परिवार उत्तराखंड के गांव से बड़ोदरा ले आए थे। निरंतर अनुभव प्राप्ति के बाद 1998-2000 में ओएनजीसी से सुरेश चंद्र पांडे को पहला कौंट्रेक्ट का काम तीन-चार लाख का एस के पांडे नाम से मिला था। उसके तुरंत बाद दूसरा कार्य आठ से दस लाख का मिला था। उक्त कार्य हेतु प्रातः 6 बजे बड़ोदरा से ट्रेन में यात्रा कर 8 बजे तक सुरेश जी अहमदाबाद पहुंचते थे। लेबर का रुपया बचाने के लिए अकेले ही सर्वे कार्य कर रात्रि 9.30 बजे तक ट्रेन से ही बड़ोदरा वापसी करते थे। रात्रि में जग कर किराए के घर में सर्वे के नक्शे बनाते थे। ओएनजीसी अधिकारियों द्वारा सुरेश चन्द्र पांडे के द्वारा किए गए कार्य और मेहनत को सदा सराहा गया। मिल रही सराहनाओं और पत्नी के द्वारा दी गई दिशा के बल सुरेश जी ने फिर कभी पीछे मुड कर नहीं देखा।

 

अनुभव, कार्य निष्पादन शैली, मधुर स्वभाव, सामाजिक मेल-जोल की भावनाओं से प्रभावित कई प्रेमी प्रबुद्ध जनों द्वारा सुरेश चंद्र पांडे को सुझाव दिया गया, स्वयं का कार्य शुरू करो। हितकारी सुझाओं से मिले बल के आधार पर सुरेश जी ने एस सी पांडे सर्वे एंड सिविल वर्क कोंट्रेक्टर का लेटर हेड बनाया। काम करने के लिए रजिस्टर्ड नंबर व अन्य कार्य अनुभव के दस्तावेज़ जुटाए। जुटाए गए दस्तावेजों में वर्ष 1992-93 का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ भी था। उक्त वर्ष में ओएनजीसी सर्वे कार्य चल रहा था। कोई दूसरी कंपनी आ रही थी उस कंपनी ने सुरेश जी को सर्वे कार्य ले आउट बनाने के लिए एस सी पांडे नाम से 64 हजार का आर्डर दिया था। उक्त सर्वे लेआउट कार्य पूर्ण करने के बाद तीस हजार का लाभ तो सुरेश जी को हुआ ही था, साथ में विशेष कार्य पूर्ति सार्टिफिकेट भी प्राप्त हुआ था। दूसरा कार्य अनुभव सार्टिफिकेट जीआईडीसी कार्य करने का था। उक्त सार्टिफिकेटों के आधार पर रजिस्टर्ड कंपनी दस्तावेज़ प्राप्त हुआ था। बाद के दिनों में ओएनजीसी सर्वे के लिए क्वालीफ़ाई होने का सुअवसर सुरेश जी की कंपनी को मिला था। क्वालीफ़ाई होने के बाद पहला सर्वे कार्य अहमदाबाद वाड प्रोजेक्ट का प्राप्त हुआ था।

 

वर्ष 1999 में बड़ोदरा में ठीक ठाक काम चलने पर सुरेश जी ने सेकेंड हैंड कार तथा घर खरीद लिया था। 16 नवंबर 1999 को बेटे का जन्म हुआ था। 26 जून 2000 को सुरेश चन्द्र पांडे जी ने स्वयं की एस. के. पी. प्रा. लिमिटेड कंपनी शुरू की थी। वर्ष 2000 में ही पहली बार वैगनआर नई कार खरीदी थी। इसी वर्ष गेल कंपनी से 36 लाख का बड़ोदरा के हजीरा-उड़ान प्लान का आर्डर मिला था।

 

देश के सम्मानित व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा बड़ोदरा में ही हुई। बेटा फिजिक्स मास्टर तथा मास्टर यूके लंदन तथा बिटिया पूना से फार्मा में पीएचडी है। दोनों बच्चे अविवाहित हैं। बेटा बड़ोदरा में ही एस. के. पी. इंप्रेशन प्रा. लिमिटेड नाम से कंपनी चलाता है। उक्त कंपनी के विभिन्न प्रकार के कई प्रोजेक्ट उत्तराखंड में भी चल रहे हैं। बिटिया फार्मा में कंपनी खोलने की जुगत में प्रयत्नशील है। मिनिस्ट्री आफ पैट्रोलियम से जुड़ी सुरेश चंद्र पांडे की प्रतिष्ठित कंपनी की प्रतिस्पर्धा में देश में मात्र एक कंपनी का नाम आता है उसका नाम है सीकोन। वर्तमान में सुरेश चंद्र पांडे की कंपनी का सबसे बड़ा कार्य गुजरात के कांडला बन्दरगाह से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर लाइन पर चलायमान है।

 

प्रत्येक प्रोजेक्ट कार्य की जानकारी रख स्वयं उस निर्माण कार्य का समय-समय पर प्रत्यक्ष अवलोकन करना प्रतिभाशाली व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे की खूबियों व आदतों में सुमार रहा है। सारी जिम्मेवारी अधीनस्थ कर्मियों पर न छोड़ स्वयं भी निरीक्षण करते रहना तथा प्रोजेक्ट निर्माण कार्य ठोस मानकों के आधार पर ही हो इस व्यवसाई की मुख्य पहचान रही है जो देश के अन्य व्यवसायियों के लिए एक नजीर पेश करती नजर आती है।

 

लाग लपेट से हट कर काम करने वाले और व्यवसाय से जुडे कार्यों को सावधानी पूर्वक पूर्ण करने वाले व्यवसाई सुरेश चंद्र पांडे के व्यक्तित्व की विशेषताओं का अवलोकन करने के पश्चात इस व्यवसाई को एक व्यवहार कुशल आदर्श व्यक्ति के रूप में भी देखा जा सकता है।

 

व्यवसायिक क्षेत्र में निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे सुरेश चन्द्र पांडे ने अपनी उदारता से सामाजिक क्षेत्र में भी नाम कमाया है, अपनी छवि बनाई है। उत्तराखंड सहित देश के विभिन्न प्रदेशों की अनेकों नामी संस्थाओं के साथ भी यह उदार और परोपकारी व्यक्तित्व का व्यवसाई जुड़ा हुआ रहा है। सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं का सदा मददगार बना रहा है। अनेकों वृद्ध आश्रमों व अपने उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के स्कूलों की आर्थिक मदद भी समय-समय पर करता रहा है। योग संवर्धन क्षेत्र में भी भरपूर योगदान देता रहा है। देश के अनेकों राज्यों में आंखो के कैंप लगा कर मदद करता नजर आता है। खेलों में लोगों की रुचि बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजनों में भी मददगार नजर आता है। कई युवा उक्त खेल गतिविधियों में अव्वलता हासिल कर कॉमनवेल्थ कोच तक बने हैं।

 

व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे के जीवन का अवलोकन कर ज्ञात होता है, इस व्यवसाई ने कभी यह नहीं सोचा था वे जीवन में देश-समाज के उत्थान व राष्ट्र के विकास कार्यो में कुछ योगदान दे पाएंगे। यह जरूर सोचा था जीवन में कुछ अच्छा करने का प्रयास करेंगे। उक्त सोच के तहत ही यह व्यवसाई अपने ध्येय को सफलता पूर्वक प्रतिपादित करता नजर आता है। जनसेवा करने में सुकून मिलता नजर आता है। सामाजिक व सांस्कृतिक जिम्मेदारियां निभाने में इस व्यवसायी की उदारता का कोई सानी नही है।

 

बाल्य मन से ही सनातनी तथा सामाजिक मूल्यों की गहरी समझ रखने वाले सीधे-साधे व्यक्तित्व का धनी यह व्यवसाई नित्य सुबह-सायं नियमबद्ध होकर प्रभु का नाम लेकर सादगी भरे रहन-सहन के जीवन में विकट विश्वास रखता नजर आता है। सनातन को आगे बढ़ाने में तत्पर रहता देखा जा सकता है। सम्मानित व्यवसाई सुरेश चंद्र पांडे से जुड़े प्रबुद्ध जनों के मतानुसार इस व्यवसाई की याददाश्त बहुत तेज है, जिससे एक बार मिल लेते हैं याद रखते हैं। उसूलों वाले व्यक्ति हैं। विश्वास सब पर रखते हैं। मन, वचन व आत्मा से व्यवसाय में उन्नति व जनमानस के मध्य सौहार्द की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते हैं। उन्नति के लिए की जा रही इस व्यवसाई की हर कोशिश गौरवान्वित करने वाली आंकी जा सकती है।

 

मध्य हिमालय की गोद में जन्मे और पले-बढ़े व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे को अपने बाल्यकाल में अंचल के लोगों के अभावग्रस्त जीवन को करीब से देखने का अवसर मिला है। स्वयं भी बचपन में बहुत परेशानियां झेली हैं, अभावों का जीवन जिया है। राष्ट्र हित को प्रमुख लक्ष्य मानते हुए जनमानस के दीर्घ हित में अपनी राह व सोच को आगे बढ़ाना यह व्यवसाई अपना परम कर्तव्य समझ कार्य करता देखा जा सकता है। इस सदाचारी व्यवसाई को सच्चा सुख अपने व्यवसाय को राष्ट्र हित में आगे बढ़ाने के साथ-साथ जनसेवा में मिलता नजर आता है। जरूरत मंद संस्थाओं व लोगों को आर्थिक मदद करने में सुकून व आंतरिक खुशी मिलती तथा विचारों में अभावग्रस्तों का मर्म स्पष्ट झलकता नजर आता है।

 

गुजरात के बड़ोदरा शहर को पलायन करने के बाद भी पहाड़ी अंचल में जिए बचपन के दिन व दुदबोली को व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे भूलते नजर नहीं आते हैं। बचपन की उन सुनहरी यादों को अपनी यादों में संजोये हुए रहते हैं। अपने घर-परिवार, मित्रों व स्थानीय लोगों से अंचल की कुमाऊंनी बोली-भाषा में बातचीत करना इस व्यवसाई को अच्छा लगता है। अंचल में मनाऐ जाने वाले तीज-त्योहारों के बावत पूर्ण जानकारी रखने वाला यह व्यवसाई परंपरागत तौर-तरीकों से विधि-विधान के साथ अंचल के तीज त्योहारों को सपरिवार प्रवास में मनाता नजर आता है। सम्पूर्ण परिवार का पहाड़ी अंचल से बेहद लगाव आज भी यथावत बना हुआ प्रत्यक्ष नजर आता है।

 

देश-प्रदेश के सफल और प्रतिष्ठित व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे को शादी के दिन उनके पूज्य पिता जी की कही एक बात अक्सर याद आ जाती है। इस व्यवसाई के पिता की चाहत थी बेटा सुरेश शादी के दिन पहनने के लिए एक सूट सिलवा ले। साधारण जीवन जीने वाला यह व्यवसाई साधारण कपड़ों में ही दूल्हा बन व्याह करने गया। इस व्यवसाई को पिता के कहे आशीर्वचन ‘बेटा तू जिन्दगी में खूब सूट पहने लायक बने‘ सदा याद रहता है। अभाव ग्रस्त परिवार में माता-पिता के जीवन को इस व्यवसाई ने प्रत्यक्ष देखा व भोगा भी था। अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए बड़ोदरा (गुजरात) में बसेरा कर अपने जीवन के आधार को किस प्रकार इस व्यवसाई ने आगे बढ़ाया, यह प्रेरणादाई रहा है।

 

व्यवसाई सुरेश पांडे की चिंता प्रदेश के पर्वतीय अंचल से पलायन का क्रम निरंतर बढ़ते रहने व गांवों के भूतिया होते जाने पर भी टिकी रही है। सोच रही है, अंचल के लोगों की गांव वापसी हो। इस व्यवसाई के आचरण, स्वभाव व कार्यशैली का गहराई से अवलोकन कर व्यक्त किया जा सकता है, अंचल के युवाओं के सरोकारों के लिए यह व्यवसाई समर्पित रहा है। उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के लोगों के लिए नोएडा तथा बड़ोदरा में इस व्यवसाई की प्रतिष्ठित कंपनी द्वारा जरूरत मंदो के काम सीखने व रहने की व्यवस्था प्रदान की गई है। संबन्धित कार्य हेतु उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता रहा है। उक्त परोपकारी कार्यो के बल इस व्यवसाई के प्रशंसको की संख्या भी निरंतर बढ़ती रही है।

 

व्यवसाई सुरेश चन्द्र पांडे का संवाद करने का तरीका भी अतुलनीय देखा जाता रहा है। प्रदेश के पर्वतीय अंचल से रोजगार की तलाश में पलायन कर देश-विदेश के विभिन्न नगरों व महानगरों में प्रवासरत उत्तराखंडियों की मदद करना यह व्यवसाई अपना परम कर्तव्य समझता है। अपने अंचल के लोगों को नई ऊंचाई की ओर ले जाने की चाहत रखता है। अंचल के गांवों में आयोजित विशेष अवसरों व मांगलिक कार्यों पर इस व्यवसाई के आने-जाने का क्रम भी बना रहता है। अंचल के लोगों के प्रति सेवा भाव के विचार उभरते नजर आते हैं। निश्चय ही इस श्रेष्ठता की भावना को अंचल व देश के एवज में एक नजीर के तौर पर देखा जा सकता है।

 

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