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युगपुरुष मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी की 137 वीं जयंती पर आयोजित हुई विचार गोष्ठी

कोटद्वार गढ़वाल । आज दिनांक 26 अगस्त 2024को शैलशिल्पी विकास संगठन के तत्वाधान में सिम्मलचौड़ स्थित *उत्तराखंड रत्न कर्मवीर जयानंद भारतीय स्मृति पुस्तकालय* वार्ड नम्बर 22 सिम्मलचौड़ कोटद्वार उत्तराखंड के अंबेडकर कहे जाने वाले, प्रदेश के मूलनिवासीयों को सम्मान सूचक शिल्पकार नाम से विभूषित कराने वाले, महान समाज सुधारक, युगपुरुष मुंशी हरी प्रसाद टम्टा जी की 137 वीं जयंती के अवसर पर उनका भावपूर्ण स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर संरक्षक धीरजधर बछुवांन,जयदेव सिंह,शिवकुमार, केसीराम निराला, अनूप कुमार पाठक, जगदीश राठी,

आदि मौजूद रहे,कार्यक्रम की अध्यक्षता संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विकास कुमार’आर्य’ एवम् संचालन प्रधानाचार्य मनवर लाल भारती ने किया।

अपने संबोधन में श्री आर्य ने कहा कि मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी ने तत्कालीन समय में कुमाऊं- गढ़वाल में विकराल रूप से फैली जातिय असमानता के विरुद्ध खड़े होकर वंचित शोषित समाज की आवाज बनकर उन्हे उनके मानवीय अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया , उन्होंने बीसवीं सदी के प्रारंभ में ही वर्ष 1905 में उत्तराखंड के वंचित समाज के अधिकारों की प्राप्ति के लिए लिए सर्वप्रथम टम्टा सुधारक सभा का गठन किया गया , वर्ष 1914 में उसका नाम कुमाऊं शिल्पकार सभा कर दिया गया था,बाद में सभा का विस्तार करते हुए कुमाऊं की भांति गढ़वाल मंडल में भी शिल्पकार सभा गठित हुई जिसके प्रथम अध्यक्ष कुंदीलाल टम्टा चुने गए थे।

टम्टा जी ने 1920 से 1926 तक संघर्ष कर, ब्रिटिश सरकार के सम्मुख उत्तराखंड की 51पेशेवर बहिष्कृत जातियों को सम्मान सूचक शिल्पकार शब्द के नाम से पृथक जाति घोषित किए जाने के लिए आवेदन किया, उनके अथक प्रयासों से ही प्रदेश की 51 शिल्पी पेशेवर जातियों को एक कर उन्हे शिल्पकार जाति घोषित किया गया, उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अनिवार्य रूप से शिक्षा दिए जाने की पैरोकारी की जिसके फलस्वरूप देश की आजादी के बाद देश के नागरिकों को शिक्षा का अधिकार कानूनी रूप से प्राप्त हुवा ।

टम्टा जी की 37 वीं जयंती के अवसर पर संगठन द्वारा मांग की गई की प्रदेश सरकार को युगपुरुष टम्टा जी के नाम से विभिन्न सरकारी योजनाओं का संचालन किया जाना चाहिए, साथ ही प्रदेश के प्रतिष्ठित संस्थानों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों ,मार्गों का नामकरण उनके नाम से किया जाना चाहिए, प्रदेश के विधानसभा भवन में भी टम्टा जी का चित्र होना चाहिए जो हमारे जनप्रतिनिधियों को भी जनसरोकारों की बार बार याद दिलाता रहे और आने वाली पीढ़ी भी ऐंसे युगपुरुष के महान जीवन से प्रभावित होकर उनसे उनसे प्रेणा ले सके।

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