भारत रंग महोत्सव-2024′ समापन दिवस पर पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली द्वारा उत्तराखंड की खड़ी होली गायन शैली पर प्रभावशाली मंचन
सी एम पपनैं
नई दिल्ली, 21 फरवरी। अंतरराष्ट्रीय ‘भारत रंग महोत्सव-2024’ रजत जयंती समारोह के समापन दिवस पर उत्तराखंड व देश की सुविख्यात सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली द्वारा 21 फरवरी को दल्लूपुरा दुर्गा पार्क स्थिति चौहराए पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा दी गई थीम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ पर उत्तराखंड की खड़ी होली गायन शैली पर आधारित कार्यक्रम का मंचन आम जनसमूह के मध्य प्रभावशाली अंदाज में मंचित किया गया।
उत्तराखंडी बोली-भाषा गायन शैली में मंचित कार्यक्रम का शुभारंभ उत्तराखंडी वाद्ययंत्र पाइप बीन, ढोल व ताशे की गूंज तथा गायक कलाकारों द्वारा-
हो हो होलक रे…हो हो होलक रे… बरस दिवाली बरसे फाग… आज का बसंत कैका घरो… आज का बसंत भारत रंग महोत्सव वालों का घरो…।
से शुभारंभ किया गया।
खड़ी होली गायन शैली के अन्य उत्तराखंडी बोली-भाषा के बोलों में-
ऐसो अनाड़ी हम भुलि गयो सब,
अरे भुलि गयो रीति रिवाजा मोहन गिरधारी…
भरत मुनि लै रीति बनाई
भरत मुनि लै रीति सजाई,
अरे भुलि गयो रीति रिवाजा… मोहन गिरधारी…
नश हमू चढ़, अहंकार है गोय…
बुराई, भेदभाव, छुआ-छूत है गई..
अरे भुलि गयो रीति रिवाजा… मोहन गिरधारी…
मैं मजबूत परवार मजबूत…
अरे सब मजबूत देश मजबूत… मोहन गिरधारी…
सीमा का इलाकों में पहरी बणो
अरे घुसपैंठियों कै भजाओ, मोहन गिरधारी…
च्येली ब्वारी पढ़ाओ, आघीन बढ़ाओ…
नशो को करो संहार, मोहन गिरधारी…
नारी को करो सत्कार, मोहन गिरधारी…
उक्त खड़ी होली गायन शैली की समाप्ति पर उपस्थित सभी कलाकारों द्वारा ‘भारत रंग महोत्सव-2024’ के उद्देश्यों के तहत राष्ट्रहित में शपथ ली गई-
पंचप्रण की शपथ खानू, हो हो होलक रे…
विकसित भारत लक्ष्य हमौर, हो हो होलक रे…
अपणी विरासत गर्व हम करनू, हो हो होलक रे…
एक जुट, एक मुठ हम रौंलो, हो हो होलक रे…
नारी कै इज्जत हम दयूलो, हो हो होलक रे…
वसुधैव कुटुम्बकम, हो हो होलक रे…
वंदे भारत, जय जय भारत, हो हो होलक रे…।
इत्यादि इत्यादि भाव पूर्ण व प्रेरणादाई गायन के समापन पर उपस्थित स्थानीय जनमानस द्वारा सभी वादकों, नृत्यकारो व गायकों की मुक्तकंठ से तालियों की गड़गड़ाहट कर प्रशंसा की गई।
भारत रंग महोत्सव-2024 रजत जयंती समारोह समापन दिवस के अवसर पर दल्लूपुरा में आयोजित कार्यक्रम में पर्वतीय कला केंद्र से जुड़े कुमाउं, गढ़वाल व जौनसार अंचल के प्रतिभाग करने वाले गायको, वादकों तथा नृतक कलाकारों में महेन्द्र सिंह लटवाल, डॉ.सतीश कालेश्वरी, राम सिंह तोमर, सुल्तान सिंह तोमर, प्रमिला तोमर, पूनम तोमर,
राकेश शर्मा, के सी कोटियाल, हरीश चंद्र शर्मा, मन्नी ढाका, मधु बेरिया साह, भुवन गोस्वामी, खिलानंद भट्ट, स्वेता चांद, के एस बिष्ट, चन्द्र मोहन पपनै, प्रदीप नेगी, सविता पंत, दिनेश फुलारा, जगमोहन रावत, धनलक्ष्मी महतो, भुवन रावत, भूपाल सिंह बिष्ट, खुशाल सिंह रावत, तुलिका बिष्ट, प्रेम बल्लभ पाठक, दिवान कनवाल, इत्यादि इत्यादि मुख्य रहे। महोत्सव में उपस्थित कलाकारों द्वारा उत्तराखंड की सुप्रसिद्द अदाकारा दिवंगत गीता उनियाल के निधन पर गहरा दुःख प्रकट कर मृतक की आत्मा शांति हेतु दो मिनट का मौन रखा गया।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के तत्वाधान में 1 से 21 फरवरी 2024 तक देश के विभिन्न 15 नगरों, महानगरों में प्रमुख दिल्ली, मुंबई, पूणे, भुज, विजयवाड़ा, जोधपुर, डिब्रूगढ़, भुवनेश्वर, पटना, रामनगर (उत्तराखंड), श्रीनगर इत्यादि के प्रमुख सभागारों में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ‘भारत रंग महोत्सव’ (भारंगम) का शुभारंभ वर्ष 1999 में किया गया था। विगत 25 वर्षों से निरंतर आयोजित किया जा रहा यह प्रतिष्ठित रंगमंच महोत्सव दुनिया के सबसे बड़े रंगमंच महोत्सव के रूप में जाना जाता है। स्वयं में आयोजित यह महोत्सव एक रचनात्मक समृद्ध इतिहास समेटा हुआ है। नाटकों के महाकुंभ के रूप में जाना जाता है।
इस महोत्सव को आयोजित करने का उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक संपदा और रंगमंच के माध्यम से वैश्विक फलक पर देश को स्मृद्घ बनाना रहा है। आयोजन में समस्त देश के नाटकों के दर्शन हो तथा श्रेष्ठता के बदले सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व मुख्य मानक हो, इस महोत्सव की विशेषता रही है। उक्त उद्देश्यो को दी जा रही, प्रमुखता के बल ही, विगत 25 वर्षो से निरंतर देश के सबसे बडे और अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस नाट्य उत्सव में दुनिया का चौथा सर्वश्रेष्ठ माना जाने वाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निर्देशक चित्तरंजन त्रिपाठी के दिशा निर्देशो के तहत, प्रविष्टियों में शामिल नाटकों की केवल गुणवत्ता ही नहीं, प्रतिनिधित्व का ध्यान भी रखा गया था। आयोजित रंगमंच महोत्सव में कलाकार ही नहीं देश के जानेमाने रंगमंच निर्देशकों व संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त प्रबुद्ध जनों द्वारा भी उपस्थिति दर्ज करा कर आयोजित महोत्सव को सफल बनाने व मान बढ़ाने का काम किया।
अनेकों विदेशी रंगमंडलों को इस महोत्सव में आमन्त्रित किया जाता रहा है। देश के बोली-भाषा के नाटकों में हिंदी के साथ ही प्रादेशिक भारतीय भाषाओं व विभिन्न लोक शैलियों के नाटकों का मंचन आयोजित महोत्सव में होता रहा है।
इस वर्ष भारत रंग महोत्सव की थीम ”वसुधैव कुटुम्बकम, वंदे भारंगम’ पर आधारित थी। लगभग 150 विभिन्न रंग प्रस्तुतियों का मंचन देश के विभिन्न भागों में आयोजित किए गए थे। 1 फरवरी को मुंबई में महोत्सव का श्रीगणेश व 21 फरवरी दिल्ली में समापन किया गया।
भारत रंग महोत्सव में कई बार प्रतिभाग कर चुकी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ द्वारा 2001 में ‘अमीर खुसरो’, 2005 मे ‘भाना गगंनाथ’ तथा 2023 में गीतनाट्य ‘इंद्रसभा’ का प्रभावशाली मंचन किया गया था। 2018 भारत में आयोजित ‘ओलंपिक थियेटर’ में इस संस्था द्वारा गीतनाट्य ‘राजुला-मालूशाही’ का प्रभावशाली व यादगार मंचन कर रंगमंच जगत में गहरी छाप छोड़ने का गौरव हासिल किया था।
वर्ष 1968 दिल्ली प्रवास में स्व.मोहन उप्रेती के सानिध्य में गठित ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली नामक यह सांस्कृतिक संस्था देश के अनेकों महानगरों, नगरों व कस्बो में भारत सरकार, राज्य सरकारों व स्थानीय संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवों व समारोहों में तथा भारत सरकार द्वारा आयोजित विश्व के कई देशो का भ्रमण कर, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में राज्य व देश का प्रतिनिधित्व करने का गौरव हासिल कर चुकी है। वर्तमान में ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली, देश की एक मात्र प्रमुख सांस्कृतिक संस्था है जो गीतनाट्य मंचन के क्षेत्र में अव्वल स्थान रखती है।
इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा मंचित उत्तराखंड की अनेकों लोकगाथाओं व अन्य कार्यक्रमों का राष्ट्रीय प्रसारण दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी प्रसारित होता रहा है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सन 1989 से निरंतर 28 वर्षो तक पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली रंगमंडल का दर्जा प्राप्त देश की अव्वल दर्जे की सांस्कृतिक संस्थाओ में सुमार रही है। वर्ष 2022 में इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा प्रभावशाली अंदाज में 55वा स्थापना दिवस मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल की प्रभावी उपस्थिति में मनाया गया था।
अगामी माह मार्च 18 को मंडी हाउस स्थिति एलटीजी सभागार में ख्यातिरत सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र द्वारा उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित गीत-संगीत, नृत्य तथा संवाद आधारित नए सशक्त नाटक ‘देवभूमि’ का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े रंगकर्मी सुमन वैद्य के निर्देशन में मंचित किया जा रहा है। आशा की जा सकती है इस नए नाट्य मंचन के बाद इस संस्था के द्वारा विगत वर्षो व दशकों में मंचित किए गए गीत नाट्यों की कड़ी में एक और नया प्रभावशाली अध्याय जुड़ जाएगा।
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