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जन गीतों के रचयिता व लोकगायक स्व.हीरासिंह राणा की जयंती पर आयोजित हुए अनेक कार्यक्रम 

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगायक, जनकवि तथा कुमांऊनी, गढ़वाली व जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार के पहले उपाध्यक्ष रहे स्व.हीरा सिंह राणा की जयन्ती पर दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंड के प्रवासियों द्वारा गठित अनेक सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओ द्वारा विभिन्न स्थानों पर अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रम व संगोष्ठिया आयोजित कर उन्हें याद किया गया।

बद्रीनाथ मन्दिर किदवई नगर के प्रवचन सभागार में ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’, ‘क्रिएटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़’ तथा ‘कुमाउनी साहित्य-भाषा एवं सांस्कृतिक समिति’ द्वारा स्व. हीरा सिंह राणा को उनके जीवन के संघर्षों, रचित जन गीतों तथा गाए सदाबहार लोकगीतों को गाकर याद किया गया, श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।

आयोजन के इस अवसर पर ‘उत्तराखंड के जनगीतों में लोक चेतना और हीरा सिंह राणा की रचनाएं’ विषय पर एक यादगार संगोष्ठी आयोजन वरिष्ठ लेखक और साहित्यकार रमेश घिल्डियाल की अध्यक्षता में की गई।

संगोष्ठी श्रीगणेश स्व.हीरा सिंह राणा के चित्र पर गुलाब की पंखुड़ियां अर्पित कर तथा ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ संस्थापक मनोज चंदोला द्वारा खचाखच भरे प्रवचन सभागार में उपस्थित साहित्यकारों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों तथा अन्य अनेकों प्रवासी संस्थाओं से जुड़े प्रबुद्ध जनों का स्वागत अभिनन्दन कर किया गया। लोक रंगकर्मी भुवन रावत द्वारा स्व.हीरा सिंह राणा द्वारा देश को मिली आजादी के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने पर रचित सुप्रसिद्ध जनगीत-

आजकल हैरे मेरी नौली जवाना…।

का गायन किया गया।

आयोजित संगोष्ठी में प्रमुख वक्ताओं प्रदीप वेदवाल, हेमपंत, चंद्र मोहन पपनै, शेखर शर्मा, ललित प्रसाद ढौंढियाल, चारु तिवारी, डॉ.विनोद बछेती तथा पवन मैठाणी द्वारा सु-विख्यात मौलिक रचनाधर्मी व सुर-सम्राट रहे स्व.हीरा सिंह राणा के व्यक्तित्व के साथ-साथ उनके द्वारा रचे व गाए गीतों व जनगीतों पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर याद किया गया। गायकों द्वारा गीतों व जनगीतों का गायन कर समा बांधा गया।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, स्व.राणा जी ने अपने सरोकारों को अपने गीतों में रच कर उत्तराखंड के लोक साहित्य व लोकगायन पर अपनी सृजनशीलता जीवन के अंतिम समय तक निरंतर बनाए रखी। अपने मधुर कंठ के गायन व हुड़का वादन से अपने रसिकों को बहुत रिझाया, मंत्रमुग्ध किया। उन्हें सुनने के लिए लोग सदा लालायित रहते थे। श्रोताओं ने जब भी जिस किसी गीत को गाने की फरमाइश की, स्व.राणा जी ने उसे सहर्ष गाया। यही धारणा स्व.हीरा सिंह राणा को एक जन गायक की प्रसिद्धि की ओर ले गई।

वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, चेतना जगा कर फलक का व्यापक रहना, समाज की संवेदनाओं को कविताओं व गीतों में उतार कर, निराले प्रभावशाली अंदाज में प्रस्तुत कर, समाज के प्रत्येक वर्ग को झकझोरना, जिनमे दुःख, दर्द, संघर्ष व पलायन की पीड़ा के साथ-साथ प्रकृति का सौन्दर्य भी समाया रहा, स्व.राणा जी की रचनाशीलता की ताकत के रूप में चरितार्थ हुआ था। उनके गीतों व कविताओं में पिरोए गए शब्दों का गहराई से अवलोकन कर उनमें समुद्र की गहराई देखी जा सकती है।

वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, जन आंदोलनों के दौरान स्व.राणा जी के स्व-रचित क्रांतिकारी गीतों व उनकी गायकी ने न सिर्फ उत्तराखंड के जनमानस बल्कि राष्ट्रीय फलक पर चेतना जगाने का कार्य भी किया, जिस बल उनको राष्ट्रीय कवि के तौर पर पहचान मिली।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, स्व.हीरा सिंह राणा के द्वारा रचे व गाए गीतों तथा कविताओं की चेतना हमारे साथ है। उनकी रचनाओं में पहाड़ की महिलाओं के दर्द, आमजन की तकलीफें, प्रकृति का सौंदर्य, श्रृंगार की खूबसूरती, प्रेम-बिछोह की व्यथा, लोक स्वरों की सामूहिक अभिव्यक्ति, हिमालय के संकट, व्यवस्था के खिलाफ प्रतिकार, संघर्ष करने की जिजीविषा, सच से साक्षात्कार करने की ताकत, जीवन की दार्शनिकता और इतिहास-संस्कृति का बोध झलकता है।

 

आयोजन के इस अवसर पर लोक रंगकर्मी भुवन रावत, रमेश उप्रेती, किरन पंत, हेमंत रावत, भुवन गोस्वामी तथा शेखर शर्मा द्वारा खचाखच भरे प्रवचन सभागार में बैठे श्रोताओं के मध्य

स्व.हीरा सिंह राणा द्वारा रचित रचनाएं व गीतों में

1- आजकल हैरे म्येरी नौली जवाना..।

2- मेरी मानिले डानी त्येरी बलाई ल्योल..।

3- रंगीलि बिंदी घाघरी काई…।

4- त्यर पहाड़ म्यर पहाड़…।

5- आहा रे जमाना, ओहो रे जमाना..।

6- यो सन्ध्या झूली रै, भागवाना नीलकंठ हिमाला…।

गाकर अपने प्रिय जन कवि व लोकगायक को उनकी जयंती पर याद किया गया।

 

संगोष्ठी अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार रमेश घिल्डियाल द्वारा कहा गया, स्व.राणा जी की हृदय विदारक रचनाओं ने लोगों को जीवन के उतार-चढ़ाव के रास्तों से अवगत कराया। लोगों को संघर्ष करने की सीख प्रदान की। निष्ठा व सच्चाई की राह भी सुझाई। यह रचनाधर्मिता एक मिशाल के रूप में ही नही देखी गई बल्कि स्व.राणा जी की प्रसिद्धि व खासियत के रूप में चर्चा का विषय कई पीढ़ियों तक बनी रहेगी।

 

रमेश घिल्डियाल द्वारा कहा गया, स्व.हीरा सिंह राणा की अपार व अदभुत कला को नही आंका जा सकता। उनके द्वारा रचे व श्रीमुख से गाए गीतों को सुन प्रवास में गांव की याद आती है, अपनी जड़ों से मिलने का अवसर मिलता है। वे निरंतर उत्तराखंड की गायन कला का संवर्धन करते रहे, प्रेरणा श्रोत बने रहे, आगे भी आने वाली पीढ़ी के बीच प्रेरणा श्रोत बने रहैंगे। उनके जनगीत हमे संघर्ष करने हेतु प्रेरणा देते हैं। कहा गया, लोकगायक अमर होने के लिए मरते हैं। स्व.राणा जी द्वारा उत्तराखंड की लोक संस्कृति, साहित्य व लोकगायन के क्षेत्र में दिए गए अतुलनीय योगदान को पीढ़ियों तक याद किया जाता रहेगा।

 

आयोजित संगोष्ठी समापन स्व. हीरा सिंह राणा के जनगीत-

लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथ…।

से किया गया।

 

स्व.हीरा सिंह राणा की जंयती पर सागरपुर में गढ़वाली, कुमाऊंनी एवं जौनसारी अकादमी दिल्ली सरकार के सौजन्य से पर्वतीय कला संगम ग्रुप द्वारा भगवत मनराल के निर्देशन तथा मोती शाह के संगीत निर्देशन में स्व. राणा द्वारा रचित रचनाओं पर गीत-संगीत व नृत्य का कार्यक्रम अकादमी सचिव संजय गर्ग, द्वारका विधायक विनय मिश्रा तथा बिट्टू उप्रेती की प्रभावी उपस्थिति तथा सैंकड़ों प्रवासी जनों की उपस्थिति के मध्य आयोजित किया गया। गायक अजय ढौंडियाल, प्रकाश आर्य, किशोर कबड़वाल, लक्ष्मी रावत द्वारा स्व. हीरा सिंह राणा के गीत गाकर तथा पूजा आर्य की टीम द्वारा मनमोहक नृत्यों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया गया। आयोजित दोनों जयंती समारोहों का मंच संचालन, नीरज बवाड़ी द्वारा बखूबी किया गया।

 

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