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विश्व विधवा दिवस पर आयोजित राष्ट्रीय विमर्श मे देश के विभिन्न राज्यो की महिलाओ व पुरुषों द्वारा बडी संख्या में की गई शिरकत

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित विश्व विधवा दिवस 23 जून के अवसर पर विधवाओ की विडंबना पर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में दो सत्रो मे आयोजित किया गया। देश के एक दर्जन से अधिक राज्यो की महिलाओ और पुरुषों द्वारा बडी संख्या में आयोजन मे शिरकत की गई।

विधवाओ की विडंबना पर राष्ट्रीय विमर्श का श्रीगणेश प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे सूर्य संस्थान नोएडा के सचिव व वरिष्ठ समाज सेवी मंचासीन देवेन्द्र मित्तल, मुख्य अतिथि हरियाणा राज्य महिला आयोग चैयरमैन रेनु भाटिया व विशिष्ट अतिथियों चंद्र मोहन पपनैं, बरखा लकडा, प्रमोद झिंझडे व मुरलीधर चंद्रन द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। आयोजन के दूसरे सत्र की अध्यक्षता शालिनी श्रीनेत द्वारा व मुख्य अतिथि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय निर्देशक चेतना वशिष्ठ रही। आयोजकों द्वारा मंचासीन सभी अतिथियों का शाल ओढा कर सम्मान किया गया।

 

आयोजन संचालक वरिष्ठ गांधीवादी प्रसून लतांत द्वारा आयोजित राष्ट्रीय विमर्श के बावत सारगर्भित विचार व्यक्त कर अवगत कराया गया, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 23 जून 2011 को ‘विश्व विधवा दिवस’ घोषित करने के पीछे मकसद था, पूरी दुनिया का ध्यान विधवाओं की दुर्दशा पर जाए और उनकी स्थिति में सुधार लाने की कोशिश शुरू हो। विडंबना रही, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘विश्व विधवा दिवस’ घोषित करने के बाद भी पिछले बारह सालों में हमारे देश में कहीं भी विधवा दिवस पर एक भी आयोजन व विमर्श नही हुआ। भारत की मीडिया का ध्यान भी विधवा दिवस व विधवाओ की विडंबना पर नहीं गया। समाज, स्थापित सरकारो व मीडिया की इस उदासीनता पर क्या समझा जाए! सोचा जा सकता है।

 

प्रसून लतांत द्वारा अवगत कराया गया, विधवाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए महाराष्ट्र में कुछ कारगर प्रयास शुरु हुए हैं। महाराष्ट्र के एक गांव से शुरू हुए विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन का दायरा बढ़ने लगा है। कोल्हापुर जिले की हेरवाड़ पंचायत द्वारा विधवा प्रथा को खत्म करने के प्रस्ताव को पूरे प्रदेश में लागू करने का एक परिपत्र जारी किया गया है। विगत वर्ष महिला दिवस पर कोल्हापुर की हेरवाड़ पंचायत में विधवा प्रथा को खत्म करने का प्रस्ताव रखा गया था जो सर्वसम्मति से पारित हुआ था। जिसके बाद पंचायत के ग्रामीणों द्वारा तय किया गया था गांव में किसी पुरुष की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी को हाथों की चूड़ियां तोड़ने, माथे से सिंदूर मिटाने और मंगलसूत्र निकालने जैसे काम के लिए विवश नहीं किया जा सकेगा। उसे पूर्व की भांति जीवन जीने का मौका दिया जाएगा।

 

प्रसून लतांत द्वारा अवगत कराया गया आज पहली बार सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन पूणे, महात्मा फूले समाज सेवा मंडल सोलापुर, पूर्णागिनी फाउंडेशन औरंगाबाद (महाराष्ट्र), मेरा गांव मेरा देश फाउंडेशन नई दिल्ली, पंचशील एनजीओ दिल्ली, रीलीफ अगेस्ट हंगर फाउंडेशन दिल्ली तथा कई अन्य सहयोगियों व दोस्तो की मदद से विधवा दिवस के अवसर पर विधवाओ की विडंबना को लेकर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन महाराष्ट्र में प्रभावशाली विधवा प्रथा विरोधी अभियान चलाने वाले संगठन के प्रबुद्ध कर्मठ जनो तथा विभिन्न राज्यो के जनसरोकारो से जुडे रहे संगठनो की प्रभावशाली उपस्थिति मे आयोजित किया जा रहा है।

 

विधवाओं की विडंबना पर आयोजित राष्ट्रीय विमर्श मे मुख्य अतिथि हरियाणा राज्य महिला आयोग अध्यक्षा रेनू भाटिया द्वारा व्यक्त किया गया, विधवा महिलाओं को किसी का मोहताज नहीं होना चाहिए, उन्हें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए। अपने स्वयं के जीवन की अनेक कठिनाइयों की चर्चा करते रेनू भाटिया ने कहा, जब तक हम दूसरों के भरोसे रहेंगे तब तक हमारे जीवन में बदलाव संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा अपने पति को खो देने के बाद भी मैंने खुद को ताकतवर बनाने के लिए लगातार कोशिश की उसी का नतीजा है आज मुझ पर हरियाणा सरकार ने राज्य की करोड़ों महिलाओं को इंसाफ दिलाने वाले आयोग का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी है।

 

रेनू भाटिया द्वारा व्यक्त किया गया, किसी भी समाज में महिलाओं की बेहतर स्थिति ही उसके विकास को प्रदर्शित करती है। महिलाओं के साथ जुल्म और अत्याचार करने वाला समाज विकसित और सभ्य नहीं कहलाया जा सकता है। महिलाओ को भी सशक्त होकर चलना होगा, अपनी शक्ति को पहचानना होगा। हमारे सुहाग की निशानी हमारा मन है, हमारी सोच है। बुरी सोच वालों को पहचाने, धोख़ा न खाए।

 

मुंबई से ऑनलाइन संबोधन करते हुए महाराष्ट्र विधान परिषद उप सभापति डाॅ. नीलम ताई गोरे द्वारा व्यक्त किया गया, विधवाओं के संरक्षण और सम्मान के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने की जरूरत है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर आनंद कुमार द्वारा भेजे गए संदेश में कहा गया था, विधवाओं के हक के लिए समाज और सरकार दोनो उदासीन है जबकि उनकी यह संयुक्त जिम्मेदारी है।

 

महाराष्ट्र में विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन में पूरी तरह से सक्रिय विधवा महिला सम्मान और संरक्षण कायदा अभियान के प्रमोद झिंझडे और राजू ने महाराष्ट्र में पिछले कई सालों से चल रहे विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन की चर्चा करते हुए विधवाओं के हक में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों से कारगर कानून बनाने की मांग की। वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी चंद्र मोहन पपने द्वारा उत्तराखंड पर्वतीय अंचल की विधवा महिलाओ के कष्ट युक्त जीवन पर प्रकाश डाल कर निर्धन व अभावग्रस्त महिलाओ के सशक्तिकरण पर ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया।

 

राष्ट्रीय विमर्श मे भाग लेने वाले अन्य प्रबुद्ध जनो मे शबाना शेख, नविता, डाॅ. मुक्तेश्वर, अतुल प्रभाकर, शाहाना परवीन शान, डाॅ सुनीता, मुरलीधर चंद्रम, इरफान शेख, गजानन काशीनाथ अंबादकर, डाॅ मोरे, लता प्रासर, डाॅ सुधीर कुमार, शीतल राजपूत, श्वेता जाजू भारतीय, पंचशील एनजीओ के हरिओम इत्यादि द्वारा बेबाक विचारो मे व्यक्त किया गया, भारतीय समाज को रूढ़िवादी कु-चक्रो मे फंसा देख भारतीय मूल के ग्रुप लुंबा फाउंडेशन द्वारा 2005 मे जागरुकता बढ़ाने के लिए पहले अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस का आयोजन किया गया था। 2011 संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 23 जून को विधवा दिवस घोषित किया गया था। 2005 के बाद 2023 दिल्ली मे चर्चा का होना कितना आश्चर्य चकित लगता है, इस संवेदनशील मुद्दे पर समाज व सरकार की सोच को देख कर।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया विधवाओ की चुनौतिया बहुत हैं। पति की मृत्यु के बाद दोहरा संघर्ष और तीसरा आर्थिक संकट शुरू हो जाता है। आर्थिक ही नही हर परिस्थिति मे विधवाऐ विवश हैं। आदिवासी समाज मे विधवाओ की दुर्दशा बढ़ने लगी है। उडीसा, छत्तीसगढ़ मे विधवाऐ डायन समझी जाती हैं। जो महिला देवी समझ कर पूजी जाती है, वही डायन रूप मे देखी जा रही है। सफेद वस्त्र पहन कर जीवन गुजारती हैं। वह आत्म हत्या तक कर लेती है। डायन समझ मार दी जाती हैं। कानून हैं, परंतु कागजो मे।

 

व्यक्त किया गया, कोरोना काल मे लाखो लोग मरे, स्त्रिया विधवा हुई। समाज मे विधवाओ को कुल्टा कहा जाता है। विधवाअों की चुनौती है वह किसी से बात नहीं कर सकती। हम डिजिटल क्रांति की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन महिला के प्रति क्या सोच रहे हैं? ये मुद्दे मंच से नहीं, आत्मा को झकझोरना होगा।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, विधवाओ पर विमर्श सामाजिक विषय है। जिस समाज में रूढ़िवादी सोच है, वहा यह समस्या ज्यादा है। जो समाज सोया है, उसे जगाना है, इस आयोजन का यही उद्देश्य है। जागरूकता जरूरी है। पीड़ित बिल्कुल भी जागरुक नहीं हैं। व्यावहारिक रूप से आज जो विद्वान जनो ने बात रखी है, विमर्श किया है, महत्वपूर्ण है। ऐसी खुली बहस वर्षो बाद हुई है, जो आश्चर्यचकित करती है। दुनिया मे कोई देश ऐसा नहीं है जहा विधवाओ का नारकीय जीवन न हो। भारत इस मामले मे प्रथम व चीन दूसरे नम्बर पर है। विधवा एक दर्द है। विधवाओ के दर्द को समझना जरूरी है।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, विधवाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए समय-समय पर हमारे देश में दशकों पूर्व कई आंदोलन भी चले, विधवाओं की स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार भी हुआ। लेकिन समय गुजरते सुधार लाने की कोशिशों पर विराम सा लगता देखा गया है। आधुनिकता की ओर बढ़ती इस सदी मे बहुत से आविष्कार हुए, नई-नई तकनीक से घर-परिवार व समाज के ताने बाने में आमूल चूल बदलाव भी आया लेकिन हमारे समाज में आज भी विधवाएं अलग-अलग कुप्रथाओं और सामाजिक प्रतिबंधों के कारण कष्टमय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बहिष्कृत जीवन जीने को बाध्य हैं। हजारों वर्षो की पारंपरिक बेड़ियों से विधवाऐ आज भी बंधी हुई देखी जा सकती हैं।

 

विधवाओं पर लगाई जाने वाली पाबंदियां उनके स्वतंत्र जीवन एवं उनके अवसरों की समानता के अधिकार में बाधा खड़ी करती नजर आयी हैं। यह भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकारों का पूरी तरह से हनन ही है। संविधान को पूरी निष्ठा से मानने वाले पढ़े लिखे लोग भी विधवाओं की विवशता पर खामोश ही रहते देखे गए हैं। समाज की सेवा करने वाली संस्थाएं भी विधवाओं के जीवन में बदलाव लाने के बारे में सोचती नजर नही आती हैं। हर साल महिला दिवस पर होने वाले आयोजनों में महिलाओं की अन्य समस्याओं पर जरूर जिक्र होता आया है, लेकिन विधवाओं के बारे में कभी कोई चर्चा तक देखी-सुनी नहीं गई है।

 

व्यक्त किया गया, बढती जागरूकता के बल विधवाओं को लेकर यह सुखद है कि अब विधवा प्रथा की आड़ में महिलाओं की स्वतंत्रता के हनन के खिलाफ आवाजें बुलंद होने लगी हैं। आम महिलाओं की तरह विधवाओ को भी जीने के अधिकार की मांग को लेकर अब अभियान चलने लगे हैं। अब विधवाऐ भी त्यौहार मना रही हैं। धार्मिक उत्सवो मे भाग ले रही हैं। मराठा समाज ने कहा है विधवाओ के साथ शादी की जायेगी। महाराष्ट्र में सरकार विधवाओ के लाभ व उत्थान के लिए जल्द ही कानून बनाने वाली है। समाज विधवाओ के प्रति संवेदनशील बने। सरकार को चाहिए विधवाओ के लाभ के लिए घोषणा करे।

 

आयोजन के इस अवसर पर विधवा प्रथा उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न राज्यो के बीस से अधिक स्त्री और पुरुषों को मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के कर कमलो सम्मान पत्र व शाल ओढा कर सम्मानित किया गया। दो विधवा महिलाओ यशोदा अभय पर्वता व भारती मनोज चित्ते को मंगल सूत्र पहना कर सम्मानित किया गया। भावुक कर देने वाले‌ इस पल को प्रत्यक्ष देख रही महिलाओ के आँखों मे खुशी के आँसू बहते हुए देखा गया। मंगल सूत्र धारण की हुई विधवा महिलाओ को बडी संख्या में उपस्थित लोगों द्वारा बधाई दी गई, उनके सफल उन्मुक्त जीवन की कामना की गई।

 

आयोजन के इस अवसर पर विधवाओ की जिंदगी पर भगवान दास मोरवाल द्वारा लिखित व राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘मोक्षवन’ का लोकार्णण मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के कर कमलो किया गया।

 

आयोजित राष्ट्रीय विमर्श मे सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन सचिव हेमलता म्हस्के द्वारा अवगत कराया गया, देश के विभिन्न राज्यो से राष्ट्रीय विमर्श मे भाग लेने वाले सभी संगठनो व लोगों द्वारा अपने-अपने राज्यों में विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन शुरू करने का संकल्प किया है।

साथ ही आयोजको द्वारा देश के प्रत्येक राज्यो की सरकारों के पास जाकर इस मुद्दे को उठाने की बात व इस कार्यक्रम में विधवा प्रथा विरोध आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाने के मकसद से एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनाने की घोषणा भी की गई। जिसका नाम ‘राष्ट्रीय वैधव्य मुक्त भारत अभियान’ रखा गया है। अभियान की राष्ट्रीय संयोजक झारखंड की पत्रकार और समाज सेविका बरखा लकड़ा को चुना गया है। दो सत्रों में आयोजित राष्ट्रीय विमर्श का संचालन गांधीवादी वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत द्वारा बखूबी किया गया।

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