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विधवाओ की विडंबनाओ पर राष्ट्रीय विमर्श 23 जून को दिल्ली आयोजित होगा 

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। विश्व विधवा दिवस पर पहली बार 23 जून को राष्ट्रीय स्तर पर गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में देशभर के सभी समाजो और स्थापित सरकारो का विधवा प्रथा के उन्मूलन पर ध्यान आकर्षित करवाने के लिए सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन पूणे, महात्मा फूले समाज सेवा मंडल सोलापुर, पूर्णागिनी फाउंडेशन औरंगाबाद (महाराष्ट्र), मेरा गांव मेरा देश फाउंडेशन नई दिल्ली, पंचशील एनजीओ नई दिल्ली, रीलीफ अगेस्ट हंगर फाउंडेशन दिल्ली, विधवा महिला सम्मान व संरक्षण कायदा अभियान महाराष्ट्र इत्यादि द्वारा विधवाओ की विडंबनाओ पर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन किया जा रहा है। आयोजित राष्ट्रीय विमर्श मे महाराष्ट्र में विधवा प्रथा विरोधी अभियान चलाने वाले स्त्री-पुरुषों के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों में महिला सशक्तिकरण में जुटी प्रबुद्ध महिलाओ, अधिकारियों व मीडिया कर्मियों की उपस्थिति मुख्य रहेगी।

 

आयोजित राष्ट्रीय विमर्श के जरिए महाराष्ट्र में शुरू हुए विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन को राष्ट्रव्यापी अभियान बनाने के लिए रणनीति तय की जाएगी। साथ ही यह कोशिश की जाएगी कि केंद्र और राज्यों मे स्थापित सरकारें विधवा प्रथा के उन्मूलन के लिए एक कारगर कानून बनाए ताकि जो समाज विधवाओं को अभिशप्त जीवन जीने के लिए बाध्य करे उसे सख्त सजा मिले।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 23 जून 2011 को विश्व विधवा दिवस घोषित करने के पीछे मकसद था,

पूरी दुनिया का ध्यान विधवाओं की दुर्दशा पर जाए और उनकी स्थिति में सुधार लाने की कोशिश शुरू हो। विडंबना रही, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व विधवा दिवस घोषित करने के बाद भी पिछले बारह सालों में हमारे देश में कहीं भी विधवा दिवस पर एक भी आयोजन व विमर्श नही हुआ। समाज और स्थापित सरकारो की इस उदासीनता पर क्या समझा जाए! दुखद और सोचनीय कहा जा सकता है।

 

बढती जागरूकता के बल विधवाओं को लेकर यह सुखद है कि अब विधवा प्रथा की आड़ में महिलाओं की स्वतंत्रता के हनन के खिलाफ आवाजें बुलंद होने लगी हैं। आम महिलाओं की तरह विधवाओ को भी जीने के अधिकार की मांग को लेकर अब अभियान चलने लगे हैं ।

 

विधवाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए समय-समय पर हमारे देश में दशकों पूर्व कई आंदोलन भी चले, विधवाओं की स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार भी हुआ। लेकिन समय गुजरते सुधार लाने की कोशिशों पर विराम सा लगता देखा गया है। आधुनिकता की ओर बढ़ती इस सदी मे बहुत से आविष्कार हुए, नई-नई तकनीक से घर-परिवार व समाज के ताने बाने में आमूल चूल बदलाव भी आया लेकिन हमारे समाज में आज भी विधवाएं अलग-अलग कुप्रथाओं और सामाजिक प्रतिबंधों के कारण कष्टमय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बहिष्कृत जीवन जीने को बाध्य हैं। हजारों वर्षो की पारंपरिक बेड़ियों से विधवाऐ आज भी बंधी हुई देखी जा सकती हैं।

 

विधवाओं पर लगाई जाने वाली पाबंदियां उनके स्वतंत्र जीवन एवं उनके अवसरों की समानता के अधिकार में बाधा खड़ी करती नजर आयी हैं। यह भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकारों का पूरी तरह से हनन ही है। संविधान को पूरी निष्ठा से मानने वाले पढ़े लिखे लोग भी विधवाओं की विवशता पर खामोश ही रहते देखे गए हैं। समाज की सेवा करने वाली संस्थाएं भी विधवाओं के जीवन में बदलाव लाने के बारे में सोचती नजर नही आती हैं। हर साल महिला दिवस पर होने वाले आयोजनों में महिलाओं की अन्य समस्याओं पर जरूर जिक्र होता आया है, लेकिन विधवाओं के बारे में कभी कोई चर्चा तक देखी-सुनी नहीं गई है।

 

विगत वर्ष से विधवाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए महाराष्ट्र में कुछ कारगर प्रयास शुरु हुए हैं। महाराष्ट्र के एक गांव से शुरू हुए विधवा प्रथा विरोधी आंदोलन का दायरा बढ़ने लगा है। कोल्हापुर जिले की हेरवाड़ पंचायत द्वारा विधवा प्रथा को खत्म करने के प्रस्ताव को पूरे प्रदेश में लागू करने का एक परिपत्र जारी किया गया है। विगत वर्ष महिला दिवस पर कोल्हापुर की हेरवाड़ पंचायत में विधवा प्रथा को खत्म करने का प्रस्ताव रखा गया था जो सर्वसम्मति से पारित हुआ था। जिसके बाद पंचायत के ग्रामीणों द्वारा तय किया गया था गांव में किसी पुरुष की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी को हाथों की चूड़ियां तोड़ने, माथे से सिंदूर मिटाने और मंगलसूत्र निकालने जैसे काम के लिए विवश नहीं किया जा सकेगा। उसे पूर्व की भांति जीवन जीने का मौका दिया जाएगा।

 

किसी भी समाज में महिलाओं की बेहतर स्थिति ही उसके विकास को प्रदर्शित करती है। महिलाओं के साथ जुल्म और अत्याचार करने वाला समाज विकसित और सभ्य नहीं कहलाया जा सकता है।

 

जनसरोकारों, समाजिक व परोपकारी कार्यो से राष्ट्रीय स्तर पर जुडे रहे फाउंडेशन प्रमुखों प्रसून लतांत, प्रमोद झिंजाडे, हेमलता म्हस्के, शीतल राजपूत, दर्शनीय प्रिय, शबाना शेख, सुजाता रानी, वनिता लिला चंद्रभान, अणु श्री मिश्र इत्यादि के सानिध्य में पहली बार नई दिल्ली मे 23 जून को विश्व विधवा दिवस के अवसर पर विधवाओ के जीवन से जुड़ा यह राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन आयोजित करना एक स्वागत योग्य कदम है।

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