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भारत का ऊर्जा परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है

अमर संदेश दिल्ली। आज हमारा देश ऊर्जा प्रदर्शित से तेजी से विकसित हो रहा है भारत सरकार के उपकरण ऊर्जा क्षेत्र में विकसित होने के लिए बड़े ही जोर-जोर से कम कर रहे हैं जिसमें ओएनजीसी,इंडियन ऑयल, में आयल इंडिया,पेट्रोलियम उद्योग एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें पेट्रोलियम और उसके सहायक-उत्पादों की खोज, उत्पादन, शोधन, वितरण एवं विपणन कार्य शामिल हैं। इसमें कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण जैसी समुद्र के अंदर की अपस्ट्रीम गतिविधियां, परिवहन व भंडारण की मिडस्ट्रीम गतिविधियां तथा पेट्रोल, डीजल, एलपीजी व केरोसिन जैसे ईंधनों के शोधन और वितरण जैसी डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएं पूरी की जाती हैं। भारत की ऊर्जा आवश्यकतों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला पेट्रोलियम उद्योग ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है और विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को आधार प्रदान करता है।

 

वर्तमान में, भारत में तेल परिशोधन के लिए उन्नीस सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (पीएसयू) रिफाइनरी, तीन निजी क्षेत्र की रिफाइनरी और एक संयुक्त उद्यम रिफाइनरी हैं। देश की रिफाइनिंग क्षमता अप्रैल, 2014 में 215.066 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) से बढ़कर अप्रैल, 2024 में 256.816 एमएमटीपीए हो गई है

भारत के पेट्रोलियम उद्योग की शुरुआत 1867 में हुई थी, जब असम के डिगबोई में पहला तेल कुआं खोदा गया था। इस खोज ने देश की खोज एवं उत्पादन गतिविधियों की शुरुआत की। 1959 में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की स्थापना ने रिफाइनिंग और वितरण के लिए एक संरचित दृष्टिकोण की शुरुआत की। पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है, जिसमें छोटे पैमाने की रिफाइनरियों से लेकर घरेलू और निर्यात मांगों को पूरा करने में सक्षम एक मजबूत नेटवर्क तक शामिल है। आज, भारत का पेट्रोलियम उद्योग लचीलेपन और नवाचार का प्रतीक है, जो वैश्विक एवं घरेलू ऊर्जा चुनौतियों के जवाब में विकसित हो रहा है।

 

 

भारतीय पेट्रोलियम उद्योग तकनीकी प्रगति और नीतिगत सुधारों के कारण काफी विकसित हुआ है। 1990 का दशक आर्थिक उदारीकरण के साथ एक महत्वपूर्ण युग था, जिसके कारण निजी और विदेशी निवेश में वृद्धि हुई। ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) ने अन्वेषण तथा शोधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गुजरात में जामनगर रिफाइनरी जैसी अत्याधुनिक परिशोधनशाला की स्थापना ने रिफाइनिंग क्षमताओं को बढ़ाया है, जिससे भारत एशिया में रिफाइनिंग हब बन गया है। इसके अलावा, राष्ट्रीय अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (एनईएलपी) जैसी सरकारी गतिविधियों ने अन्वेषण कार्यों को प्रोत्साहित किया है।

 

 

 

भारत का ऊर्जा परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है। देश के तलछटी बेसिनों में 651.8 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल के भंडार और 1,138.6 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस के भंडार मौजूद हैं।

 

भारत के पेट्रोलियम उद्योग में कुछ हालिया अपडेट इस प्रकार हैं:

 

भारत 2030 तक अपने अन्वेषण क्षेत्र को 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक बढ़ाने की दिशा में अग्रसर है, जिसमें 2025 में 16% की वृद्धि होने की उम्मीद है।

 

भारत में घरेलू एलपीजी सिलेंडर का मूल्य दुनिया भर में सबसे कम है, वर्तमान में कीमत 14.2 किलोग्राम सिलेंडर के लिए 803 रुपये से भी कम है। पीएमयूवाई परिवारों के लिए 300 रुपये प्रति सिलेंडर की लक्षित सब्सिडी के बाद प्रभावी कीमत 503 रुपये प्रति सिलेंडर है।

 

पेट्रोलियम उद्योग में अन्वेषण एवं उत्पादन गतिविधियों के लिए अनुमोदन प्रक्रिया को अब सरल कर दिया गया है, जिससे 37 अनुमोदन प्रक्रियाएं घटकर केवल 18 रह गई हैं, इनमें से नौ अब स्व-प्रमाणन के लिए उपलब्ध हैं। 2024 में तेल क्षेत्र (विनियमन और विकास) संशोधन विधेयक पेश करने से तेल व गैस उत्पादकों के लिए नीति स्थिरता सुनिश्चित होगी और सभी हाइड्रोकार्बन के लिए एकल लाइसेंस संभव होगा। यह विधेयक हाल ही में 3 दिसंबर, 2024 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था।

 

 

पिछले दशक में भारत ने पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। देश की रिफाइनिंग क्षमता अब 250 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) से अधिक हो गई है, जिससे यह क्षेत्र वैश्विक बाजारों की मांग को पूरा करने में सक्षम हो गया है।

 

भारत के प्रमुख निर्यात गंतव्यों में दक्षिण एशियाई, अफ्रीकी और यूरोपीय देश शामिल हैं। निर्यातोन्मुख विकास पर सरकार के जोर तथा परिशोधनशालाओं के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) की स्थापना ने इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया है। निर्यात न केवल विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान देता है बल्कि वैश्विक ऊर्जा आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ाता है।

 

 

 

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, (पहले संशोधित अनुमान पर आधारित) कोक और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के विनिर्माण का सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) 2012-13 में 1.56 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 2.12 लाख करोड़ रुपये हो गया है। जिसने वर्तमान मूल्यों पर इसी अवधि में अखिल भारतीय सकल घरेलू उत्पाद को 99.44 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 269.49 लाख करोड़ रुपये करने में भी योगदान दिया है। यह उद्योग अन्वेषण, शोधन, वितरण और खुदरा क्षेत्रों में लाखों लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी प्रदान करता है। तेल एवं गैस उद्योग की मूल्य श्रृंखला पेट्रोकेमिकल्स, लॉजिस्टिक्स और विनिर्माण जैसे सहायक उद्योगों का सहयोग करती है। यह क्षेत्र कौशल विकास को बढ़ावा देकर और विविध कैरियर के अवसर प्रदान करके सामाजिक-आर्थिक स्थिरता को बढ़ाता है।

 

भारत अपने सशक्त बुनियादी ढांचे और रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के कारण वैश्विक स्तर पर शीर्ष पांच रिफाइनिंग देशों में शामिल है। देश रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों का सातवां सबसे बड़ा निर्यातक है। जामनगर रिफाइनरी जैसी सुविधाएं, जो दुनिया की सबसे बड़ी परिशोधनशालाओं में से एक है और रिफाइनिंग क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व को रेखांकित करती हैं। यह गतिविधि आधारित वैश्विक स्थिति भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाती है और इसे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजारों में एक प्रमुख व्यापारिक राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने फरवरी 2024 में आकलन किया था कि भारत अब से 2030 के बीच वैश्विक तेल मांग वृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत बन जाएगा। भारत, ब्राजील के बाद जैव ईंधन सम्मिश्रण में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

 

 

पेट्रोलियम उद्योग के विकास के लिए अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाना महत्वपूर्ण रहा है। उन्नत तेल पुनर्प्राप्ति (ईओआर) तकनीक, डिजिटलीकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग ने अन्वेषण एवं उत्पादन प्रक्रियाओं को अनुकूलित किया है। अधिकतर रिफाइनरी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए हरित तकनीकों को तेजी से अपना रही हैं। बायो-रिफाइनरी और कम्प्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) जैसे वैकल्पिक ईंधनों का विकास संबंधी परियोजनाएं स्थिरता एवं नवाचार के प्रति तेल उद्योग की वचनबद्धता को दर्शाती हैं।

 

भारत सरकार ने पेट्रोलियम क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। यहां कुछ प्रमुख बताई गई हैं:

 

प्रधानमंत्री जी-वन योजना: टिकाऊ ईंधन उत्पादन के लिए दूसरी पीढ़ी और तीसरी पीढ़ी के संयंत्रों जैसी जैव-इथेनॉल परियोजनाओं को सहयोग देना।

 

सामरिक पेट्रोलियम भंडार: भंडारण सुविधाओं के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना। भारत में, एसपीआर मुख्य रूप से विशाखापत्तनम, मैंगलोर और पादुर (कर्नाटक) में तीन भूमिगत भंडारण सुविधाओं में स्थित है, जिनकी कुल क्षमता 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) कच्चे तेल की है, जिसका प्रबंधन इंडियन स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व लिमिटेड (आईएसपीआरएल) द्वारा किया जाता है।

 

इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए जैव ईंधन को बढ़ावा देना। सरकार का लक्ष्य 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण प्राप्त करना है। ईबीपी कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से, इथेनॉल मिश्रण इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2013-14 में 38 करोड़ लीटर से बढ़कर ईएसवाई 2023-24 में 707.4 करोड़ लीटर से अधिक हो गया है।

 

शहरी गैस वितरण नेटवर्क विस्तार: 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 733 जिलों को कवर करते हुए पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) और कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) बुनियादी ढांचे का विस्तार करना, जिससे मुख्य भूमि का लगभग 100% क्षेत्र और देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 100% कवर हो जाएगा।

 

ऊर्जा सुरक्षा पहल: विदेशों में तेल ब्लॉकों की खोज और अधिग्रहण में निवेश।

 

हरित ईंधन की ओर बढ़ना भारत

 

सतत पहल (किफायती परिवहन के लिए टिकाऊ विकल्प): सतत पहल संभावित निवेशकों को कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए आमंत्रित करती है। इसका उद्देश्य कृषि अवशेषों, मवेशियों के गोबर और नगरपालिका के ठोस कचरे का बेहतर उपयोग करना तथा किसानों को राजस्व का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करना है।

 

मिशन ग्रीन हाइड्रोजन: कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देना। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया जैसे इसके डेरिवेटिव की 100 एमएमटी से अधिक वैश्विक मांग उभरने की उम्मीद है। वैश्विक बाजार के लगभग 10% हिस्से पर कब्जा करने के लक्ष्य के साथ, भारत संभावित रूप से प्रति वर्ष लगभग 10 एमएमटी ग्रीन हाइड्रोजन/ग्रीन अमोनिया का निर्यात कर सकता है। 2030 तक लक्षित उत्पादन क्षमता से कुल निवेश में 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लाभ मिलने और 6 लाख से अधिक रोजगार सृजित होने की संभावना है। मिशन के तहत विभिन्न ग्रीन हाइड्रोजन गतिविधियों के परिणामस्वरूप प्रति वर्ष लगभग 50 एमएमटी सीओ2 उत्सर्जन को रोकने की उम्मीद है। मिशन के लक्ष्यों की प्राप्ति से भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान मिलने और 2030 तक कुल 1 लाख करोड़ रुपये के जीवाश्म ईंधन आयात में कमी आने की उम्मीद है।

 

राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम: जैव-ऊर्जा उत्पादन और अपशिष्ट को कम करने पर केंद्रित।

 

हाइड्रोकार्बन अन्वेषण एवं लाइसेंसिंग नीति (हेल्प): अन्वेषण और उत्पादन में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।

 

पेट्रोलियम उद्योग के विस्तार के बहुआयामी निहितार्थ हैं। आर्थिक रूप से, यह सकल घरेलू उत्पाद, विदेशी मुद्रा आय और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देता है। राजनीतिक रूप से, ऊर्जा स्वतंत्रता भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करती है और रणनीतिक कमजोरियों को दूर करती है। सामाजिक रूप से, उद्योग का विकास बेहतर ऊर्जा पहुंच और रोजगार के माध्यम से ग्रामीण विकास को बढ़ावा देता है।

 

भारत का पेट्रोलियम उद्योग एक गतिशील भविष्य को देख रहा है, जो वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन और घरेलू मांग से आकार लेगा। अन्वेषण में निवेश बढ़ाना, शोधन क्षमता का विस्तार करना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना, इसकी प्रगति के पथ को निर्धारित करेगा। हरित हाइड्रोजन उत्पादन और कार्बन कैप्चर तकनीक जैसी पहल इस क्षेत्र की अनुकूलन क्षमता को उजागर करती हैं। स्थिरता और ऊर्जा दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ तालमेल बिठाते हुए वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में अपना नेतृत्व बनाए रखने के लिए तैयार है।

 

बीना तेल रिफाइनरी, वर्ष 2021 में, भारत सरकार के एक ‘महारत्न’ सार्वजनिक उपक्रम – भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी बन चुकी है।

 

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