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गोदावरी फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय बाल हितैषी सम्मान’ तथा ‘बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य’ पर संगोष्ठी संपन्न

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। पर्यावरण संरक्षण व बाल विकास को समर्पित गोदावरी फाउंडेशन द्वारा 25 अगस्त को आई टी ओ स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित ‘बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य’ पर दो सत्रों में प्रभावशाली ज्ञानवर्धक संगोष्ठी के आयोजन के साथ-साथ पर्यावरण और बाल विकास पर निरंतर प्रतिबद्ध होकर कार्य कर रहे विभिन्न राज्यों की संस्थाओं और लोगों को ‘राष्ट्रीय बाल हितैषी सम्मान’ से नवाजा गया। देश के जानेमाने कानून व पर्यावरण विदो तथा साहित्यकारों में प्रमुख अतुल प्रभाकर, अशोक अग्रवाल, हरि ओम जिंदल, ओम सपरा, राम मोहन राय, डॉ.अजय सिन्हा, सुगंधा, चंद्र मोहन पपनैं, प्रसून लतांत के कर कमलों दुपट्टा ओढ़ा कर, पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उक्त संस्थाओं व प्रतिबद्ध लोगों को सम्मानित किया गया।

‘राष्ट्रीय बाल हितैषी सम्मान’ से नवाजे जाने वालों में घमंडी लाल अग्रवाल (गुड़गांव), सविता वनजने (झारखंड), ममता सिंह (उत्तर प्रदेश), उमेश चंद्र पंत (उत्तराखंड), अनुपमा तिवारी (राजस्थान), डब्लू खान (बिहार), अश्विनी राजोरिया (उत्तर प्रदेश), संतोष दिघे (दिल्ली), सृष्टि गुलाटी (हरियाणा) के साथ-साथ अंशु महरा झा, दीपिका ठाकुर (बाल विकास में सुविख्यात थर्ड जैंडर), जय श्री राय, सुभाष चंद्र जैन, संगीता बनर्जी, डॉ.सुधीर मंडल, ममता जैन, रविकांत झा, जिहा दीक्षित, नेहा दीक्षित, वसुधा तनुप्रिय, सुमन शर्मा का नाम मुख्य रहा।

गोदावरी फाउंडेशन, सावित्री बाई सेवा फाउंडेशन पुणे एवं श्रीराम टाइल्स एंड इनफ्रोटेक सीटीओ रांची, झारखंड के सौजन्य से आयोजित ‘बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य’ पर दो सत्रों में आयोजित संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता ख्यातिरत साहित्यकार अतुल प्रभाकर तथा दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. अजय सिन्हा द्वारा मंचासीन अशोक अग्रवाल, हरि ओम जिंदल, ओम सपरा, राम मोहन राय, घमंडी लाल अग्रवाल, निशा बहन, नूतन पांडे, चंद्र मोहन पपनैं तथा डॉ. ममता ठाकुर के सानिध्य में आयोजित की गई। संगोष्ठी आयोजको द्वारा सभी मंचासीनों को पुष्पगुच्छ भेंट कर, दुपट्टा ओढ़ा कर स्वागत अभिनन्दन किया गया।

 

‘बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य’ पर दो सत्रों में आयोजित संगोष्ठी में विद्वान कानून विद अशोक अग्रवाल द्वारा कहा गया, मजदूरों, बच्चों, देश के हालात क्या हैं पर नहीं, परिस्थिति कैसे बेहतर बन सकती है के बावत अवगत कराना ज्यादा बेहतर होगा। अवगत कराया गया, फरीदाबाद के एक स्कूल में 825 छात्राएं एक जीर्ण-शीर्ण बिल्डिंग में शिक्षा ग्रहण कर रही थीं। बिल्डिंग के हालातों पर अर्से से संबंधित विभाग, अधिकारियों, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्य मंत्री सबसे गुहार लगाई जा चुकी थी, अखबारों में खबरें प्रकाशित होती रहती थी, कोई सुनने वाला नहीं था। और भी आठ दस स्कूलों की बिल्डिंगों का मुआयना किया सभी जगह खतरनाक हालात दिखे। कोर्ट की शरण ली, रेगुलर पीटीशन दाखिल की। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उक्त स्कूली जर्जर बिल्डिंगों की फोटो दिखाई। हड़कंप मचा। आनन फानन में सरकार द्वारा करोड़ों रुपया आवंटित किया गया।

कहा गया, करोना के दौरान स्कूली छुट्टियों में छात्र-छात्राओं की स्कूली बिल्डिंगों का नजारा बदल गया। चीफ इंजीनियर द्वारा मेरा उन नवनिर्मित बिल्डिंगों का दौरा करवाया गया। राज्य के अन्य शहरों की स्कूली बिल्डिंगों का नव निर्माण किया गया, संतुष्टि मिली।

 

कानून विद अशोक अग्रवाल द्वारा कहा गया, उक्त राज्य की पढ़ाई लिखाई तो आज भी बहुत पीछे है। राईट टू एजुकेशन कानून व एक्ट आ गया है, लागू भी हो गया है, धरातल पर क्या हो रहा है, अभिभावकों और शिक्षा ले रहे बच्चों की क्या दुर्दशा है, देखी जा सकती है। कहा गया, टीचर स्कूलों में नहीं हैं, नजदीक के कोर्ट में केश डाल दो उक्त स्कूल के खिलाफ।

 

बताया गया, जब पहला केश एक अभिभावक द्वारा कोर्ट में डाला गया पूरे सांसद, विधायक, हरियाणा की सरकार हिल गई थी। तीन माह में तीन हजार टीचर हरियाणा में रखे गए।

 

कहा गया, 2002 में दिल्ली के प्राईवेट स्कूलों में 25 फीसद गरीब बच्चों के एडमिशन मिलने हेतु कोशिश की गई। विधानसभा व संसद में सवाल उठे। इसी वर्ष कोर्ट में केश फाइल किया 2004 में पहला ऑर्डर आया। कोर्ट ने स्कूलों को कंटेंम्ट के नोटिस जारी किए। उक्त क्लाज से दिल्ली के स्कूलों में बदलाव नजर आया। कहा गया, प्राइवेट स्कूलों और अस्पतालों के खिलाफ कोर्ट केश डालना जरूरी है, क्योंकि उक्त स्कूल और अस्पताल बनाने के लिए जमीन कुछ शर्तों पर दी गई है, जन व गरीबों के हितार्थ के लिए। ये खूबसूरती है गैरबराबरी के खिलाफ लड़ाई लड़नें का।

 

कहा गया, महाराष्ट्र में भी झुग्गी बस्तियों में स्कूल चल रहे हैं। सरकार ने भी ईमानदारी से माना है यह सत्य है। उन्होंने बदलाव किया। कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल कर फायदा दिलवाया कमजोर वर्ग को। स्कूलों की बदहाली पर पटना उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी संज्ञान लिया है। ग्यारहवीं व बारहवीं के बच्चे जो दरियों में बैठते थे अब डेस्क में बैठने लगे हैं। कहा गया, कापसहेडा में दसवीं की छात्राएं दरी में बैठ कर पढ़ रही थी। उस स्कूल में 2500 छात्राएं पढ़ती हैं। उक्त स्कूल की खिड़कियां टूटी हुई, गंदगी से लबालब टाइलेट तथा अन्य व्यवस्थाओं को देख सोचने को मजबूर होना पड़ा। जितना हो सकता है स्कूली छात्राएं स्वयं साफ सफाई करती हैं। दिल्ली के स्कूलों में भी अभी बहुत कमियां हैं। शारीरिक रूप से अपंग और कमजोर बच्चे भी अब स्कूलों में दाखिला ले रहे हैं। बदलाव आ रहा है। कहा गया, अशोक अग्रवाल को अकेले नहीं, सभी अभिभावकों को आगे आना होगा। कोर्ट के अलावा भी वातावरण बनाना होगा। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के खातिर।

 

ओम सपरा द्वारा कहा गया, आज सबसे अधिक दुर्दशा बच्चों और जानवरों की हो रही है। बच्चों का अधिकार है दूध मिले, शिक्षा मिले। शिक्षा के अभाव में चाइल्ड लेबर का प्रतिशत अधिक है। चाइल्ड लेबर के अनेकों प्रकार हैं। बच्चे जिन्हें राजनीति, सामाजिकता, संस्कृति इत्यादि इत्यादि का कुछ भी पता नहीं है, उनकी समस्याओं का हल होना बहुत जरूरी है। कहा गया, कुछ एनजीओ अच्छा कार्य कर रहे हैं बच्चों के लिए। कहा गया, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को बच्चों की समस्याओं के समाधान हेतु एक मेमोरंडम भेजना जरूरी है। अन्य वक्ताओं द्वारा भी बच्चों की शिक्षा इत्यादि पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया।

 

प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे अतुल प्रभाकर द्वारा कहा गया, पहले सत्र में सभी वक्ता न्याय पालिका से जुड़े हुए रहे हैं, प्रक्रिया को समझते हैं जो आम आदमी नहीं समझ सकता। कानूनी नजरिया जो होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है। कैसे आगे बढ़ सकते हैं सभी कानून विदो का अभिनंदन। कानून विदो की जनसरोकारों से जुड़े कार्यों में आ रही दिक्कतों पर बहुत जरूरत है, उन्हें संवार कर बच्चों बूढों सभी को राहत दिलवाना कानून विदो के हाथ में है। वह कार्य हो जो आजतक नहीं हो पाया है। जिन्हें तैयार करना है वे अभिभावक आप लोग हैं, तभी भविष्य सुधरेगा। कहा गया, सम्मान का अर्थ है आप इससे भी अच्छा कार्य करे। कितना भी विकास हो जाए, चाहत है मनुष्यता बची रहे।

 

दूसरे सत्र में सम्मान प्राप्त वक्ताओं में थर्ड जैंडर दीपिका ठाकुर द्वारा कहा गया, शिक्षा ग्रहण करते वक्त जब वे लड़ाई लड़ रहे होते हैं इसका आभास 11 से 16 वर्ष के मध्य ही हुआ है। कैसे जी रहे हैं, कितने परेशान हैं, समझा जा सकता है। कहा गया मैं पुरुष रूप में पैदा हुई हूं। शारीरिक विकास स्त्री की तरह हुआ है। पिता की तरह जीने की इच्छा रहती है। थर्ड जैंडर की स्कूली पढ़ाई में अनेकों प्रकार की परेशानी होती है। सब हमसे जानना चाहते हैं, जिससे मानसिक तनाव होता है। कहा गया, मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया है, पीएचडी कर डॉ. दीपिका कहलवाना चाहती हूं। संघर्ष कर रही हूं।

 

दीपिका द्वारा कहा गया, तीन बच्चों का विकास करने में मदद की है। थर्ड जैंडर को भी स्किल डेबलपमेंट करवा कर रोजगार में जाने के लिए तैयार किया है। एक मैट्रो स्टेशन पर तथा अनेकों बड़ी कम्पनियों में जैंडर बच्चे कार्य कर रहे हैं। किन्नर शब्द में सहज महसूस नहीं होता है। अपने समाज के लिए जैंडर परिवर्तन के लिए एम्स में कार्य योजना शुरू करने आहवान किया है। कई राज्यों में अब यह होने लगा है। जैंडर शब्द बहुत छोटा है, बच्चों की शिक्षा से जुड़ा हुआ मानसिक स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है। कहा गया किसी को भी गुप्त क्रियाओं को छुपाने की जरूरत नहीं है, छुपाने पर अपराध बढ़ते हैं। आग्रह है जैंडर इश्यू को समझ स्कूल विद्यालयों में इस पर चर्चा होनी चाहिए। अवगत कराया गया, कुछ राज्यों में थर्ड जैंडर से जुड़ी किताबें पढ़ाई जा रही हैं। समाज थर्ड जैंडर के साथ आयेगा तो वे जुड़ेंगे मुख्य धारा में, नहीं तो अलग ही रहेगा।

 

अन्य वक्ताओं द्वारा कहा गया, देश के अनेकों गांवों में बेटी आज भी शिक्षा से दूर है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के बावजूद बेटियों का क्या हाल है, देखा जा सकता है। हर ग्रामीण क्षेत्र में बेटी को काम करने की जरूरत है, बेटी बनाकर रखने की जरूरत है। आज भी छोटी उम्र में बेटी की शादी कर दी जा रही है। ग्रामीण स्कूलों की पढ़ाई का स्तर गिर रहा है। जनसंख्या कंट्रोल कानून बनाना जरूरी है। आदिवासियों में गरीबी है, बच्चों को पढ़ाने में समर्थ नहीं हैं। वे चाहते हैं बच्चे श्रम करें।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, बच्चों को अच्छे संस्कार देने से, परंपरागत रीति रिवाजों से जोड़ने तथा सामाजिकता के भावों से जोड़ कर बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सकता है, बालिकाओं की शिक्षा के साथ साथ बालकों को भी उच्च संस्कार और शिक्षा देना जरूरी है तभी बदलाव लाया जा सकता है।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, फास्ट फूड का बच्चों द्वारा सेवन करने पर उनका स्वास्थ ठीक नहीं रहता है। यह सब घातक है। लड़कियों में खून की बहुत कमी हो रही है, वे पूरा आहार नहीं ले पा रही हैं। आर्थिक स्थिति जिम्मेवार है। कमजोरी की स्थिति में मानसिक स्वास्थ ठीक नहीं रहता है। जो बच्चे पढ़ लिख आगे बढ़ रहे हैं उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। शिक्षा के साथ साथ बच्चों को सांसारिक ज्ञान देना भी जरूरी है। कहा गया, किसी भी बच्चे के मन मस्तिष्क में आजीवन माता पिता केंद्र में रहते हैं। माता पिता को चाहिए वे बच्चों को अच्छा मार्ग दर्शन दे। बच्चों को उनकी बढ़ते उम्र के पड़ाव के मुताबिक़ उनकी मानसिकता को समझ उनका ज्ञान बढ़ाए। बच्चों को मोबाइल देना गलत है। बच्चों के साथ स्वयं बच्चे बने रहे। ।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, गांधी जी की शिक्षा थी चरित्र निर्माण। संयुक्त परिवारों का टूटना बच्चों के हित में नहीं रहा। छोटे-छोटे बच्चे अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं, उनका ख्याल रखना जरूरी है। बच्चे राष्ट्र की संपत्ति हैं, बच्चों की हर दृष्टि से सुरक्षा की जानी चाहिए, राष्ट्र हित में।

 

आयोजन के इस अवसर पर पर्यावरण एवं बाल हितों के लिए कार्य कर रहे अशोक गोयल, नवीना कुमारी, सुषमा सैनी, नूतन पांडे, संजीव सिंह, मक्खन लाल, शिव कुमार मिश्रा, प्रेरणा झा, सुगंधा, मोनिका, अमलेश राजू तथा प्रिय रंजन इत्यादि को भी संगोष्ठी आयोजक संस्थाओं द्वारा मंचासीनों के कर कमलों दुपट्टा ओढ़ा कर सम्मानित किया गया

 

आयोजित संगोष्ठी के पहले सत्र का मंच संचालन व संगोष्ठी समापन की घोषणा गांधीवादी प्रसून लतांत द्वारा तथा दूसरे सत्र का मंच संचालन डॉ. सुदीप मंडल द्वारा बखूबी व यादगार अंदाज़ में किया गया।

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