चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति ने किया आर-पार की लड़ाई लड़ने का ऐलान
अमर संदेश, दिल्ली। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारियों के सबसे बड़े संगठन चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति ने, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आगामी दिल्ली भ्रमण के दौरान उन्हें वंचित उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण हेतु ज्ञापन सौंपने का फैसला किया है। समिति के मुख्य संरक्षक और पूर्व राज्य मंत्री धीरेंद्र प्रताप की अनुशंसा पर समिति के केंद्रीय अध्यक्ष हरिकृष्ण भट्ट ने प्रसिद्ध राज्य आंदोलनकारी नंदन सिंह रावत को संगठन के वंचित राज्य आंदोलनकारी प्रकोष्ठ की दिल्ली इकाई का संरक्षक व मनमोहन शाह को इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है।
नवनियुक्त संरक्षक नंदन सिंह रावत ने कहा कि राजधानी दिल्ली सहित इसके आस-पास के शहरों में अनेक लोेगों के साथ चिन्हीकरण के मामले में अन्याय हुआ है। उन्होंने मौजूदा त्रिवेंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारियों की उपेक्षा पर गहन आक्रोश व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सभी वंचित आंदोलनकारियों ने अपने सम्मान व हक की लड़ाई लड़ने के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ने का फैसला किया है। श्री रावत ने कहा कि चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति अपनी मॉगों के समर्थन में गॉधीवादी सत्याग्रह के जरिये अपनी लड़ाई को और ज्यादा रफ्तार देगी। उन्होंने कहा कि आगामी 18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार की ताजपोशी को तीन वर्ष पूर्ण हो जायेंगे, परंतु इस सरकार ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्रियों,स्व. नारायण दत्त तिवारी, हरीश रावत तथा विजय बहुगुणा द्वारा इस दिशा में किये गये गंभीर प्रयासों को भी हाशिये पर कर दिया है। समिति ने फैसला किया है कि नवनियुक्त संरक्षक नंदन सिंह रावत तथा अध्यक्ष मनमोहन शाह के नेतृत्व में वंचित आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण हेतु मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आगामी दिल्ली आगमन पर उन्हें ज्ञापन सौंपा जायेगा। यदि ज्ञापन सौंपने के 15 दिनों की अवधि के अंदर वंचित आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण की कार्रवाई प्रकाश में नहीं आती है तो सभी आंदोलनकारी मुख्यमंत्री के आगामी दिल्ली भ्रमण के दौरान उनका घेराव करेंगे।
गौरतलब है कि उत्तराखंड की पिछली कांग्रेसनीत सरकार में राज्यमंत्री रहे धीरेंद्र प्रताप की पहल पर राजधानी दिल्ली में लगभग 300 ऐसे लोगों को चिन्हित किया गया था, जो उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन में तन-मन-धन से सक्रिय रहने के बावजूद अभी तक उत्तराखंड सरकार से मान्यता प्राप्त राज्य आंदोलनकारी प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं कर पाये हैं। राज्य गठन के दो दशकों के बाद भी इन आंदोलनकारियों को बतौर राज्य प्राप्ति आंदोलनकारी चिन्हित नहीं किया जाना विडंबना ही कहा जायेगा।