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शक्ति की नौ ज्योतियाँ : नवदुर्गा, नवग्रह और नौ चक्रों का दिव्य संग

आचार्या महिमा अग्रवाल

नवरात्रि का पर्व केवल भक्ति और उत्सव का नहीं, बल्कि यह नौ दिव्य शक्तियों—नवदुर्गा—की आराधना का अद्वितीय अवसर है। प्रत्येक देवी का अपना नाम, रूप, कथा, जीवन-संदेश, पूजा-विधि, मंत्र, ज्योतिषीय ग्रह-संबंध, योगिक चक्र और रंग-भोग-पुष्प का विशेष महत्त्व है। आइए जानें नौ देवियों के नौ अद्भुत पक्ष और उनसे जुड़ी नौ विशेष रहस्य—

प्रथम. माँ शैलपुत्री

(नवरात्रि का प्रथम दिन – पर्वतराज हिमालय की कन्या)

नाम और अर्थ

शैलपुत्री शब्द का अर्थ है “पर्वत की पुत्री”।

यह देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं।

इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ, इसलिए इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।

इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प, तथा वाहन नंदी (वृषभ) है।

माँ शैलपुत्री की कथा

माँ दुर्गा ने पूर्व जन्म में सति के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव से विवाह किया।

सति के पिता दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ किया, पर शिव को आमंत्रित नहीं किया।

यज्ञ में शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण सति ने योगाग्नि में अपना शरीर त्याग दिया।

शिव शोक और क्रोध में आकर प्रलयकारी तांडव करने लगे, जिससे समस्त ब्रह्माण्ड में भय छा गया।

हिमालय की पुत्री – पुनर्जन्म

पुनः देवी ने पर्वतराज हिमालय और रानी मैना के घर जन्म लिया।

इस जन्म में भी उनका लक्ष्य शिव से पुनः विवाह करना था।

इन्हीं रूप में वे शैलपुत्री कहलाईं।

शिव से पुनर्मिलन

कठोर तपस्या के बाद माता ने भगवान शिव को फिर से पति रूप में प्राप्त किया।

यही कथा आगे चलकर माँ पार्वती के स्वरूप में विकसित होती है।

स्वरूप का आध्यात्मिक संकेत

त्रिशूल: इच्छा, ज्ञान और क्रिया शक्ति पर नियंत्रण।

कमल: निर्मलता, आध्यात्मिक उन्नति।

नंदी वाहन: धर्म, सत्य और स्थिरता का प्रतीक।

जीवन के लिए संदेश

माँ शैलपुत्री का जीवन हमें यह सिखाता है:

आत्मसम्मान की रक्षा सबसे ऊपर है।

अपमान या अन्याय का सामना साहस और दृढ़ता से करना चाहिए।

विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म और मर्यादा का पालन आवश्यक है।

यह रूप साधक को आधार और स्थिरता देता है—नवरात्रि की साधना का प्रथम चरण यही है।

नवरात्रि प्रथम दिन पूजा-विधि

प्रातः स्नान के बाद कलश स्थापना और माँ का आह्वान।

श्वेत या हल्के रंग के वस्त्र पहनकर पूजन करें।

भोग: शुद्ध घी, दूध से बनी मिठाइयाँ, घी-शक्कर का प्रसाद।

पुष्प: सफेद कमल, मोगरा, चमेली।

मंत्र:

“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”

“वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: 🌙 चन्द्र (Moon)

चन्द्र मन और भावनाओं का कारक है।

माँ शैलपुत्री का पूजन मन की शांति, स्थिरता और मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करता है।

चन्द्र दोष (चन्द्रमा का नीच स्थान, मानसिक अस्थिरता) शांत करने हेतु विशेष रूप से इनकी उपासना की जाती है।

नवदुर्गा में प्रथम स्थान

नवरात्र की साधना का आधार हैं।

साधक का पहला चरण – मन और शरीर को शुद्ध कर स्थिर करना।

यही स्थिरता आगे की साधना में सफलता दिलाती है।

सार संदेश

“माँ शैलपुत्री यह सिखाती हैं कि आत्मसम्मान और धर्म के लिए किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करना चाहिए। मानसिक दृढ़ता और स्थिरता साधना की पहली सीढ़ी है।”

2. माँ ब्रह्मचारिणी

(द्वितीय नवरात्र की देवी

देवी दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी कहलाता है।

“ब्रह्म” का अर्थ है साधना और “चारिणी” का अर्थ है आचरण करने वाली—अर्थात् तप और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली देवी।

इनके दाहिने हाथ में जपमाला और बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और उनके चरणों में शांति और साधना का तेज झलकता है।

देवी ब्रह्मचारिणी की कथा सती और पार्वती के रूप से जुड़ी है

भगवान शिव से विवाह करने के बाद सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर अग्नि में देह त्याग दी।

सती ने वचन दिया कि अगले जन्म में शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करेंगी।

अगले जन्म में सती ने हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया।

उन्हें बचपन से ही ज्ञात था कि उनका उद्देश्य भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करना है।

नारद मुनि के मार्गदर्शन में पार्वती ने कठिन ब्रह्मचर्य व्रत और कठोर तप किया।

उन्होंने वर्षों तक केवल फलाहार किया, फिर पत्ते खाना छोड़ा और अंततः निर्जल उपवास करते हुए वर्षों तक केवल वायु पर जीवित रहीं।

उनकी इस कठोर साधना से तीनों लोकों में आश्चर्य फैल गया और देवता भी उनकी शक्ति से प्रभावित हुए।

अंततः उनकी अद्वितीय तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया और विवाह का संकल्प लिया।

इसी काल की पार्वती ब्रह्मचारिणी कहलाईं—जो ब्रह्मचर्य और तप की मूर्ति हैं।

धैर्य और आत्मबल: माँ ब्रह्मचारिणी यह सिखाती हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी संयम और धैर्य से लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

साधना का महत्व: किसी भी महान कार्य के लिए निरंतर प्रयास और आत्मनियंत्रण अनिवार्य है।

आत्मज्ञान की ओर मार्ग: सच्ची शक्ति बाहरी नहीं, भीतरी साधना और मानसिक दृढ़ता से आती है।

पूजा-विधि

प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।

रोली, चावल, पुष्प, अगरबत्ती, दीपक से पूजन करें।

उन्हें चीनी या गुड़ का भोग विशेष प्रिय है।

मंत्र जप:

“ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः”

यह मंत्र जपने से साधना में सफलता, मानसिक शांति और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

ज्योतिषीय महत्त्व

ग्रह: मंगल (Mars)

माँ ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद मंगलदोष, क्रोध और अस्थिरता को शांत करता है।

जीवन में साहस और ऊर्जा प्रदान करती हैं।

इस प्रकार माँ ब्रह्मचारिणी की कथा हमें यह प्रेरणा देती है कि

“सच्चा तप वही है, जहाँ धैर्य और विश्वास से अपने लक्ष्य तक पहुँचा जाए।”

3. माँ चंद्रघंटा

(नवरात्रि का तृतीय दिवस – शौर्य और शांति की देवी)

नाम और स्वरूप

चंद्र + घंटा = चंद्रघंटा।

इनके मस्तक पर अर्धचंद्र (आधा चंद्रमा) घंटे के आकार का दिखाई देता है, इसी कारण इनका नाम पड़ा।

रंग: सुनहरी आभा, शरीर पर दिव्य तेज।

वाहन: सिंह – अदम्य साहस और पराक्रम का प्रतीक।

आयुध: दस भुजाओं में कमल, कमंडल, धनुष-बाण, त्रिशूल, गदा आदि।

कथा

पार्वती का विवाह प्रसंग

जब पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या पूर्ण की, तो हिमालय ने विवाह का प्रस्ताव रखा।

भगवान शिव विवाह के समय अपने अद्भुत गणों और भयानक रूप में (राख से लिपटे शरीर, जटाजूट, सर्प आभूषण) पहुँचे।

इस दृश्य को देख समस्त लोग और देवता भयभीत हो गए।

देवी का युद्धरूप

उस समय पार्वती ने स्वयं को चंद्रघंटा रूप में प्रकट किया।

उनके तेज और सौंदर्य ने सबको आश्वस्त किया, और उन्होंने स्वयं बारात का स्वागत किया।

जब असुरों ने विवाह में बाधा डालनी चाही, तो देवी ने अपने सिंह पर सवार होकर उनका नाश किया।

शांति और वीरता का प्रतीक

देवी का यह रूप दर्शाता है कि मृदुता और वीरता साथ-साथ चल सकती है।

वे भक्तों के लिए शांत और करुणामयी, लेकिन दुष्टों के लिए उग्र और विनाशकारी हैं।

आध्यात्मिक महत्व

सिंह वाहन : अदम्य साहस, आत्मविश्वास।

घंटे के आकार का अर्धचंद्र : समय और चेतना पर नियंत्रण।

घंटानाद : नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करने वाली स्पंदन शक्ति।

जीवन के लिए संदेश

साहस और संतुलन: कोमलता और वीरता, दोनों का संतुलन जीवन में आवश्यक है।

निडरता: कठिन परिस्थितियों में भयमुक्त रहना ही सच्ची साधना है।

न्याय की रक्षा: अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का आह्वान।

नवरात्रि तृतीय दिन पूजा-विधि

इस दिन पीत या सुनहरे रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।

पूजन में गुलाब, कमल, धूप, दीपक का प्रयोग करें।

भोग: दूध, खीर, मीठा पान, घी से बनी मिठाई।

मंत्र:

“ॐ देवी चन्द्रघंटायै नमः”

“पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: मंगल (Mars)

मंगल साहस, शक्ति और आत्मबल का ग्रह है।

माँ चंद्रघंटा का पूजन मंगल दोष, रक्त संबंधी रोग, भय और विवाद को शांत करता है।

साधक को अडिग हिम्मत और आत्मविश्वास प्रदान करता है।

नवदुर्गा में स्थान

नवरात्रि के तीसरे दिन साधक को मन की स्थिरता के साथ वीरता प्राप्त होती है।

योगशास्त्र में यह साधक के मणिपूर चक्र को जागृत करती हैं, जो शक्ति और आत्मविश्वास का केंद्र है।

सार संदेश

“माँ चंद्रघंटा हमें सिखाती हैं कि भीतरी शांति और बाहरी साहस साथ-साथ आवश्यक हैं। करुणा में बल है, और बल में करुणा—यही जीवन का संतुलन है।”

4. माँ कूष्माण्डा

(नवरात्रि का चतुर्थ दिवस – सृष्टि की आदिशक्ति)

कूष्माण्डा नाम दो शब्दों से बना है—

कूष्मा = ब्रह्माण्ड / अण्ड

अण्ड = सृष्टि

अर्थ: “वह आदिशक्ति जिनकी मंद मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई।”

स्वरूप: अष्टभुजा (आठ भुजाओं वाली) देवी।

हथियार: कमण्डल, धनुष, बाण, चक्र, गदा, जपमाला, अमृत कलश, कमल।

वाहन: सिंह – शक्ति और पराक्रम का प्रतीक।

कथा

जब सृष्टि का सर्वत्र शून्य था, न प्रकाश था, न ध्वनि, केवल गहन अन्धकार था।

तब आदि शक्ति ने अपनी हल्की मुस्कान से ब्रह्माण्ड की रचना की।

यह मुस्कान ही “कूष्माण्ड” कहलायी—जिससे अनन्त सूर्य-तारों और ग्रहों का निर्माण हुआ।

सूर्यमण्डल में वास

देवी कूष्माण्डा को सूर्यलोक में वास करने वाली कहा गया है।

उनके तेज से ही सूर्य को अनन्त ज्योति और ऊर्जा प्राप्त होती है।

देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि ब्रह्माण्ड का प्रारम्भ उन्हीं की दिव्य हँसी से हुआ।

प्रतीकात्मक अर्थ

मंद हँसी: सकारात्मक सृजन शक्ति।

अण्ड: सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का बीज।

आठ भुजाएँ: अष्टसिद्धियाँ और नव निधियों पर नियंत्रण।

यह बताता है कि खुशी और आंतरिक आनंद से ही सृजन और जीवन का विस्तार संभव है।

जीवन के लिए संदेश

सृजन का भाव: जीवन में नयी शुरुआत और सृजन शक्ति का प्रतीक।

उत्साह और प्रसन्नता: आंतरिक प्रसन्नता से ही कार्यों में सफलता मिलती है।

ऊर्जा का स्रोत: हमारी आत्मा की शक्ति असीम है, जैसे सूर्य की ऊर्जा।

नवरात्रि चतुर्थ दिन पूजा-विधि

वस्त्र: हरा या हल्का पीला शुभ।

पूजन में गुलाब, गेंदे का फूल, कमल अर्पित करें।

भोग: मालपुआ, पुए, मीठा पान, दूध और पञ्चमेवा विशेष प्रिय।

मंत्र:

“ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः”

“सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: सूर्य (Sun)

सूर्य आत्मबल, आत्मविश्वास और स्वास्थ्य का कारक है।

माँ कूष्माण्डा का पूजन सूर्य दोष, नेत्र रोग, मानसिक कमजोरी को दूर करता है।

साधक को तेज, दीर्घायु और नेतृत्व-शक्ति मिलती है।

नवदुर्गा में स्थान

नवरात्रि के चौथे दिन साधक के अनाहत चक्र (हृदय चक्र) की जागृति होती है।

यह प्रेम, करुणा और सृजनशीलता का केंद्र है।

सार संदेश

“माँ कूष्माण्डा यह सिखाती हैं कि आंतरिक आनंद और सकारात्मकता से ही सृष्टि और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है। मुस्कान से संसार रचा जा सकता है।”

5. माँ स्कंदमाता

(नवरात्रि का पंचम दिवस – मातृत्व और करुणा की देवी)

स्कंद = भगवान कार्तिकेय (मुरुगन/सुब्रह्मण्य)

माता = माता

इसलिए अर्थ हुआ “भगवान स्कंद की माता”।

यह नवरात्रि की पाँचवीं देवी हैं।

स्वरूप: चार भुजाएँ –

दो हाथों में कमल पुष्प,

एक हाथ से पुत्र स्कंद को गोद में थामे,

एक हाथ से आशीर्वाद देती हैं।

वाहन: सिंह – वीरता, साहस और धर्म की रक्षा का प्रतीक

कथा

असुर तारकासुर को वरदान था कि उसका वध केवल शिवपुत्र कर सकता है।

उस समय शिव तप में लीन थे और विवाह की संभावना नहीं दिख रही थी।

पार्वती का तप और विवाह

देवी पार्वती ने कठोर तप कर शिव को प्रसन्न किया।

उनका विवाह हुआ और पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ।

कार्तिकेय का पालन और वध

माँ पार्वती ने स्कंद को पालन-पोषण कर महान योद्धा बनाया।

स्कंद ने देवलोक का सेनापति बनकर तारकासुर का वध किया।

पार्वती इस रूप में स्कंदमाता कहलायीं।

आध्यात्मिक प्रतीक

गोद में स्कंद: मातृत्व, करुणा और पालन की परम अभिव्यक्ति।

कमल: निर्मलता और भक्तों को मोक्ष प्रदान करने की शक्ति।

सिंह पर सवार माता यह दर्शाती हैं कि ममता और वीरता एक साथ रह सकती हैं।

जीवन के लिए संदेश

मातृत्व का आदर्श: बिना शर्त प्रेम और संरक्षण।

धैर्य और पालन: कठिनाइयों में भी अपने कर्तव्य का निर्वाह करना।

शांति और बल का संतुलन: कोमलता के साथ धर्म की रक्षा करने की शक्ति।

यह देवी बताती हैं कि करुणा ही सबसे बड़ी ताकत है।

नवरात्रि पंचम दिन पूजा-विधि

वस्त्र: हल्का पीला, नारंगी या गुलाबी शुभ।

पूजन में लाल या गुलाबी कमल, गुलाब, गेंदे के फूल अर्पित करें।

भोग: केले का प्रसाद, मिश्री मिश्रित दूध, आंवला या मीठे फल।

मंत्र:

“ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः”

“सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रिता करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: बुध (Mercury)

बुध बुद्धि, संवाद और चतुराई का ग्रह है।

माँ स्कंदमाता का पूजन बुध दोष, मानसिक असंतुलन, शिक्षा व वाणी संबंधी समस्याओं को शांत करता है।

साधक को तीक्ष्ण बुद्धि, शांत मन और वाक्-कौशल प्रदान करता है।

नवदुर्गा में स्थान

नवरात्रि के पाँचवें दिन साधक के विशुद्धि चक्र (कंठ चक्र) की जागृति होती है।

यह चक्र सत्य वाणी, आत्मविश्वास और संचार का केंद्र है।

सार संदेश“माँ स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि करुणा और मातृत्व में सबसे बड़ी शक्ति छिपी है। प्रेम और धैर्य से ही धर्म और संतुलन की रक्षा होती है।”

6. माँ कात्यायनी

(नवरात्रि का षष्ठम दिवस – अन्याय के नाश और धर्म की रक्षा की देवी)

कात्यायनी = “ऋषि कात्यायन की पुत्री”।

पुराणों के अनुसार महर्षि कात्यायन ने देवी को अपनी पुत्री रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था।

देवी ने उनके घर जन्म लेकर यह वरदान पूर्ण किया, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा जाता है।

रूप

चार भुजाएँ—दो में कमल और तलवार, एक में आशीर्वाद, एक में अभय मुद्रा।

वाहन: सिंह, अदम्य शक्ति और साहस का प्रतीक।

तेज: स्वर्णाभ (सुनहरी) आभा से देदीप्यमान।

कथा,्हिषासुर ने घोर तप कर ब्रह्मा से वरदान लिया था कि “कोई पुरुष उसका वध न कर सके”।

वरदान के घमंड में वह देवताओं को पराजित कर स्वर्ग का स्वामी बन बैठा।

देवताओं की प्रार्थना

त्रस्त देवगण ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास गए।

तीनों ने अपनी-अपनी शक्तियाँ मिलाकर एक अद्भुत तेज उत्पन्न किया, जिससे देवी कात्यायनी प्रकट हुईं।

युद्ध और विजय

देवी ने सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का भीषण युद्ध में संहार किया।

इस प्रकार वे अधर्म और अन्याय के विनाश का प्रतीक बनीं।

आध्यात्मिक प्रतीक

सिंह वाहन: अदम्य साहस और निर्भीकता।

तलवार: अन्याय के विनाश की शक्ति।

कमल: धर्म, शांति और पवित्रता।

यह संदेश कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक होने पर शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

 

जीवन के लिए संदेश

अन्याय का प्रतिकार: जीवन में अन्याय, भय और बुराई के सामने निडर रहना।

आत्मविश्वास और कर्म: साहस और सत्कर्म से ही विजय संभव है।

स्त्री-शक्ति का प्रतीक: बताती हैं कि करुणा के साथ साथ शक्ति का रूप भी स्त्री ही है।

नवरात्रि षष्ठम दिन पूजा-विधि

वस्त्र: लाल, गेरुआ या चमकीला सुनहरा शुभ।

पुष्प: लाल गुलाब, गेंदे के फूल, केसरिया कमल।

भोग: शहद, गुड़ से बने व्यंजन, मिठाई, अनार का प्रसाद।

मंत्र:

“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः”

“चंद्रहासोज्ज्वलाकारा शारदूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥”

जयोतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: बृहस्पति (Jupiter)

बृहस्पति ज्ञान, धर्म, गुरु और नैतिकता का प्रतीक है।

माँ कात्यायनी का पूजन गुरु दोष, विवाह में विलंब, संतान-सुख की बाधाएँ दूर करता है।

विशेष रूप से कन्या विवाह और मांगलिक दोष शांति के लिए इनकी उपासना की जाती है।

नवदुर्गा में स्थान

नवरात्रि के छठे दिन साधक के आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य चक्र) की जागृति होती है।

यह चक्र अंतर्ज्ञान, विवेक और गहन आत्मज्ञान का केंद्र है।

सार संदेश

“माँ कात्यायनी हमें सिखाती हैं कि धर्म की रक्षा और अन्याय के नाश हेतु साहस के साथ कर्म करना ही सच्ची साधना है। केवल भक्ति नहीं, बल्कि कर्म और वीरता भी जीवन का आवश्यक अंग हैं।”

7. माँ कालरात्रि – सप्तम नवरात्र का अद्भुत रहस्य

(अत्यन्त उग्र परन्तु करुणामयी – भक्तों के लिए माँ की रक्षक शक्ति)

कालरात्रि = “समस्त काल (मृत्यु/अज्ञान) को नष्ट करने वाली रात्रि”।

यह माँ दुर्गा का सबसे भीषण और उग्र रूप है, किंतु भक्तों के लिए कल्याणकारी।

रूप:

वर्ण – श्याम (गहरा नीला/कृष्ण)।

केश – खुले व बिखरे हुए।

गले में चमकता माला रूपी अग्नि हार।

चार भुजाएँ:

एक हाथ वर-मुद्रा (आशीर्वाद)

दूसरा अभय-मुद्रा (भय-निवारण)

शेष दो में लोहे का खड्ग (तलवार) और काँटा (लोहे का अस्त्र)।

वाहन – गर्दभ (गधा), जो विनम्रता व सहनशीलता का प्रतीक है

कथा

देवी भागवत व मार्कण्डेय पुराण के अनुसार—

शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे दैत्यों का वध करने के लिए माँ ने उग्र रूप धारण किया।

जिस क्षण देवी का तेज असह्य हो गया, वहाँ चारों ओर अंधकार छा गया—यह काल की रात्रि थी, अतः वे कालरात्रि नाम से विख्यात हुईं।

उनके क्रोध से राक्षस कांप उठे और धर्म की पुनः स्थापना हुई।

आध्यात्मिक अर्थ

अज्ञान व भय का नाश: कालरात्रि वह शक्ति है जो हमारे भीतर के अंधकार, भय, नकारात्मकता को समाप्त करती है।

मृत्यु-जागरूकता: हमें जीवन की अनित्यता का बोध कराती हैं, ताकि हम सच्चे आत्मज्ञान की ओर बढ़ें।

यह संदेश कि सत्य के पथ पर चलने वाले को किसी भय की आवश्यकता नहीं।

जीवन के लिए संदेश

भय से ऊपर उठकर सत्य का अनुसरण।

अंतर्मन के नकारात्मक विचार, क्रोध, ईर्ष्या का त्याग।

कठिन समय में साहस और धैर्य बनाए रखना।

नवरात्रि सप्तम दिन पूजा-विधि

रंग: नीला, काला या गाढ़ा बैंगनी।

पुष्प: रातरानी, अपराजिता या लाल गेंदा।

भोग: गुड़, शहद, नारियल, काले तिल से बने प्रसाद।

मंत्र:

“ॐ देवी कालरात्र्यै नमः”

“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: शनि (Saturn)

शनि ग्रह की पीड़ा, साढ़ेसाती, ढैय्या, पितृदोष आदि को शांति देती हैं।

शनि दोष से मुक्त होने और धैर्य-साहस प्राप्त करने के लिए इनका पूजन अत्यंत फलदायी है।

नवदुर्गा में स्थान

सप्तम दिन साधक के सहस्रार चक्र (सिर के शीर्ष) की शक्ति जागृत होती है।

यह चक्र मोक्ष, अनंत शांति और ब्रह्म से एकत्व का द्वार है।

सार संदेश

“माँ कालरात्रि बताती हैं कि जीवन के अंधकार और भय से मुक्ति तभी है जब हम सत्य और आत्मज्ञान की ओर बढ़ें। भय का अंत ही वास्तविक स्वतंत्रता है।”

स्मरण: उनका रूप भले ही उग्र और भयावह हो, किंतु वे अपने भक्तों को सदैव निडर, निर्भय और कल्याणकारी जीवन प्रदान करती हैं।

8. माँ महागौरी

(पावनता, करुणा और मोक्ष की देवी)

महागौरी = “अत्यन्त गौर वर्ण वाली” या “परम श्वेत तेजस्विनी”।

देवी पार्वती के इसी रूप को महागौरी कहा जाता है।

रूप-वर्णन

चार भुजाएँ – दो में त्रिशूल और डमरू, दो में वर-मुद्रा और अभय-मुद्रा।

वस्त्र व आभूषण: पूर्ण श्वेत वस्त्र और श्वेत आभूषण।

वाहन: बैल (नंदी)।

तेज: चन्द्रमा समान उज्ज्वल, पूर्णिमा की चाँदनी जैसा सौम्य।

कथा,देवी भागवत, शिव पुराण और स्कंद पुराण में वर्णित—कठोर तप की कहानी।हिमालय कन्या पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की।

वर्षों की तपस्या के कारण उनका शरीर काला और कृशकाय हो गया।

शिव का वरदान

उनकी अटूट भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए।

उनके शरीर पर गंगाजल और दिव्य जल बरसाया गया, जिससे पार्वती का वर्ण अत्यंत गोरा और दीप्तिमान हो गया।

इसी श्वेत व दिव्य स्वरूप को महागौरी कहा गया।

आध्यात्मिक अर्थ

शुद्धता और मोक्ष: महागौरी आत्मा की परम पवित्रता का प्रतीक हैं।

तप व संयम का फल: कठोर साधना के बाद ही ईश्वर का मिलन और दिव्यता प्राप्त होती है।

शांति व करुणा: क्रोध, मोह और लोभ का क्षय कर मन को निर्मल बनाने का संदेश।

जीवन के लिए संदेश

आंतरिक और बाहरी शुद्धि का महत्व।

ईश्वर-प्राप्ति के लिए धैर्य, तप, और सतत भक्ति आवश्यक है।

मोह और अहंकार त्याग कर, आत्मा की निर्मलता को जगाना।

नवरात्रि अष्टम दिन पूजा-विधि

रंग: श्वेत, हल्का गुलाबी या चाँदी जैसा।

पुष्प: चम्पा, चमेली, मोगरा या कोई भी सफेद फूल।

भोग: नारियल, खीर, मिश्री, सफेद मिठाई (जैसे रसमलाई)।

मंत्र:

“ॐ देवी महागौर्यै नमः”

“श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: राहु

राहु के अशुभ प्रभाव, मानसिक अशांति और भय को दूर करती हैं।

राहु महादशा/अंतर्दशा में शांति के लिए अष्टम दिवस की उपासना विशेष फलदायी है।

नवदुर्गा में स्थान

अष्टम दिन साधक के सहस्रार चक्र को पूर्ण रूप से शुद्ध कर देता है, जिससे मोक्ष और परम शांति का अनुभव होता है।

सार संदेश

“माँ महागौरी यह स्मरण कराती हैं कि आत्मा का वास्तविक स्वरूप निर्मल और उज्ज्वल है। तप, संयम और सच्ची भक्ति से हम सभी अपने जीवन में दिव्य पवित्रता का अनुभव कर सकते हैं।”

विशेष मान्यता

कन्या पूजन (कुमारी पूजन) का विशेष महत्व अष्टमी को ही माना गया है।

विश्वास है कि इस दिन माँ महागौरी का आशीर्वाद ग्रहण करने से समस्त पाप क्षीण होते हैं और जीवन में सुख, शांति, धन-धान्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माँ सिद्धिदात्री – नवरात्रि का दिव्य समापन

(सिद्धि और अद्भुत शक्तियों की दात्री)

सिद्धिदात्री = “सभी सिद्धियों (अलौकिक शक्तियों) को प्रदान करने वाली देवी”।

देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है कि वे भगवान शिव को भी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली हैं।

रूप-वर्णन

कमल आसन पर विराजमान।

चार भुजाएँ:

चक्र (धर्म रक्षा का प्रतीक)

गदा (शक्ति)

शंख (आध्यात्मिक नाद)

कमल (पवित्रता व करुणा)।

वस्त्र व आभूषण: गाढ़े नीले या लाल रंग के, दिव्य आभा के साथ।

वाहन: सिंह व कमल पुष्प पर स्थित।

कथा

सृष्टि निर्माण के प्रारंभ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को सृजन, पालन और संहार की सिद्धि माँ सिद्धिदात्री से ही प्राप्त हुई।

कथा के अनुसार, भगवान शिव ने जब ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का लाभ प्राप्त किया तो वे अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए। यह शक्ति माँ सिद्धिदात्री की कृपा से ही संभव हुई।

वे आठों प्रकार की प्रमुख सिद्धियाँ—

अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व— प्रदान करती हैं।

आध्यात्मिक अर्थ

आत्मज्ञान और दिव्यता का अंतिम चरण।

सिद्धि केवल अलौकिक शक्ति नहीं, बल्कि पूर्णता (perfection) का प्रतीक है।

संदेश कि सभी शक्तियों का स्रोत एक ही परम चेतना है—और वही भीतर जागृत करनी है।

जीवन के लिए संदेश

आत्म-साक्षात्कार से ही जीवन की समस्त शक्तियाँ जागृत होती हैं।

भक्त को यह सिखाती हैं कि सिद्धि केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि सेवा और करुणा के लिए है।

अंतिम लक्ष्य मोक्ष और परम शांति है, न कि सांसारिक प्रदर्शन।

नवरात्रि नवमी दिन पूजा-विधि

रंग: बैंगनी, नीला या हल्का गुलाबी।

पुष्प: कमल, चमेली, अपराजिता।

भोग: तिल के लड्डू, खीर, मीठे फल।

मंत्र:

“ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः”

“सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥”

ज्योतिषीय महत्त्व

संबंधित ग्रह: केतु

केतु आध्यात्मिकता और मोक्ष का कारक है।

माँ सिद्धिदात्री की उपासना केतु दोष, अचानक घटनाओं, आध्यात्मिक बाधाओं को दूर कर आध्यात्मिक सिद्धि और मानसिक शांति प्रदान करती है।

नवदुर्गा में स्थान

नवमी का दिन सहस्रार चक्र को पूर्ण रूप से जाग्रत कर देता है।

यह आत्मा का ब्रह्म से मिलन और पूर्ण एकत्व (Samadhi) का संकेत है।

सार संदेश

“माँ सिद्धिदात्री बताती हैं कि ब्रह्मांड की समस्त शक्तियाँ हमारे भीतर हैं। आत्मज्ञान, तप और निष्काम भक्ति से ही सच्ची सिद्धि और परम मोक्ष की प्राप्ति होती है।”

विशेष मान्यता

नवमी के दिन कन्या पूजन व होम का विशेष महत्व है।

विश्वास है कि इस दिन की साधना से साधक को आठों सिद्धियाँ, सभी ग्रहीय दोषो से मुक्ति और जीवन में संतोष-समृद्धि प्राप्त होती है।

नवरात्र केवल उत्सव नहीं, यह नवदुर्गा, नवग्रह और नौ चक्रों की सामूहिक साधना है। प्रत्येक देवी का आराधन हमारे जीवन को शक्ति, शांति, ज्ञान और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
इन नौ रातों में की गई साधना—चाहे मंत्र-जप हो, ध्यान हो या भक्ति—मानव को भीतर के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। यही नवरात्रि का सार और सनातन धर्म का शाश्वत संदेश है।

वैदिक ज्योतिष, मनोविज्ञान व वास्तु की विदुषी आचार्या महिमा अग्रवाल सात वर्ष की आयु से ही आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर हैं। इनकी परामर्श शैली पारंपरिक शास्त्रों और आधुनिक शोध—दोनों का संगम है, जिससे हर आयु वर्ग को व्यावहारिक समाधान मिलता है। उनका कहना है कि ज्योतिष केवल भविष्य बताने की कला नहीं, परंतु ज्योतिष के सदुपयोग से जीवन को सुसज्जित करने की कला को ही ज्योतिष कहते हैं।
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