


उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल और जन समाज के मध्य गोरिल, बाला गोरिया, गोल ज्यू, गौर भैरव व गोलू देवता इत्यादि नामों से न्याय देवता के रूप में अत्यंत ख्यातिरत और जन समाज द्वारा पूज्य रहे हैं। मंचित नाटक द्वारा देवता और मानव के बीच की तारतम्यता को प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया गया। मंचित गाथा कथासार को सूत्रधारों के माध्यम से बड़ी खूबी से विस्तार दिया गया, गाथा बखान किया गया। गाथा बखान के क्रम में ही पौराणिक देवगाथा से जुड़े नाटक के दृश्यों का मंचन अंचल की कुमाऊनी बोली-भाषा में बखूबी किया गया। तालियों की गड़गड़ाहट कर श्रोताओं द्वारा मंचित नाटक के पात्रों का उत्साह वर्धन किया गया।

