मुम्बई कौथिग -2020 सांस्कृतिक महाकुम्भ है : संजय शर्मा दरमोड़ा
कार्यालय संवाददाता अमर संदेश। उत्तराखंड के गॉव-गुठ्यारों (गौशालाओं) और पहाड़ की चोटियों तथा खालों (जलाशयों) से निकलकर आज ‘कौथिग’ (मेला) के मायानगरी आमची मुंबई पहुॅचने पर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। उत्तराखण्ड की इस गौरवशाली संस्कृति के इस प्रसार व विस्तार पर आज मुझे गढ़वाली लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का लोकप्रिय मार्मिक गीत याद आ रहा है जिसमें वह कहते हैं-‘देसू-परदेसू जखि रौला, तेरा मान-सम्मान बढ़ोला, द्यबतों का देसा हो, मेरा गढ़देसा हो। जौ जसौ देई दैंणू ह्वै जैई, देसू मा का देसा हो, मेरा गढ़देसा हो।
मायानगरी मुंबई में आयोजित, ‘मुंबई कौथिग-2020’ कार्यक्रम के दौरान दर्शकों को संबोधित करते हुए, भारत के उच्चतम न्यायालय के विख्यात अधिवक्ता संजय शर्मा दरमोड़ा ने बाबा श्री केदारनाथ व भगवान श्री बदरीनारायण (श्री बदरीनाथ) के श्रीचरणों में अपना नमन अर्पित करते हुए ‘कौथिग-2020’ को सांस्कृतिक महाकुम्भ करार दिया। दर्शकों से खचाखच भरे पंडाल में दर्शकों को अधिवक्ता संजय शर्मा दरमोड़ा ने अपनी मातृभाषा गढ़वाली में संबोधित करते हुए भाव विभोर कर दिया। श्री शर्मा ने मुंबई में कौथिग का आयोजन कर गढ़वाल के खालों (जलाशयों) और कुमाउॅ के तालों (झीलों) की समृद्ध संस्कृति की सतरंगी छटा बिखेरने के लिए कौथिग के आयोजकों की मुक्तकण्ठ सराहना की। संजय शर्मा दरमोड़ा ने कहा कि बसंत ऋतु में सागर किनारे कौथिग का आयोजन अनूठा सुखद अहसास दे रहा है। विविध रंगी पारंपरिक पहाड़ी परिधानों में महान देश भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आयोजित, ‘कौथिग-2020’ में खुशी में चहकते-थिरकते युवक-युवतियों, बालक-बालिकाओं वरिष्ठ जनों को देखकर, ऐसा लगता है कि प्योली और बुरॉश खिल आये हों। उन्होंने उत्तराखण्ड की आस,विकास और उल्लास पर केंद्रित कार्यक्रमों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उत्तराखंड के वे गीत जो हम पहाड़ियों के दुर्दमनीय संघर्ष को अभिव्यक्त करते हैं, वे हमें आगे बढ़ने की सतत प्रेरणा व ताकत देते रहेंगे। उन्होंने कहा कि अपने काम के सिलसिले में वे अनेक बार मुंबई आ चुके हैं तथा अपने मित्रों-परिजनों के साथ यहॉ के अनेक दर्शनीय स्थलों की सैर कर चुके हैं। परंतु कौथिग की सैर करके उन्हें जो आनंद आया वह अवर्णनीय है।
उन्होंने कहा कि आज मुझे अपने वरिष्ठ जनों द्वारा समय-समय पर स्मरण कराये गये उन महान कर्मयोगियों के कृतित्व याद आ रहे हैं, जिन्होंने दुर्गम पहाड़ों से निकलकर सुदूर सागर तट पर बसी मायानगरी में आकर उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया। श्री दरमोड़ा ने कहा कि यदि हम साहित्य की बात करें तो शैलेश मटियानी जी की उत्कृष्ट कृति, ‘बोरीवली से मुंबई तक’ और सिनेमा की बात करें तो विश्वेश्वर दत्त नौटियाल द्वारा निर्मित सुपरहिट गढ़वाली फिल्म ‘घरजवैं’ और पहली गढ़वाली फिल्म, ‘जग्वाल’ का निर्माण करने वाले पीसी बलोदी, ‘समलौण्या’ के निर्माता चरण सिंह चौहान, ‘हिलांस’ अखबार के संपादक अर्जुन सिंह गुसाईं तथा ‘नूतन सवेरा’ के संपादक नंदकिशोर नौटियाल का श्रद्धा सहित सायास स्मरण हो आता है। उत्तराखण्ड की इन प्रतिभाओं ने मायानगरी मुंबई को अपनी कर्मस्थली चुनते हुए उत्तराखण्ड का मान-सम्मान बढ़ाया और भारत ही नहीं अपितु समूचे विश्व में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
संजय शर्मा दरमोड़ा ने अपने पसंदीदा लोकगायक शिवप्रसाद पोखरियाल का मार्मिक गीत,‘ जौं भयूॅकि हूणि होलि हूंका ठराला, अर अणमिला भ्यूंका लोग ठट्ठा लगाला।’ को गाते हुए कहा कि आप सभी लोगों का प्रेम, स्नेह और अपनापन पाकर मेरा ‘हिया भर आया’ है।
श्री शर्मा ने इस अवसर पर मौजूद समाजसेवी भोले जी महाराज व माता मंगला सहित कौथिग के आयोजन से जुड़े सभी आयोजकों व कलाकारों, दर्शकों तथा मीडियाकर्मियों का आभार जताते हुए यह विश्वास व्यक्त किया कि अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी की अपनी पहचान को कायम रखते हुए, आमची मुंबई में रहने वाले सभी उत्तराखण्डी प्योली-बुरॉश की इस महक को कौथिग के माध्यम से सदा बिखेरते रहेंगे। भारत भूमि, जन्मभूमि व महाराष्ट्र को नमन करते हुए उन्होंने अपने स्नेहसिक्त संबोधन को विराम दिया।