भारत का पेट्रोलियम और ऊर्जा क्षेत्र वैश्विक ऊर्जा भविष्य को आकार देने की दिशा में अग्रसर
वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में भारत की अग्रणी भूमिका—हरदीप सिंह पुरी
Amar sandesh दिल्ली ।हैदराबाद में आज आयोजित एनर्जी टेक्नोलॉजी मीट के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत का पेट्रोलियम और ऊर्जा क्षेत्र एक परिवर्तनकारी विस्तार के दौर से गुजर रहा है, जो वैश्विक ऊर्जा भविष्य को दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि भारत की ऊर्जा यात्रा दूरदर्शी नीतिगत ढांचे, तीव्र नवाचार और रिफाइनिंग, बायोफ्यूल तथा हरित ऊर्जा क्षेत्रों में निरंतर निवेश से प्रेरित उल्लेखनीय प्रगति का प्रतीक है।
श्री पुरी ने कहा कि जहाँ वैश्विक ऊर्जा बाज़ार धीमी गति से बढ़ रहा है और कई रिफाइनरियाँ बंद होने की कगार पर हैं, वहीं भारत एक उज्ज्वल केंद्र के रूप में उभर रहा है, जो आने वाले दशकों में वैश्विक ऊर्जा मांग वृद्धि में लगभग 30–33% योगदान देगा। उन्होंने बताया कि भारत की वर्तमान रिफाइनिंग क्षमता लगभग 258 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MMTPA) है, जो 2030 तक बढ़कर 310 MMTPA तक पहुँचने की राह पर है, और दीर्घकालिक योजनाओं के अनुसार इसे 400–450 MMTPA तक बढ़ाया जाएगा। इस विस्तार से भारत विश्व के शीर्ष तीन रिफाइनिंग केंद्रों में अपनी स्थिति को मजबूत करेगा, जबकि वर्ष 2035 तक लगभग 20% वैश्विक रिफाइनिंग क्षमता (100 से अधिक रिफाइनरियाँ) बंद होने की संभावना है।
श्री पुरी ने बताया कि 2006 में 5% लक्ष्य से शुरू होकर भारत ने 2022 में तय समय से पाँच माह पहले 10% एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लिया। इस सफलता को देखते हुए सरकार ने 20% मिश्रण का लक्ष्य 2030 से घटाकर 2025–26 कर दिया। उन्होंने कहा कि सुव्यवस्थित नीतियाँ और सशक्त समर्थन प्रणाली ने इन तेज़ उपलब्धियों को संभव बनाया है, जो यह दर्शाता है कि भारत अपने महत्वाकांक्षी ऊर्जा लक्ष्यों को तय करने और उन्हें प्राप्त करने में सक्षम है
मंत्री ने बताया कि भारत की रिफाइनरियाँ विश्वस्तरीय, वैश्विक रूप से एकीकृत और निर्यात के लिए तैयार हैं। भारत पहले से ही विश्व का चौथा सबसे बड़ा रिफाइनिंग राष्ट्र है और शीर्ष सात पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातकों में शामिल है, जो 50 से अधिक देशों को लगभग 45 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के उत्पादों का निर्यात करता है। रिफाइनिंग क्षेत्र देश के कुल राजस्व में लगभग पाँचवें हिस्से का योगदान करता है, जहाँ सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र मजबूत वित्तीय और परिचालन प्रदर्शन दिखा रहे हैं।
श्री पुरी ने कहा कि भारत में पेट्रोकेमिकल उपयोग अभी वैश्विक औसत का मात्र एक-तिहाई है, जिससे इस क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं। पेट्रोकेमिकल इंटेंसिटी इंडेक्स 7.7% से बढ़कर 13% हो गया है, जो इस क्षेत्र की प्रगति को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि नई रिफाइनरी विस्तार योजनाएँ एकीकृत पेट्रोकेमिकल परिसरों के रूप में तैयार की जा रही हैं ताकि दक्षता, मूल्यवृद्धि और निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जा सके।
उन्होंने ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचार और स्वदेशीकरण के महत्व पर भी बल दिया। उन्होंने बताया कि भारत ने ऊर्जा मूल्य श्रृंखला में लगभग 80% आयात प्रतिस्थापन हासिल कर लिया है। हालांकि कुछ विशेष उपकरण और उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) अब भी आयात किए जाते हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत का दृष्टिकोण दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित होना चाहिए। इसके लिए सरकार ने उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की है और प्रमुख ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय उत्प्रेरक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की है।
हरित ऊर्जा और स्वच्छ भविष्य की दिशा में भारत की प्रगति
श्री पुरी ने कहा कि हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में भारत की प्रगति विशेष रूप से उत्साहजनक है। इंडियन ऑयल और एचपीसीएल द्वारा हाल में जारी निविदाओं के माध्यम से हरित हाइड्रोजन की कीमत 5.5 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम से घटकर लगभग 4 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम हो गई है, जो वाणिज्यिक व्यवहार्यता की दिशा में बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि हरित हाइड्रोजन, प्राकृतिक गैस और बायोफ्यूल भारत के ऊर्जा संक्रमण के प्रमुख स्तंभ होंगे, और ग्लोबल बायोफ्यूल्स अलायंस इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सतत विमानन ईंधन (SAF) जैसे बायोफ्यूल्स के उपयोग को बढ़ावा देगा।
श्री पुरी ने कहा कि भारत की ऊर्जा रणनीति ईंधन और पेट्रोकेमिकल दोनों क्षेत्रों में विकास को शामिल करती है। पारंपरिक ईंधनों की हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटेगी, लेकिन आने वाले दशकों तक यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। साथ ही, प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 6% से बढ़ाकर 15% की जा रही है, हरित हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है, और नवीकरणीय ऊर्जा तेजी से विस्तार कर रही है यह सब भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के साथ ऊर्जा सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा।
श्री पुरी ने दिगबोई (1901) में स्थापित भारत की पहली रिफाइनरी से लेकर आज के वैश्विक स्तर की सुविधाओं तक की यात्रा को याद करते हुए कहा कि 2014 के बाद हुए सुधारों और सुदृढ़ नीतिगत ढांचे ने विकास और नवाचार का नया युग शुरू किया है। उन्होंने बाड़मेर रिफाइनरी और आंध्र रिफाइनरी जैसी परियोजनाओं को क्षेत्र की प्रगति के उदाहरण के रूप में रेखांकित किया।
उन्होंने बताया कि 100 से अधिक बायोगैस संयंत्र पहले से चालू हैं और 70 और पाइपलाइन में हैं। भारत एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बना रहा है जो प्रौद्योगिकी, निवेश और स्थिरता को जोड़ता है।
श्री पुरी ने कहा कि जैसे-जैसे भारत 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, उसका ऊर्जा क्षेत्र न केवल घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करेगा बल्कि वैश्विक बाजारों की भी सेवा करेगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वर्ष 2035 तक भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा रिफाइनिंग पावर होने से आगे बढ़कर संभवतः दूसरा सबसे बड़ा रिफाइनिंग पावर बन जाएगा।
उन्होंने कहा कि भारत की युवा आबादी, बढ़ती ऊर्जा मांग और सक्रिय नीतिगत वातावरण यह सुनिश्चित करेंगे कि देश न केवल वैश्विक ऊर्जा भविष्य में भाग ले, बल्कि उसे दिशा देने में भी अग्रणी भूमिका निभाए।

