देवभूमि उत्तराखंड की लोक कलाओं ने दिल्ली में जीता दिल, ‘मुखौटा नृत्य’ और ‘पांडव भारत’ का सफल मंचन
डॉ. के सी पांडेय
नई दिल्ली। देवभूमि उत्तराखंड की समृद्ध आध्यात्मिक चेतना और जीवंत लोक कलाओं ने कल, 26 नवंबर को दिल्ली के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मुक्तिधारा ऑडिटोरियम में कल शाम आयोजित एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम में उत्तराखंड की दो प्रमुख लोकनाट्य विधाओं – मुखौटा नृत्य और पांडव भारत (पांडव नृत्य) का सफल मंचन हुआ, जो दर्शकों के लिए एक यादगार और बहुत हृदयस्पर्शी अनुभव रहा।
गढ़वाली कुमाऊँनी एवं जौनसारी अकादमी के सचिव संजय गर्ग ने दीप प्रज्वलित कर इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उत्तराखंड के प्रबुद्ध कलाकारों एवं गणमान्य व्यक्तियों का अभी शॉल उड़ाकर अकादमी सचिव संजय गर्ग द्वारा सम्मानित किया गया। मुक्ति धारा हाल दर्शकों की उपस्थिति से खचाखच भरा था।
यह सांस्कृतिक कार्यक्रम सुप्रसिद्ध निर्देशिका और गायिका डॉ. कुसुम भट्ट के निर्देशन में संपन्न हुआ, जिन्होंने अपनी पीएचडी संगीत में की है। कार्यक्रम में उत्तराखंड के जनजीवन और लोक कथाओं पर आधारित दो मनमोहक नृत्य नाटिकाएं प्रस्तुत की गईं, जिनकी दर्शकों ने खूब सराहना की।
विश्व प्रसिद्ध ‘मुखौटा शैली’ पर आधारित ‘मौर मौरियाण’ ने किया प्रभावित
कार्यक्रम की शुरुआत “मौर मौरियाण” नामक नाट्य से हुई, जो उत्तराखंड की विशिष्ट मुखौटा शैली पर आधारित था। कलाकारों ने मुखौटों के माध्यम से पात्रों को जीवंत किया। उत्तराखंड की रम्माण मुखौटा शैली की विश्वव्यापी प्रसिद्धि है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर के रूप में भी घोषित किया है। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को उत्तराखंड की इस विशिष्ट और प्राचीन लोकनाट्य कला से गहराई से परिचित कराया और खूब प्रभावित किया।
महाभारत की गाथा ‘द्रोपती को नारैण’ ने दर्शकों को भावुक किया
दूसरा नृत्य नाट्य “द्रोपती को नारैण” था, जिसने दर्शकों को भावुक कर दिया। यह प्रस्तुति उत्तराखंड की प्रसिद्ध पांडव भारत शैली के एक महत्वपूर्ण प्रसंग – द्रौपदी चीरहरण से संबंधित थी। कलाकारों ने पारंपरिक लोक शैली में यह दिखाया कि कैसे एक चीर कौरवों के विनाश का कारण बनता है।
द्रोपदी चीर हरण के समय नाटक अपनी उत्कृष्ट चरम सीमा पर जब पहुंचा तो दर्शकों के अंदर स्वयं कंपकपी महसूस होने लगी। जब नारायण हरि का अवतरण होने लगा तो एक अलौकिक जादुई छटा ने पूरे हाल में प्रवेश कर लिया। दर्शकों ने स्वयं के अंदर एक अलौकिक ऊर्जा को साक्षात रूप से अपने अंदर प्रवेश होते हुए देखा। कई दर्शकों को विचित्र रूप से कांपते और नाचते हुए देखा गया ऐसा लग रहा था कि उनके अंदर किसी देवता ने प्रवेश कर लिया हो। विचित्र रूप से झूमते नाचते हुए कुछ दर्शक चिल्लाते हुए विचित्र आवाजे निकाल रहे थे। दर्शक गैलरी किसी अद्भुत ऊर्जा से ओत- प्रोत हो चुकी थी। हाल के अंदर एक विहंगम दृश्य देखने को मिल रहा था। कुसुम भट्ट की आवाज मे स्वयं ही एक जादू था जो कि लोगों के दिलों के भीतर तक प्रवेश कर रही थी । प्रोग्राम के अंत में दर्शकों ने खड़े होकर लगभग 10 मिनटतक तालियों की गड़गड़ाहट से कुसुम भट्ट और उनकी टीम का अभिवादन किया।
उत्तराखंड के लोक जीवन में पांडवों को देवता के रूप में पूजा जाता है, और यह लोकनृत्य इसी आस्था और परंपरा का एक जीवंत प्रतीक है। पांडव नृत्य शैली के इस प्रस्तुतीकरण ने दिल्लीवासियों को उत्तराखंड की धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा की एक गहरी झलक दी।
पारंपरिक लोक गायन और वाद्य यंत्रों का अद्भुत समागम
दोनों नृत्य नाटकों में लोक गायन और नृत्य शैली के साथ-साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रभावी और प्रामाणिक उपयोग देखने को मिला। वाद्य यंत्रों के प्रभावी उपयोग ने प्रस्तुतियों को और भी आकर्षक और मनमोहक बना दिया।
आयोजकों ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि दिल्लीवासियों ने उत्तराखंड की लोक संस्कृति और उसके जनजीवन को गहराई से जानने के लिए इस विशेष सांस्कृतिक आयोजन में उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया। इस कार्यक्रम का सफल मंच सचालन राहुल सती द्वारा बड़ी ही उत्सव पूर्वक किया गया।

