उन्होंने कहा कि विगत 15 वर्षों से निरंतर आयोजित हो रहा उत्तराखंड महाकौथिक लोक कला, लोक संगीत, पारंपरिक विरासत और पहाड़ी उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने का एक मजबूत मंच बन चुका है। ऐसे आयोजन उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में बसे उत्तराखंडियों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि महाकौथिक में पारंपरिक वेशभूषा, हस्तशिल्प, कारीगरी, जैविक उत्पादों, पहाड़ी व्यंजनों के साथ जागर, बेड़ा, मांगल, खुदेड़, छोपाटी जैसे लोकगीतों तथा छोलिया, पांडव और झोड़ा-छपेली जैसे लोकनृत्यों के माध्यम से उत्तराखंड की जीवंत लोकसंस्कृति सजीव रूप में दिखाई देती है। आयोजन की लोकप्रियता को देखते हुए इसकी अवधि को पांच दिनों से बढ़ाकर सात दिन किया जाना इसकी सफलता का प्रमाण है।
मुख्यमंत्री ने पर्वतीय सांस्कृतिक संस्था की पूरी टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्था द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं को सहेजने का कार्य प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि ‘वोकल फॉर लोकल’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ जैसी पहलों के माध्यम से स्थानीय उत्पादों, शिल्प और पहाड़ी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है।
उन्होंने कहा कि ‘एक जनपद, दो उत्पाद’, स्टेट मिलेट मिशन, एप्पल मिशन, नई पर्यटन नीति, नई फिल्म नीति, होम-स्टे, वेड इन उत्तराखंड और सौर स्वरोजगार योजना जैसी पहलों से स्थानीय रोजगार, पर्यटन और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप उत्तराखंड ने सतत विकास लक्ष्यों में देश में प्रथम स्थान, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में एचीवर्स और स्टार्टअप रैंकिंग में लीडर्स की श्रेणी प्राप्त की है।