डॉ. प्रेमा खुल्लर की दो पुस्तकों ‘रिश्तों की डोर’ और ‘मैं सोचती हूं’ का इंडिया हैबिटेट सैंटर में हुआ लोकार्पण
दिल्ली। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, रिसर्च फॉउंडेशन एवं साहित्य भारती द्वारा इंडिया हैबिटेट सैंटर नई दिल्ली में डॉ. प्रेमा खुल्लर की नवीनतम प्रकाशित पुस्तकों ‘रिश्तों की डोर’ और ‘मैं सोचती हूं’ का भव्य लोकार्पण समारोह एवं ‘कोरोना कालीन प्रकाशन’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया।
हिंदी और अंग्रेजी में चार सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक और रोमा विश्वविद्यालय के कुलपति और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग के पूर्व महानिदेशक रहे वयोवृद्ध साहित्यकार पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि समारोह में मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. मधु चतुर्वेदी ने की। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. शिव शंकर अवस्थी, अखिल भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक संघ के राष्ट्रीय महामंत्री दयानंद वत्स, साहित्यकार डॉ. हरिसिंह पाल, डॉ. कानन शर्मा, डॉ. आशा त्रिपाठी, डॉ. राधेश्याम मिश्र, डॉ. राकेश आर्य, डॉ. ओमप्रकाश आचार्य, डॉ कृष्णलाल अग्रवाल अरविंद समारोह में विशिष्ठ अतिथि के रुप में उपस्थित थे।
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि डॉ. श्याम सिंह शशि ने कहा कि डॉ. प्रेमा खुल्लर की दोनों पुस्तकें समाज के लिए बहुपयोगी हैं। खासकर युवा पीढी के लिए तो ये मार्गदर्शन का काम करेंगी। विशिष्ठ अतिथि दयानंद वत्स ने लेखिका प्रेमा खुल्लर की साहित्य साधना की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी रचनाओं में स्त्री के मनोभावों का संवेदनशील चित्रण दिखता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. श्याम सिंह शशि ने डॉ. मधु चतुर्वेदी, डॉ. शिवशंकर अवस्थी, दयानंद वत्स, डॉ. हरिसिंह पाल, डॉ. कानन मिश्रा,डॉ. आशा त्रिपाठी, डॉ. राकेश आर्य, डॉ. राधेश्याम मिश्र, डॉ. कृष्णलाल अग्रवाल अरविंद कोउनकी हिंदी और संस्कृत भाषा में योगदान के लिए देश के प्रतिष्ठित साहित्य भारती सम्मान से सम्मानित किया। समारोह का कुशल संचालन श्री विपिन खुल्लर और डॉ. ऋचा सिंह ने किया।