अरबिंदो कॉलेज ने मुंशी प्रेमचंद की जयंती बड़े धूमधाम से मनाई
प्रेमचंद को समझने के लिए किसी आलोचक की आवश्यकता नहीं –प्रोफेसर सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री अरविंदो कॉलेज के हिन्दी विभाग की साहित्यिक संस्था “नवोन्मेष साहित्य सभा ” के तत्वावधान में मंगलवार को सेमिनार हॉल में कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रोफेसर मनोज कुमार सिंह व स्वागत वक्तव्य विभाग प्रभारी डॉ.हंसराज सुमन ने दिया ।
कार्यक्रम में डॉ. प्रदीप कुमार सिंह , डॉ.आर.के.वर्मा , डॉ.रोशनलाल मीणा , डॉ.सीमा , डॉ.दीपा , डॉ. शिवमंगल कुमार , श्री बालेंद्र कुमार आदि उपस्थित थे ।मंच संचालन कु. वर्तिका जोशी ने किया ।
प्रेमचंद जयंती के अवसर पर कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए विभाग प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने कहा कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के सामने दोहरी चुनोतियाँ थीं , एक अंग्रेजी गुलामी , दूसरा देश के अंदर सामाजिक कुरीतियाँ । प्रेमचंद ने ब्रिटिश हुकूमत से तो मोर्चा लिया ही साथ ही समाज के भीतर की विसंगतियों को भी सामने ला खड़ा किया । उन्होंने छात्रों को अपने संबोधन में आगे बताया कि मुंशी प्रेमचंद ने समाज की जटिलताओं को सरलता के साथ प्रस्तुत किया इसलिए उनको समझने के लिए किसी विद्वता की नहीं बल्कि मानवीय संवेदना की जरूरत होती है । मुंशी प्रेमचंद
ने भारतीय समाज और उसमें भी कृषक समाज की मजबूरी और त्रास्दी को उद्घाटित किया है । किसान से मजदूर में परिवर्तित हो रहे कृषक समाज की जो सच्चाई अंग्रेजी शासन में थीं वह वर्तमान समय का सत्य है ।
डॉ.हंसराज सुमन ने मुंशी प्रेमचंद के साहित्य व समाज के अंतर्संबंधों के बारे में आगे बताया कि डॉ. अम्बेडकर व प्रेमचंद पहले ऐसे साहित्यकार है जिन्होंने समाज में अनेक विमर्श पैदा किए चाहे वह अस्मिता का सवाल हो या आधुनिक दौर में उत्पन्न हुए दलित और स्त्री विमर्श हो , सब कहीं न कहीं प्रेमचंद के द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाए गए हैं जिन पर दलित साहित्यकार आज चर्चा कर रहे हैं । उन्होंने बताया कि प्रेमचंद के द्वारा ही ये विमर्श खड़े किए गए हैं जिन्हें आज विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जा रहा है । वे ऐसे साहित्यकार है जो सदियों तक याद किए जाते रहेंगे।
मुख्य वक्ता और युवा आलोचक प्रोफेसर मनोज कुमार सिंह ने प्रेमचंद जयंती के अवसर पर अपने व्याख्यान में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रेमचंद इतने सरल और महान कहानीकार है जिन्हें समझने के लिए किसी आलोचक व व्याख्याकार की जरूरत नहीं । प्रेमचंद की कहानियाँ इतनी ग्राह्य हैं कि वे जन शिक्षा का माध्यम बन चुकी हैं । साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि प्रेमचंद की कहानी कला उसके विषय से इत्तर नहीं है बल्कि मूल संवेदना और उनकी कहानी कला में कोई सायास अंतर नहीं खोजा जा सकता ।
प्रोफेसर सिंह ने आगे कहा कि प्रेमचंद के छोटे- छोटे वाक्य भी वाक्य नहीं बल्कि जीवन की स्थितियाँ लगती है । किसानों की जो स्थितियाँ अंग्रेजों के जमाने में थीं आज भी लगभग वहीं बनी हुई है । उन्होंने पूस की रात कहानी के संबंध में बताते हुए कहा कि प्रेमचंद का प्रत्येक पात्र इस तथाकथित मानवीय सभ्य समाज का मजाक उड़ाते हुए दिखाई देता है । प्रेमचंद ने जिस दीन–हीन मनुष्य को हमारे सामने ला खड़ा किया है वही भारतीय समाज का वास्तविक सत्य है । प्रेमचंद ने सत्य का उद्घाटन इस तरह से किया है कि समाज उसका हल खोजने के लिए बाध्य व प्रेरित होता है ।
इसी कड़ी में डॉ.प्रदीप कुमार सिंह ने प्रेमचंद जयंती पर कहा कि प्रेमचंद यथार्थ को हूबहू उद्घाटित करते हैं उस यथार्थ की समस्या का अलग से कोई हल प्रस्तुत नहीं करते बल्कि पाठक स्वंय हल की तलाश के लिए प्रेरित हो जाता है । उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण है आम जन की जटिल से जटिल समस्या को आम जन की शैली में सरलतम ढंग से प्रस्तुत करना इसीलिए वे आसानी से ग्राह्य हो जाता है ।
कार्यक्रम में छात्रों ने प्रेमचंद से जुड़े सवाल भी पूछे जिसका मुख्य वक्ता प्रोफेसर सिंह ने छात्रों के सवालों का जबाव देकर संतुष्ट किया । कार्यक्रम के अंत में विभाग प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने मुख्य वक्ता को पौध व अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया । धन्यवाद ज्ञापित डॉ .प्रदीप कुमार सिंह ने किया ।