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उत्तराखंड और हिमाचल की समृद्धि हेतु दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं का प्रभावशाली अभियान

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब तीस विद्यालयों में उत्तराखंड और हिमाचल के शिक्षा ग्रहण कर रहे सैकड़ों छात्र-छात्राओं द्वारा वर्ष 2019 में गठित ‘देवभूमि फैमिली’ से जुड़े हंसराज कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों-छात्राओं द्वारा 28 मार्च को ‘आपडो मुल्क आपडो गौ’ नाम से “पहाड़: दशा और दिशा” शीर्षक पर एक प्रभावशाली और ज्ञानवर्धक सेमिनार का आयोजन मुख्य वक्ता सी एम पपनै वरिष्ठ पत्रकार एवं अध्यक्ष पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली, प्रोफेसर स्नेह लता नेगी हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय, लक्ष्मी रावत संस्थापक प्रज्ञा आर्ट्स तथा डॉ. प्रकाश उप्रेती, सहायक प्रोफ़ेसर पीजीडीएवी कालेज की प्रभावी उपस्थिति तथा विश्व विद्यालय के अनेकों शिक्षकों व सहायकों के सानिध्य में आयोजित किया गया।

 

आयोजित सेमिनार का श्रीगणेश मुख्य वक्ताओं व हंसराज कॉलेज शिक्षकों द्वारा दीप प्रज्वलित कर तथा आयोजक देवभूमि फैमिली पदाधिकारियों द्वारा मुख्य वक्ताओं को स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत अभिनन्दन कर किया गया।

मध्य हिमालय देवभूमि के राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल की ‘दशा और दिशा’ पर विचार प्रकट करते हुए मुख्य वक्ताओं सी एम पपनै, प्रोफेसर स्नेह लता नेगी तथा लक्ष्मी रावत द्वारा कहा गया, दोनों पहाड़ी राज्यों की सीमाएं जरूर जुड़ी हुई हैं, परन्तु जिस सोच व निष्ठा से हिमाचल के विकास का नीति नियोजन वहां के राजनैतिक नेतृत्व द्वारा किया गया, वर्ष 2000 में गठित राज्य उत्तराखंड के गठन का उद्देश्य व विकास का क्रम उस सोच से जुदा रहा, जिस सोच और उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उत्तराखंड नए राज्य का गठन किया गया था।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, उत्तराखंड का विकास पहाड़ी अंचल के लोगों की जरूरतों व मध्य हिमालई भू-भाग की प्रकृति के नाजुक व संवेदनशीलता को देख व परख कर ही किया जाना चाहिए, नीति निर्माताओं का ध्यान प्रकृति की नाजुक स्थिति की ओर गया ही नहीं है। भू-वैज्ञानिकों और पर्यावरण विदो के द्वारा किए गए शोध कार्यों पर गया ही नहीं है। पर्वतीय अंचल में समय-समय पर विभिन्न रूपों में घटित हो रही आपदाएं उसका प्रत्यक्ष उदाहरण रही हैं। प्रकृति का अनियंत्रित दोहन किया जा रहा है, हिमालई ग्लेशियरों व पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है। घटित हो रही व दृष्टिगत हो रही आपदाएं प्रकृति को हास के कगार पर धकेल रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार के अभाव व जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक से जनमानस बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहा है। ग्रामीण अंचल के गांवों से बढ़ता पलायन पहाड़ी अंचल की दशा और दिशा का बखान करता नजर आ रहा है।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, देव संस्कृति ही समाज को बांध कर रखती है। ईमानदारी और निष्ठा पहाड़ी अंचल के लोगों की पहचान है। युवाओं को चाहिए वे किस प्रकार अपनी निष्ठा और ईमानदारी को बचाए रख सके। कहा गया, कोई भी त्यौहार व्यक्तिगत नहीं सामूहिक है। हमें अपनी विरासत और परंपराओं को पहचानना होगा। प्रकृति के साथ हमें कैसा सामंजस्य बनाए रखना है, जानना जरूरी है।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, स्त्री सृजनशील है, उसकी मानसिकता का बहुत बड़ा महत्व है। व्यवस्था बनाए रखना परम आवश्यक है। कहा गया, भाषा के मरने पर वह समाज गुलाम हो जाता है। सबसे बड़ा चैलेंज बोली-भाषा का है। आज की पीढ़ी अपनी बोली-भाषा को नहीं जान रही है। अपनी स्थानीय परंपराओं को जानने के लिए अपनी भाषा को जानना जरूरी है। भाषा जितनी बोली जायेगी उतनी संरक्षित होगी। भाषा को आगे ले जाना, समृद्ध करना नैतिक जिम्मेदारी है। हिमालय व संस्कृति को बचाने के लिए बोली-भाषा को बचाना जरूरी है। किसी भी समाज की पहचान उस समाज की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। हमें अपनी परंपराओं पर गौरव करने की जरूरत है। उत्तराखंडी और हिमाचली होने पर हमें गर्व की अनुभूति होनी चाहिए।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, जागरूक होकर अपनी जड़ों को मजबूत बनाए रखे। जड़ मजबूत होगी तो पेड़ मजबूत होगा। हमारा पहाड़ी समाज और अंचल मजबूत होगा। अपनी संस्कृति, बोली-भाषा, पर्यावरण के प्रति जागरूक रहे। परंपराएं ही समाज को जोड़ती हैं।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, पहाड़ की ग्रामीण अंचल की महिलाए खुल कर बोलती हैं, क्यों कि वे कम पढ़ी लिखी हैं। उनकी दशा प्रवासी महिलाओं से ज्यादा अच्छी है। ग्रामीण अंचल की महिलाओं की दशा उस दिन से खराब हुई जिस दिन गांव में टीवी पहुंचा। जिस दिन उसे पता चला, शहर में प्रवासरत महिला सोना पहन कर सोती है। सोशल मीडिया से पता चला, प्रवासी महिलाए ऐसा वैसा कुछ कर नाम कमा रही हैं, लोग उसे पहचानने लगे हैं।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, पहाड़ी अंचल के गांवों में अगर हरियाली बची है तो सिर्फ ग्रामीण अंचल की महिलाओं के जुनून की वजह से। अंचल के लोग अगर बदल रहे हैं तो बाहरी लोगों की देखा देखी कर। अंचल की अपनी परंपराओं को छोड़कर। उनके संस्कार भी वक्त को देखा देखी बदल रहे हैं। फिर भी अंचल की महिलाए बेहतरीन तरीके से अपना जीवन चला रही हैं, शुद्ध और साफ पर्यावरण के मध्य जीवन जी कर।

 

आयोजित सेमिनार के इस अवसर पर आयोजक देवभूमि फैमिली पदाधिकारियों द्वारा हंसराज कॉलेज के प्रोफेसरों में प्रमुख डॉ.बालकृष्ण नेगी, नरेंद्र सिंह रावत, डॉ.संजीव कुमार सिंह, डॉ.अनुराग कक्कड़ व डॉ.शायन को प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। आयोजित सेमिनार का मंच संचालन हंसराज कॉलेज छात्र अथर द्वारा बखूबी किया गया। छात्रा स्नेहलता तथा अनुष्का द्वारा आर सी गर्ग द्वारा दिए गए सहयोग हेतु आभार प्रकट किया गया। आयोजक संस्था संस्थापक अमन डोभाल द्वारा आमंत्रित वक्ताओं व बड़ी संख्या में उपस्थित हिमाचल और उत्तराखंड के छात्र-छात्राओं का सेमिनार में उपस्थित होने व आयोजन को सफल बनाने हेतु आभार प्रकट कर आयोजित सेमिनार समापन की घोषणा की गई।

 

वर्ष 2019 में दिल्ली विश्वविद्यालय के तीस विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हिमाचल और उत्तराखंड के विद्यार्थियों द्वारा गठित देवभूमि फैमिली द्वारा क्षेत्रवाद से दूर रह कर व

मिलजुल कर समय-समय पर दोनों अंचलों के ग्रामीण क्षेत्रों एवं महानगर दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में अनेकों प्रकार के कैंप लगाए जाते रहे हैं। वृद्धा आश्रमों में जाकर दान किया जाता रहा है। जरूरत मंदो की विभिन्न प्रकार से मदद की जाती रही है। महिलाओं की समस्याओं व निराकरण पर संगोष्ठियों आयोजित की जाती रही हैं। उत्तराखंड राज्य व हिमाचल राज्य स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जाता रहा है। सांस्कृतिक आयोजन किए जाते रहे हैं। प्रति दो माह के अंतराल में डोनेशन ड्राइव चलाई जाती रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी भी कॉलेज में पढ़ रहे विद्यार्थियों की हर संभव मदद की जाती रही है। गूगल फार्म द्वारा फार्म भरवा कर गठित संस्था के नेतृत्व हेतु पदाधिकारियों का चयन किया जाता रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रत्येक कॉलेज में आठ से दस तक की संख्या में पदाधिकारियों का चयन किया गया है। उत्तराखंड और हिमाचल की निरंतर समृद्धि हेतु गठित देवभूमि फैमिली के उद्देश्य जनमानस के मध्य अपना प्रभाव जमाते नजर आ रहे हैं।

 

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