अमीर खुसरो जीवन आधारित गीतनाट्य ‘आज रंग है’ का पर्वतीय कला केंद्र द्वारा सफल मंचन
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। राष्ट्रीय रंगमंच फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय कला केंद्र द्वारा 11 से 13 मार्च तक मंडी हाउस स्थित एलटीजी सभागार में अमीर खुसरो जीवन आधारित गीत नाट्य ‘आज रंग है’ का सफल मंचन सुधीर रिखाड़ी के नाट्य निर्देशन मे मंचित किया गया। स्व.जे एन कौशल के गीत नाट्य अमीर खुसरो पर आधारित तथा स्व.मोहन उप्रेती द्वारा संगीत बद्ध मंचित गीतनाट्य का आलेख मो0 फहीम, संगीत संयोजन डॉ पुष्पा तिवारी बग्गा तथा नृत्य संयोजन रिधिमा बग्गा द्वारा बखूबी प्रभावशाली अंदाज मे मंचित किया गया।
मंचित गीत नाट्य मे तुर्क होकर भी भारतीय संस्कृति में रमे अमीर खुसरो की काव्य रचनाओं, पहेलिया, मुकरियों और दोसुखनो को आधार बनाकर उनके जीवन दर्शन को प्रतिपादित किया गया। औलिया से मिलकर परमात्मा से मिलने की तड़प खुसरो मे बढ़ती है और एक गीत बन जाता है। पिता तुर्क शरणार्थी व माँ भारतीय मुस्लिम परिवार मे जन्मे अमीर खुसरो चौदहवी सदी (1262-1325) के सूफी संत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के मुरीद तथा एक प्रमुख सूफियाना कवि, शायर, गायक और संगीतकार के साथ-साथ पहले मुस्लिम कवि थे, जिन्होंने हिंदी शब्दो का खुलकर प्रयोग किया। हिंदी, हिन्दवी और फारसी मे एक साथ कलम चलाई। खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि के साथ-साथ शायरी, सूफी व ब्रज भाषा मे दोहे तथा पहेलिया, कह-मुकरिया, बूझ पहेली, ढकोसले या अनमेलिया, दुसुखने उलटबांसिया के रचनाकार के नाते जाने गए। जिस भी दरबार में खुसरो रहे, उनकी शायरी व शायराना अंदाज बेहद पसंद किया गया।
आठ वर्ष की उम्र मे प्रसिद्ध सूफी हजरत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य बने। काव्य और गीत संगीत का नशा सा तारी हुआ अमीर खुसरो किशोरावस्था से ही लिखने के शौकीन रहे, बीस वर्ष की उम्र तक व्यवहारिक व सामाजिक जीवन जी, कवि के रूप में ख्याति अर्जित कर, अमीरों के घर शायरी पढ़ने लगे थे। उनके द्वारा लिखित निरानब्बे पुस्तकों का वर्णन मिलता है, जिनमे बाइस ही उपलब्ध हैं। अधिकतर सामग्री वाचक रूप में इधर-उधर फैली मिलती है। उनके ग्रन्थो का इतिहास स्त्रोत रूप में, आज भी महत्व बना हुआ है।
पीढ़ियों से राजदरबारों से ताल्लुख रखने वाले परिवार में जन्मे अमीर खुसरो ने गयासुद्दीन तुगलक, जलालुद्दीन व अलाउद्दीन खिलजी जैसे सात सुल्तानों का शासन देखा था। पना जीवन राज्याश्रय मे ही बिताया। कैकुवाद के दरबार में राष्ट्रकवि (मुलुकशुअरा) का सम्मान पाया। साहित्य के अतिरिक्त संगीत के क्षेत्र मे महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय और ईरानी रागों का सुंदर तानाबाना बुना। एक नवीन राग शैली ईमान, जिल्फ, साजगरी आदि को जन्म दिया। भारतीय गायन मे कब्बाली और सितार को अमीर खुसरो की देन माना जाता है। गीत की तर्ज मे फारसी में और अरबी गजल के शब्दों को मिला कर कई पहेलिया और दोहे भी खुसरो ने लिखे।
पर्वतीय कला केंद्र द्वारा गीत नाट्य के माध्यम अमीर खुसरो के जीवन पर गीत-गजल, दोहे, पद, कहमुकरी, कब्बाली इत्यादि को संगीत की रमणीक धुनों व नृत्य की विभिन्न विधाओं मे मंचित किया गया।
गजल-
जिहाल-ए-मिस्की मकुन तगाफुल, दुराऐ नैना बनाए बतिया….।
दोहा-
1-गोरी सोए सेज पर, मुंह पर डारे केस…।
2-खुसरो बाजी प्रेम की, मैं खेलु पी के संग….।
कहमुकरी-
खा गया, पी गया, दे गया बुत्ता, क्या सखि साजन? ना सखि कुत्ता…..।
प्रमुख गीत-
1-आज रंग है, ऐ माँ रंग है री…। 2-वन बोलन लागे मोर…। 3-चल खुसरो घर आपने…। 4-रैन चढ़ी रसूल की….। 5-बहुत कठिन है डगर पनघट की..। 6-सकल बन फूल रही सरसों…। 7-काहे को व्याहे विदेश…। 8-बहुत दिन बीते पिया को देखे..। 9-ऐरी सखी मेरे पीया घर आए…। 10-दयारी मोहे भिजोया री, शाह निजाम के रंग में…।
इत्यादि, मंचित गीत नाट्य मे पात्रो, नर्तकों व अमीर खुसरो के परिधान व हरि खोलिया द्वारा पात्रो को दी गई रूप सज्जा गीत नाट्य के अनुकूल थी।
भारत की बहुरंगी-समन्वित संस्कृति के भावो व कलात्मक सौंदर्य व माधुर्य से ओत-प्रोत मंचित सशक्त गीत नाट्य श्रोताओ द्वारा बहुत सराहा गया, जिसमे रिधिमा बग्गा की नृत्य संरचनाओ मे सिद्दी गोयल, दामिनी बिष्ट व श्रेष्ठा राजपूत के साथ-साथ स्वयं रिधिमा बग्गा के द्वारा विभिन्न विधाओ मे मंचित नृत्य विधाओ ने अनूठी व प्रभावशाली छाप दर्शको के जेहन मे छोड़ी।
अमीर खुसरो की भूमिका मे सुधीर रिखाड़ी ने अपनी अदभुत गायन शैली व भाव-भंगिमाओं से श्रोताओ का मन मोहा। अन्य अदाकारों व गायन मे मोहम्मद जेन, महेंद्र सिंह लटवाल, मोहम्मद फहीम, गौरव वर्मा, पुष्पा सिद्धकी तथा चंद्रा बिष्ट ने भी दर्शको पर प्रभावशाली छाप छोड़ी। गायन की विभिन्न विधाओं व रागों मे बबीता पांडे, नीमा गुसाई, निधि खन्ना, राहुल, अखिलेश भट्ट, सुजीत बाबू व तरूण गर्ग ने मधुर गायन का समा बाधा।
डॉ पुष्पा तिवारी बग्गा के संगीत संयोजन मे डॉ श्याम रस्तोगी सितार, बारिश खान सारंगी, मनीष गंगानी ढोलक तथा दक्ष राज शर्मा हारमोनियम की बेमिशाल संगत से बनी संगीत की धुनो व सुधीर रिखाड़ी के नाट्य निर्देशन ने मंचित गीत नाट्य को सफलता के यादगार शिखर पर खड़ा किया, जो दर्शको की यादों में लंबी अवधि तक तरोताजा रहेगा।
तत्कालीन समय में अमीर खुसरो द्वारा रचित साहित्य व मौखिक संदेशो से जो अमन, शान्ति व भेदभाव रहित सोच का संदेश तत्कालीन समाज के मध्य गया, सार्थक रहा था। यही कारण रहा, अमीर खुसरो को भारत की बहुरंगी-समन्वित संस्कृति को स्मृद्ध करने के एवज मे सदियों से याद किया जाता रहा है। ‘आज रंग है’ गीत नाट्य का प्रभावशाली मंचन कर पर्वतीय कला केंद्र द्वारा अमीर खुसरो की रचनाओं को गीत-संगीत व नृत्य विधा मे मंचित करने का सार्थक प्रयास किया गया, जो वर्तमान हालातों का अवलोकन कर सटीक जान पड़ता है।
उत्तराखंड मे पीढ़ियों से चलायमान होली व व्याह-शादियों के गीत-संगीत मे अमीर खुसरो के गीत-संगीत व रचनाओं का प्रभाव नजर आता है। गायन के बोल उर्दू, फारसी इत्यादि से अछूते नही रहे हैं।
निष्कर्ष स्वरूप, अमीर खुसरो जीवन आधारित पर्वतीय कला केंद्र द्वारा मंचित गीत नाट्य ‘आज रंग है’ भारत की इस बहुरंगी-समन्वित संस्कृति को सशक्त मंचीय माध्यम से उजागर करने वाली राष्ट्रीय स्तर पर एक सफल व अनूठी प्रस्तुति के रूप मे लोगो के बीच याद की जाती रहेगी।