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गढ़वाल अंचल के आदि गायक बेड़ा समाज के गायकों व वादकों की माली हालत पर रचित पुस्तक‌ का हुआ लोकार्पण

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। उत्तराखण्ड के प्रवासियों द्वारा गठित सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ द्वारा 15 दिसंबर को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के समवेत सभागार में गढ़वाल के आदि गायक बेडा समाज पर मनोज चंदोला द्वारा लिखित पुस्तक‌ ‘गढ़वाल का बेड़ा समाज: एक अध्ययन’ का लोकार्पण और बेड़ा समाज पर निर्मित वृतचित्र का प्रसारण किया गया।

आयोजन का श्रीगणेश मुख्य अतिथि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद पौडी गढ़वाल तीरथ सिंह रावत व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के प्रोफेसर अनिल कुमार, मनोज चंदोला मंचासीनों तथा टी सी उप्रेती के कर कमलों दीप प्रज्ज्वलित कर व मंचासीनों का अध्ययन सहयोगी संस्था ‘हिमाद्रि प्रोडक्शन’ तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र पदाधिकारियों द्वारा अंग वस्त्र ओढा कर व स्मृति चिन्ह भैंट कर स्वागत अभिनंदन किया गया। मंच संचालक लक्ष्मी रावत व राष्ट्रीय कला केन्द्र से जुड़े रहे रमाकांत पंत को भी हिमाद्रि प्रोडक्शन की ओर से सम्मान स्वरूप स्मृति चिन्ह भैंट किए गए।

आयोजन के इस अवसर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के प्रोफेसर अनिल कुमार द्वारा मंचासीनो व सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों का स्वागत अभिनंदन कर हिमाद्रि प्रोडक्शन के सहयोग से गढ़वाल के पांच जिलों में निवासरत बेड़ा समाज की विलुप्ति की कगार पर खडी लोकगायन व संगीत विधा के अध्धयन पर मनोज चंदोला द्वारा रचित पुस्तक व निर्मित डाक्युमैंट्री तथा राष्ट्रीय कला केन्द्र की गतिविधियों पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर अवगत कराया गया, उत्तराखंड के सांस्कृतिक उत्थान हेतु राष्ट्रीय कला केन्द्र द्वारा बहुत काम किया गया है। अवगत कराया गया, बेड़ा समाज के आदि गायकों को पौराणिक गायन का ज्ञान था। उनके गाए गीत-संगीत से ही उनको पहचाना जाता है। उक्त समाज पर जो कार्य किया गया है, उसी से जुड़ा यह आयोजन है।

 

पुस्तक लेखक मनोज चंदोला द्वारा व्यक्त किया गया, मुख्य अतिथि तीरथ सिंह रावत गढ़वाल के बेड़ा समाज के गांवो से जुड़े संसदीय क्षेत्र से ही सांसद हैं। संवेदनशील होकर उक्त समाज के लिए कार्य करते रहे हैं। अवगत कराया गया 2017 में बेड़ा समाज की परिस्थितियों का‌ अध्धयन करने के लिए राष्ट्रीय कला केन्द्र से प्रोजेक्ट लिया गया था। चार फेस में काम कर रहे थे, यह पहला फेस है, डाक्युमैंट्री बनाई है। राष्ट्रीय कला केन्द्र द्वारा मौका दिए जाने पर उनका मनोज चंदोला द्वारा धन्यवाद अदा कर बताया गया, इस कार्य में बेड़ा समाज के गायकों व वादकों तथा अन्य लोगों से मुलाकात हुई। यह समाज अपने को बचाने का काम कर रहा है। नई चुनौतियों से जूझ रहा है। इस समाज ने हर काम में दूसरे लोगों को पूरा सहयोग दिया है। इनके गीत-संगीत की परंपरा बहुत स्मृद्ध रही है। बेड़ा समाज पर किए अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, इस समाज के लोगों के सम्मुख चुनौती‌ खडी है, अपना जीवन चलायमान रखने के लिए। अवगत कराया गया, इस समाज पर कुसुम नौटियाल व हरीश पोखरिया द्वारा भी कार्य किया गया है।

 

मुख्य अतिथि तीरथ सिंह रावत द्वारा व्यक्त किया गया, भारत विविधताओ का देश है फिर भी अपना देश एक है। चुनौती हम पूरे देश को देते हैं। उत्तराखंड भले ही छोटा राज्य है, विविधता भरा है। दिल्ली इसके लिए तरसता है। हमारे अंचल के पानी व भोजन में औषधीय तत्व हैं, जो आज पेटैंट हो गया है।

 

पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा कहा गया, बेड़ा समाज के लोग घर-घर जाते थे। नाच-गाना कर लोगों का मनोरंजन करते थे। उनका सामाजिक ज्ञान था, उनके ज्ञान की बराबरी नही की जा सकती थी। आज उनकी पारंपरिक विधा मंच पर अन्य लोगों द्वारा परोसी जा रही है परंतु बेड़ा समाज के लोगों की पारंपरिक कला का मुकाबला नहीं हो सकता है। उनकी कला में ताकत थी। ढोल में ताकत थी। घंटों बजाते रहते थे, थकते नहीं थे। समाज के लोगोँ में कटुता नहीं थी। सब मिलजुल कर मनोरंजन करते थे। सबको सम्मान मिलता था, नीचता नहीं थी। राजनीति ने सब खराब किया है। पढ़ने लिखने के बाद भेदभाव ज्यादा शुरू हुआ है। हमारे पास बहुत कुछ है। इस समाज के ढोल सागर, जागर गीतों को बचाना है।

 

तीरत सिंह रावत ने कहा, नया राज्य बनने से हमारी पहचान बनी है। हमारे समाज के लोग एक होकर चले। दुगड्डा फतेपुर में बेडा समाज की अद्भुत कला देखी थी। लुप्त हो रही चीजों को आगे लाना होगा। वास्तविकता का पता मूल स्थानों में जाकर पता चलेगा। गांवो की संस्कृति बदल रही है, जो हास की ओर बढ़ रही है।

 

अभाव ग्रस्त बेडा समाज के सम्रद्ध लोकगायन व संगीत के लुप्त होने की कगार पर खड़े होने के अध्ययन पर प्रदर्शित प्रभावशाली निर्मित डाक्युमैंट्री ने सभागार में बैठे प्रबुद्ध जनों का ध्यान उक्त समाज के लोगों की हो रही दुर्दशा की ओर खींचने का काम किया है। जिसका श्रेय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की लोक संस्कृति के उत्थान से जुडे कार्यों को जाता है। राष्ट्रीय कला केन्द्र के सहयोग से ही गढ़वाल के बेड़ा समाज से जुड़ा प्रोजेक्ट मनोज चन्दोला को अध्धयन हेतु सौपा गया था। किए गए इस अध्ययन के आधार पर ही गढ़वाल में संगीत और लोक विधाओं पर बेड़ा समाज के योगदान को जानने व समझने का अवसर समाज के अन्य प्रबुद्ध लोगों को भी मिला है जो सराहनीय कहा जा सकता है।

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