कार्यक्रम में बताया गया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए POSH कानून की नींव 1997 में पड़ी, जब सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए। लेकिन संसद को इसे कानून बनाने में 16 साल (2013) लग गए और 2025 तक भी यह सिर्फ जागरूकता के स्तर पर है। प्रशासनिक इच्छाशक्ति और क्रियान्वयन की कमी आज भी सबसे बड़ी चुनौती है।
वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पावनी ने कहा कि जिला अदालतों को भी POSH मामलों के लिए आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनानी चाहिए, ताकि न्याय का संदेश नीचे तक पहुंचे।