18वीं लोकसभा चुनाव में विपक्ष की राह आसान नहीं
अमर चंद्र
देश मे 18वीं लोकसभा चुनाव का माहौल इस बसंत ऋतु में भी गर्म होता जा रहा है हर दल अपने स्तर पर जनसंपर्क करते दिख रहा है वहीं लोकसभा चुनाव में बराबरी की सियासी टक्कर दक्षिण भारत में देखने को मिलेगा। उत्तरी भारत में दक्षिण पंथी राजनीति इस कदर हावी है कि यहां भाजपा के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा कोई थाम सके इसके आसार नहीं दिख रहे हैं। थोड़ी बहुत उम्मीद कुछ क्षेत्रीय दलों से हैं जो भाजपा की अगवाई वाली एनडीए को रोक भले न सके उसकी रफ्तार कुछ हद तक थाम ले। जो सियासी हालात उत्तर भारत में है वही देश के पश्चिमी और पूर्वी भारत में है।
मतलब साफ है कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा और एनडीए की स्पीड और स्केल इतना बड़ा है कि,पूरा विपक्ष उसके आवरण में इस कदर ढ़क गया है कि, वह चर्चा और चाहत में हासिए पर जा पहुंचा है।
लेकिन राजनीति में यह स्थिति पूर्ण विराम नहीं बल्कि कॉमा बाली होती है। भारतीय लोकतंत्र इसका साक्षी रहा है। विपक्ष की राह कठिन है, लेकिन अच्छी बात यह है कि राह तो विपक्ष के पास है ही। यदि सत्ता पक्ष पूर्व दिशा से द्रुत गति से निकलते हुए उत्तर और पश्चिम भारत से गुजरते हुए दक्षिण भारत में प्रवेश करे तो उसकी गति वहां जाकर थमती दिख रही है। इसके उलट यदि विपक्ष दक्षिण भारत में द्रुत गति से पश्चिम,उत्तर होते हुए पूर्वी भारत की तरफ बढ़े तो निश्चित रूप से दक्षिण से निकलते ही उसकी गति कम होगी लेकिन रुकते-रुकते वह पूर्वी भारत में जाकर थमेगी। मतलब साफ ही रफ्तार की इस रेस में स्वीप करना विपक्ष के लिए संभव नहीं हो लेकिन यह संभव जरूर है कि वह भाजपा को स्वीप करने से रोक दे। एनडीए के ग्राफ को इंडिया गठबंधन भले न रोक सके लेकिन इंडिया गठबंधन भाजपा को थामने में एक हद तक सफल हो सके इसकी संभावना बनती है। यह दीगर है कि कांग्रेस भाजपा से मुकाबला करने में काफी कमजोर है लेकिन स्थानीय और क्षेत्रीय दलों में अभी भी वह ताकत है कि, भाजपा को न सिर्फ टक्कर दे सके बल्कि उसे पटखनी भी देने लायक ताकत स्थानीय दलों के पास बची है। बाच चाहे टीएमसी की हो या डीएमके या फिर बीआरएस। या फिर कांग्रेस के सहयोग से राजद,या जेएमएम आंकड़ों के खेल में बड़ा न सही छोटा उलटफेर कर सकते हैं।
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