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पेशावर कांड नायक वीर चंद्रसिंह गढ़वाली की जयंती पर उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान का आठवां स्थापना दिवस समारोह सम्पन्न

सी एम पपनैं

पेशावर कांड के नायक व सु-विख्यात स्वतंत्रता सेनानी वीर चंद्रसिंह गढ़वाली का 131वां तथा भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी की 98वी जयंती के शुभ अवसर पर हिमालय विरासत न्यास के सहयोग से उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान द्वारा संस्थान का आठवां स्थापना दिवस समारोह 25 दिसंबर को हिमालय भवन, 20 तुगलक क्रीसेंट रोड में, संस्थान अध्यक्षा संयोगिता ध्यानी की अध्यक्षता व मुख्य अतिथि हिमालय विरासत न्यास अध्यक्षा आशना नेगी, विशिष्ट अतिथि फिल्म निर्देशिका सुशीला रावत, रंगमंच निर्देशक हरि सेमवाल तथा गढ़वाल हितैषिणी सभा अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट की गरिमामयी उपस्थिति में आयोजित किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर संस्थान के गायक कलाकारों कुसुम बिष्ट, अंजू भंडारी, मनोरमा तिवारी भट्ट, वंदना भट्ट, चंद्रकांता सुंदरियाल, संतोष बडोनी, नरेन्द्र बन्गारी, कुबेर कोठयाल इत्यादि द्वारा संगीत निर्देशक कृपाल सिंह रावत के संगीत निर्देशन में उत्तराखंड के लोकगीतो का कर्णप्रिय लोकगायन किया गया। उत्तराखंड की बोली-भाषा मे निर्मित फिल्म, रंगकर्म, नृत्य निर्देशन तथा लोकगीत-संगीत के विभिन्न क्षेत्र मे सिद्धहस्त गिरीश बिष्ट, उषा ममगई, गुमान सिंह पवार, गजेन्द्र चौहान, सावित्री शर्मा, गौरी रावत इत्यादि को मुख्य व विशिष्ट अतिथियों तथा संस्थान अध्यक्षा संयोगिता ध्यानी के कर कमलो सम्मान स्वरूप, साल व स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।

स्थापना दिवस का श्रीगणेश पेशावर कांड के महानायक तथा सु-विख्यात स्वतंत्रता सेनानी वीर चंद्रसिंह गढ़वाली के साथ-साथ भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेई के चित्रों पर आमन्त्रित अतिथियो व यूएफएनआई पदाधिकारियों व सदस्यों द्वारा पुष्पांजलि व दीप प्रज्वलन की रश्म अदायगी तथा संस्थान के गायक कलाकारों द्वारा श्रीगणेश व सरस्वती वंदना गायन के साथ किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर संस्थान महासचिव सुमित्रा किशोर तथा अध्यक्षा संयोगिता ध्यानी द्वारा आयोजन कक्ष में उपस्थित प्रबुद्ध जनो का स्वागत अभिनंदन कर, संस्थान के उद्देश्यों तथा विगत सात वर्षो मे संस्थान द्वारा किए गए कार्यो व आयोजित आयोजनों मे मिली नई राह व सफलता के बावत अवगत कराया गया। संस्थान से जुड़े सभी सदस्यों, सहयोगी कर्मठ कलाकारों द्वारा संस्थान को दी गई मजबूती हेतु धन्यवाद दिया गया। आयोजित आयोजन मे स्मानित होने जा रहे संस्थान कलाकारों के द्वारा किए गए कार्यो पर प्रकाश डाला गया। संस्थान द्वारा प्रति वर्ष वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की जयंती के साथ-साथ कुली बेगार आंदोलन के जननायक बद्रीदत्त पांडे, वीरबाला तीलू रौतेली तथा प्रख्यात राष्ट्रीय कवि सुमित्रानंद पन्त की जयंती कार्यक्रमो के आयोजन के बावत अवगत कराया गया। उक्त आयोजनों पर कवि सम्मेलन, विचार गोष्ठी, फिल्म, नाटक तथा गीत-संगीत से जुड़े कार्यक्रमो के आयोजनों के साथ-साथ उत्तराखंड की सिद्धहस्त विभूतियो को सम्मानित किए जाने के बावत अवगत कराया गया।

उत्तराखंड फिल्म व नाट्य संस्थान के आठवे स्थापना दिवस पर आमन्त्रित अतिथियो गढ़वाल हितैषिणी सभा अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट, हिमालय विरासत न्यास से जुडे बैचैन कण्डियाल व उत्तराखंडी फिल्म लेखिका व निर्देशिका सुशीला रावत द्वारा 23 अप्रैल 1930 को पेशावर मे भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने के अंग्रेजो के आदेश की अवहेलना करने वाले नायक तथा देश की आजादी के स्वतंत्रता सेनानी वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली को उनके जन्म दिवस पर नमन कर, देश की आजादी के लिए उनके द्वारा दिए गए योगदान व उनके कठिन जीवन संघर्ष का उल्लेख कर उन्हे ज्योति स्तम्भ की संज्ञा दी गई। उनके अदम्य साहस व सूझबूझ के द्वारा किए गए कार्यो को गौरवशाली बताया गया।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, जिन अग्रेजों के आगे कोई आवाज नही उठा सकता था, इस वीर सैनिक ने बहादुरी का परिचय दिया। अंग्रेजो के आदेश का निडर होकर उल्लघन करने पर कारावास झेली। देश को मिली आजादी के बाद साधारण जीवन जिया। लोगो के बीच अपने निःस्वार्थ आदर्श विचारो के बल समाज के लोगो के बीच मान-सम्मान अर्जित किया। आजीवन उत्तराखंड तथा देश के विकास के लिए चिंतित रहे। वक्ताओ ने कहा, उनका व्यक्तित्व बहुत ऊंचा था। उनमें त्याग की क्षमता थी। गांधी जी को चन्द्रसिंह गढ़वाली जैसे वीर सपूतो से अहिंसक आंदोलन चलाने मे बल मिला था।

वक्ताओ ने कहा, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली नेता नही एक विचार की धारा थे, जो हमारी धरोहर है। ऐसी प्रेरणादायी विभूति की याद मे उनकी जयंती समारोह का आयोजन करना न सिर्फ उत्तराखंडियों को बल्कि देश के समस्त जनमानस को सकून देता है, प्रेरणा प्रदान करता है।

वक्ताओ ने व्यक्त किया, आजादी के इस विख्यात वीर सपूत चन्द्रसिंह गढ़वाली व भारत रत्न स्व.अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर उत्तराखंड के गीत-संगीत का आयोजन करना, उक्त प्रेरको को सच्ची श्रद्धाजंलि अर्पित करना है।

वक्ताओ द्वारा अवगत कराया गया, आयोजन के इस अवसर पर हरिद्वार सांसद व पूर्व शिक्षामंत्री भारत सरकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को भी उपस्थित होना था, किन्ही अपरिहार्य कारणों से उपस्थित नहीं हो पाऐ। वक्ताओ द्वारा रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा यूएफएनआई को समय-समय पर दिए गए सहयोग के बावत अवगत कराया गया।

दिल्ली प्रवास मे उत्तराखंड मूल के उत्साही व प्रतिभाशाली संस्कृतिकर्मियों, प्रबुद्ध समाज सेवियो, साहित्यकारो, इत्यादि के अपार सहयोग से गठित ‘उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान’ ने विगत आठ वर्षो मे दिल्ली प्रवास मे सांस्कृतिक, सामाजिक व उत्तराखंडी बोली-भाषा के क्षेत्र मे चुनोतीपूर्ण कार्य कर जो अभूतपूर्व सफलता हासिल कर उत्तराखंडी प्रवासियों के मध्य ख्याति अर्जित की, प्रशंसनीय है।

अल्प अवधि में ही संस्थान से जुड़े प्रबुद्ध सदस्यों द्वारा गठित पदाधिकारियों, गायक, गायिकाओं, वादकों, नाट्य कर्मियों, निर्देशको इत्यादि को उनके अतुल्य सरोकारो के बल विभिन्न मंचो से जो सम्मान प्रदान किया गया, उक्त सम्मानों से न सिर्फ स्थापित इस संस्थान का मनोबल बढ़ा, उत्तराखंड की भावी प्रवासी पीढ़ी भी संस्थान के कार्यो से प्रेरित हुए बिना नहीं रह सकी है।

गठित संस्थान का उद्देश्य सांस्कृतिक कार्यक्रमो द्वारा लोगो का मनोरंजन करना ही नहीं रहा, उत्तराखंड की पारंपरिक लोक संस्कृति के उन पावन उद्देश्यों के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिब्धता दोहराना भी रहा, जिनके लिए संस्थान का गठन किया गया है।

संस्थान की अभिकल्पना के पीछे एक ऐसा फिल्म एवं नाट्य संस्थान खड़ा करना रहा है, जिसके माध्यम से उत्तराखंड की स्मृद्ध लोक सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर आंचलिक बोली-भाषा की फिल्मों, रंगमंच व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से भव्य पहचान दिलाई जा सके। उत्तराखंड को गौरवान्वित करने वाली प्रेरणाश्रोत रही विभूतियो व विरासत मे मिली पारंपरिक सांस्कृतिक परिपाठी को स्थानीय बोली-भाषा के माध्यम से उत्तराखंड की भविष्य की पीढ़ी को अपनी समृद्ध परम्पराओ से अवगत कराने तथा उन्हे प्रवास मे एकजुट कर, उत्तराखंड के लोक साहित्य, संस्कृति, बोली-भाषा का संवर्धन व संरक्षण कर कर्तव्य निर्वाह करना रहा है।

संस्थान के उद्देश्यों व जुड़े सदस्यों की अपार लगन, मेहनत व निष्ठा को परख विगत आठ वर्षो के अंतराल मे लोक परंपराओं, लोकगीत- संगीत, बोली-भाषा को समर्पित कलाकार, गीतकार, रंगकर्मी तथा साहित्यकार संस्थान से जुड़ते चले गए हैं, जिससे संस्थान को अपने उद्देश्यों को मजबूती से आगे बढाने मे निरंतर मदद मिली है।

संस्थान से जुड़े प्रबुद्ध कलाकारों को उनके अनुभव व योग्यतानुसार रंगमंच के साथ-साथ अनेकों उत्तराखंडी आंचलिक बोली-भाषा की फिल्मों मे काम करने का अवसर भी मिला है।

उत्तराखंड के प्रवासी बन्धुओ के मध्य अपनी क्षेत्रीय ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व सांस्कारिक विरासत के प्रति असीम लगाव व प्रेम का ही परिणाम रहा, जिसके बल दिल्ली प्रवास मे रहते हुए भी उत्तराखंडी अपनी मूल पहचान को बनाऐ हुए हैं। मंचित सांस्कृतिक कार्यकर्मो, बोली-भाषा के नाटकों व निर्मित आंचलिक बोली-भाषा की फिल्मों मे आंचलिक लोकसंस्कृति के पारंपरिक भव्य प्रदर्शन के कारण, यह सब उत्तराखंड के प्रबुद्ध जनों की निष्ठापूर्ण सांस्कारिक संस्कृति का दर्शन कहा जा सकता है, जो हमे अपनी सांस्कृतिक विरासत को प्रवास मे संजोने, समृद्ध करने तथा उसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रभावित व प्रेरित करती है।

संस्थान से जुड़े समर्पित सदस्य व कलाकार संस्थान को घर-परिवार की जिम्मेवारियो के साथ निष्ठा व लगन के साथ निभा रहे हैं, इस उद्देश्य से ताकि उत्तराखंड की लोक संस्कृति आगे बढ़ सके। भविष्य की पीढ़ी अपने बुजुर्गो से उपहार स्वरूप प्राप्त सांस्कृतिक विरासत को कायम रखने हेतु, सजग रहे। अपनी लोक संस्कृति के महत्व को समझ, अपने मूल जड़ो से जुड़े रह कर, अपनी सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर कायम रख सके, संस्थान का यह मुख्य मूल उद्देश्य रहा है।

उक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान द्वारा ग्रीष्म कालीन अवकाश पर दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मे प्रवासी उत्तराखंडी स्कूली बच्चों के लिए संगीत, नृत्य एवं अभिनय तथा बोली-भाषा की कार्यशालाओं का आयोजन भी किया जाता रहा है, जिससे भविष्य मे उक्त अभ्यार्थी फिल्म, संगीत, नृत्य, लेखन इत्यादि के क्षेत्र मे ज्ञान हासिल कर, रोजगार के साथ-साथ उत्तराखंड की पारंपरिक लोकसंस्कृति व बोली-भाषा का संवर्धन, संरक्षण व प्रचार-प्रसार कर उसे स्मृद्धि की राह प्रदान कर सके।

संस्थान के उद्देश्यों के तहत सांस्कृतिक क्षेत्र मे जागरूकता लाने के लिए वर्षभर सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगोष्ठी व उत्तराखंडी बोली-भाषा काव्यपाठ के भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। प्रतिवर्ष वीर बाला तीलू रौतेली, कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पांडे, सुमित्रानंदन पंत तथा वीर सेनानी वीर चंद्रसिंह गढ़वाली की जयन्ती के अवसर पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं।

आयोजित आयोजनों के अवसर पर जनसरोकारों के विभिन्न क्षेत्रों मे अनुकरणीय कार्य करने वाली शख्शियतों को साहित्य मे उत्तराखंड साहित्य रत्न सम्मान। समाज सेवा हेतु तीलू रौतेली सम्मान व 21हजार रुपया। फिल्म एवं गायन के क्षेत्र मे अलग पहचान बनाने वालो को वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली सम्मान से नवाजा जाता रहा है।

संस्थान द्वारा प्रकाशित स्मारिका मे उत्तराखंड की प्रेरणाश्रोत रही विभूतियो के अविस्मरणीय योगदान व स्वर्णिम इतिहास पर प्रबुद्ध लेखको व साहित्यकारो के लेखों व विचारो को प्रमुखता दे, इस उद्देश्य से प्रकाशित किया जाता है, जिनका पठन-पाठन कर प्रवासी युवा पीढ़ी अपनी उत्तराखंडी लोकसंस्कृति से जुड़ सके।

उत्तराखंड फिल्म एव नाट्य संस्थान द्वारा आयोजित वीर चंद्रसिंह गढ़वाली जयन्ती स्मारोह का प्रभावशाली मंच संचालन प्रेम सिंह रावत द्वारा बखूबी किया गया।

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