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उत्तराखंड की विश्व विख्यात पारंपरिक रामलीला का मंचन ‘श्री राम सेवक पर्वतीय कला मंच’ द्वारा दो दिन में सम्पन्न

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। रामलीला उत्तराखंड के जनमानस की आस्था का सबसे बड़ा सम्बल रहा है। जिसको मंचित करना, देखना, सुनना और जीवन में उतारना उत्तराखंडी लोगों की मानसिकता का आदर्श रहा है। इसी आदर्श स्वरूप दिल्ली एनसीआर में प्रवासरत उत्तराखंड के प्रबुद्घ प्रवासियों द्वारा विगत वर्ष बड़े ही मनोयोग से गठित ‘श्री राम सेवक पर्वतीय कला मंच’ द्वारा आईटीओ स्थित प्यारे लाल ऑडिटोरियम में 26 और 27 अक्तूबर को दो दिवसीय उत्तराखंड की पारंपरिक संगीतमय तथा विभिन्न राग आधारित सशक्त कालजई रामलीला का चुनौती पूर्ण मंचन संजय जोशी, राकेश जोशी व चंद्रेश पंत के संगीत व नाट्य निर्देशन में मंचित की गई।

मानस के पद व चौपाइयों पर आधारित गेय शैली में दस रात्रियों तक क्रमशः विभिन्न रागों के गायन पर आधारित उक्त रामलीला विश्व का सबसे बड़ा गीत नाट्य है जिसे दो दिन में मंचित करने का चुनौतीपूर्ण साहस ‘श्री राम सेवक पर्वतीय कला मंच’ पदाधिकारियों व उससे जुड़े कलाकारों द्वारा किया गया।

 

26 अक्टूबर की सायं मंचित रामलीला में राम जन्म, विश्वामित्र दशरथ संवाद, ताड़का बध, सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, कैकई-दशरथ संवाद, सीता हरण, राम-हनुमान मिलन तक की रामलीला का मंचन तथा

27 अक्तूबर को बाली-सुग्रीव युद्ध, मेघनाथ हनुमान युद्ध, लंका दहन, विभीषण-रावण संवाद, अंगद रावण संवाद, लक्ष्मण शक्ति, कुंभकरण बध, लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध व मेघनाथ बध, राम-रावण युद्ध तथा राज्याभिषेक तक की रामलीला का मंचन उत्तराखंड की पारंपरिक शैली में भव्य व प्रभावशाली अंदाज में मंचित की गई।

26 अक्तूबर, मंचित रामलीला श्रीगणेश से पूर्व संस्था अध्यक्ष राजेन्द्र जोशी तथा मंच व्यवस्थापक राकेश जोशी द्वारा संस्था गठन के उद्देश्यों पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। दीप प्रज्वलन विद्या सागर जोशी, शिव प्रसाद जोशी, चंद्र मोहन पपनैं, हेम पन्त, नवल त्रिपाठी तथा चारू तिवारी द्वारा भक्ति भाव से किया गया। आयोजक संस्था पदाधिकारियों द्वारा उक्त अतिथियों को राम नाम का दुपट्टा ओढ़ा कर तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत अभिनन्दन किया गया। श्री गणेश वंदना व ‘श्री रामचंद्र कृपालु भज मन….।’ श्री राम स्तुति तथा नट-नटी संवादों से मंचित रामलीला का मनोहारी शुभारंभ किया गया।

 

सभागार में बैठे श्रोताओं द्वारा मंचित दो दिनी उत्तराखंड की पारंपरिक कालजई रामलीला में पात्रों द्वारा गाए गए राग आधारित गायन व अभिनय को सराहा गया, तालियों की गड़गड़ा कर पात्रों का उत्साह वर्धन किया गया।

 

मंचित रामलीला में राम की भूमिका में महेश जोशी, लक्ष्मण- नितिन जोशी, सीता- मनीषा, भरत-करण पाण्डेय, शत्रुघ्न-सार्थक पंत, दशरथ एवं सुषेण वैद्य-दीवान सिंह कनवाल, कैकई एवं शूर्पणखा-शिवानी पंत, परशुराम-राकेश जोशी, विश्वामित्र एवं जोगी रावण-पूरन तिवारी, रावण एवं ताड़का-विक्की तिवारी, जनक एवं विभीषण-नीरज लोहानी, अंगद-पंकज उप्रेती, मंदोदरी-ऊषा ओली, हनुमान-गौरव नेगी, बाली-अभिनव भट्ट, सुग्रीव-दक्ष पंत, मेघनाद-योगेश पाण्डेय, सुमंत की भूमिका में गौरव नेगी तथा अन्य पात्रों में भुवन जोशी, बसंत जोशी, गिरजा जोशी तथा मनमोहन जोशी द्वारा प्रभावशाली व यादगार भूमिका निभाई गई।

 

मंचित की गई दो दिनी रामलीला में गठित संस्था अध्यक्ष राजेंद्र जोशी द्वारा चन्द्र शेखर पंत तथा पूरन तिवारी के सानिध्य में सम्पूर्ण रामलीला मंचन का चुनौती भरा व प्रेरणा जनक कार्य किया गया। संस्था अध्यक्ष राजेंद्र जोशी द्वारा दोनों दिन मंचित रामलीला गाथा का स-विस्तार वर्णन कर सभागार में उपस्थित श्रोताओं का ध्यान आकर्षित कर मंत्रमुग्ध किया गया।

 

दस दिनी उत्तराखंडी भीमताली शैली की रामलीला की सशक्त गायन शैली व रागों की महत्ता को देखते हुए, जो प्रत्येक उत्तराखंडी में आत्मसात है इस पारंपरिक शैली की रामलीला को दो दिनों में मंचित करना किसी चुनौती से कम नहीं है।

 

दस दिनी भीमताली शैली रामलीला को मात्र दो दिनों में मंचित करने की चुनौती को पहली बार सन 1985 में उत्तराखंड के प्रख्यात लोकगायक व संगीतकार मोहन उप्रेती द्वारा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़े सु-विख्यात नाट्य निर्देशक बी एम शाह के निर्देशन में उत्तराखंड व देश की सुविख्यात सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली’ के द्वारा देश-विदेश के बड़े राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मंचित कर ख्याति अर्जित की थी।

‘श्री राम सेवक पर्वतीय कला मंच’ द्वारा मंचित रामलीला में करीब पैंतीस कलाकारों द्वारा विभिन्न पात्रों की भूमिका का निर्वाह कर मात्र दो दिन में अंचल की इस सुविख्यात पारंपरिक रामलीला को मंचित करने का चुनौतीपूर्ण प्रयास किया गया जो सफल और सराहनीय प्रयास रहा है।

 

मंचित रामलीला में मानस की चौपाइयों व दोहों के गायन के साथ-साथ संवाद व संगीत की प्रधानता रही। श्रोताओं को रामलीला के पात्रों खास कर राम, लक्ष्मण, सीता, दशरथ, परशुराम, रावण, ताड़का, कैकई, शूर्पणखा, बाली, सुग्रीव, हनुमान व अंगद के लय बद्ध गायन व अभिनय ने भाव विभोर किया, उक्त पात्रों द्वारा श्रोताओं के मध्य यादगार छाप छोड़ी गई। पात्रों की वस्त्र सज्जा, आभूषण व श्रृंगार रामकथा के अनुकूल व प्रभावशाली थी। स्क्रीन पर दृश्य दृश्यांकन रामकथा के अनुकूल थे।

 

मंचित रामलीला में हारमोनियम पर संजय जोशी तथा तबला पर चंद्रेश पंत द्वारा की गई प्रभावशाली संगत तथा मंच पीछे पार्श्व गायक-गायिका की भूमिका में किरन पंत, नीतू पंत तथा दिनेश बिष्ट द्वारा श्रोताओं के मध्य राग आधारित गायन की यादगार छाप छोड़ी गई।

 

सफलता पूर्वक मंचित की गई रामलीला समाप्ति पश्चात मंच व्यवस्थापक राकेश जोशी द्वारा अवगत कराया गया, उनकी नव गठित सांस्कृतिक संस्था का भविष्य में प्रयास रहेगा, एक ओर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पावन चरित्र को अधिक से अधिक प्रचारित व प्रसारित किया जा सके, साथ ही नगरों और महानगरों में प्रवासरत भावी पीढ़ी के मध्य अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति, लोक विधाओं तथा परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके। उन्हें अंचल की विभिन्न राग व संगीत प्रधान विश्व प्रसिद्ध पारंपरिक रामलीला से रूबरू कराया जा सके। राकेश जोशी द्वारा अवगत कराया गया, मंचित की गई रामलीला में अंचल की नई व पुरानी पीढ़ी के 5 वर्ष से 75 वर्ष तक आयु के कलाकारों द्वारा बड़े ही मनोयोग व निष्ठा पूर्वक विभिन्न पात्रों का किरदार निभाया गया जो आयोजन समिति के लिए अत्यधिक उत्साहवर्धक रहा है।

 

दस दिन की रामलीला को दो दिन में सम्पन्न करने का चुनौती पूर्ण कार्य ‘श्री राम सेवक पर्वतीय कला मंच’ द्वारा निभा कर अंचल की पारंपरिक रामलीला को एक नया आयाम देने का प्रभावशाली प्रयास किया गया जो अति प्रशंसनीय है।

 

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