सुप्रसिद्ध कथाकार, संस्थापक-संपादक ‘अलकनंदा’ स्व.स्वरूप ढोंडियाल की 85वी जयंती सम्पन्न
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध साहित्यकारो, पत्रकारो व समाज सेवियों की उपस्थिति मे मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ संस्थापक-संपादक स्व.स्वरूप ढोंडियाल की 85वी जयंती आईटीओ स्थित गांधी शान्ति प्रतिष्ठान मे 4 अक्टूबर की सांय अलकनंदा परिवार द्वारा आयोजित की गई।
पूर्व तटरक्षक महानिदेशक राजेंद्र सिंह, सु-विख्यात साहित्यकार डॉ गंगा प्रसाद विमल, हिंदी कथा साहित्य रचनाकार पंकज बिष्ट, वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार नेगी, साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त मंगलेश डबराल, पूर्व हिंदी अकादमी सचिव दिल्ली सरकार डॉ हरिसुमन बिष्ट, उद्योगपति-समाजसेवी के सी पांडे, पूर्व अधिकारी भारत सरकार महेश चंद्र को अलकनंदा परिवार की ओर से पुष्प गुच्छ भेट कर मंचासीन किया गया।
इस अवसर पर यशोदा रावत, सुरेश जखमोला, डी पी जोशी, सतीश नोटियाल व प्रभा थपलियाल का भी पुष्प गुच्छ भेट कर सम्मान किया गया। मंचासीन अतिथियो द्वारा दीप प्रज्वलन की रश्म व स्व.स्वरूप ढोंडियाल के चित्र पर पुष्प अर्पण के साथ जयंती कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
अलकनंदा पत्रिका संपादक विनोद ढोंडियाल ने आमंत्रित अतिथियो व सभागार मे बैठे प्रबुद्ध जनो का आयोजन मे पधारने पर अभिनन्दन कर आभार व्यक्त किया। स्व.स्वरूप ढोंडियाल की 85वी जयन्ती पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर स्व.स्वरूप ढोंडियाल (27/09/1935-15/07/2002) के व्यक्तित्व पर केंद्रित, स्मृति स्वरूप, जन सरोकारों को समर्पित ‘अलकनंदा’ पत्रिका के माह सितम्बर-अक्टूबर 2019 के अंक तथा सु-विख्यात हिंदी साहित्यकार बल्लभ डोभाल द्वारा 1954 मे रचित काव्य खंड, ‘सैनिक संवाद’ पुस्तक का लोकार्पण प्रबुद्ध मंचासीन अतिथियो के कर कमलो द्वारा सम्पन्न हुआ।
मंचासीन प्रबुद्ध ज्ञानी अतिथियो के साथ-साथ अलकनंदा व्यूरो प्रमुख राकेश धस्माना, पंकज नवानी तथा साहित्यकार ज्योतिसंग व ललित प्रसाद ढोंडियाल ने स्व.स्वरूप ढोंडियाल को श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके जीवन और कृतित्व पर सारगर्भित विचार रख अवगत कराया, स्व.स्वरूप ढोंडियाल ताउम्र एक संवेदनशील कहानीकार के साथ-साथ जनसरोकारों से जुड़े एक प्रतिबद्ध पत्रकार व समाज सेवी के नाते समाज मे अपनी जो अमिट गहरी छाप छोड़ कर गए हैं, वह आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी है।
अपने संस्मरणों मे वक्ताओ ने कहा, सन 1972 मे स्व.स्वरूप ढोंडियाल द्वारा दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ के प्रकाशन के साथ-साथ ‘दिल्ली एक मिनी उत्तराखंड’ व ‘शिखर के स्वर, सागर के तट’ का प्रकाशन किया गया।
उत्तराखंड के प्रवासी जनो को दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों मे सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्र मे संवाद बनाने व उन्हे एक जुट कर एक माला मे पिरो कर एक दिशा देने का जो कार्य स्व.ढोंडियाल ने किया वह भविष्य की पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई रहा। वक्ताओं ने कहा यह कार्य उन्होंने धूल-मिट्टी मे पैदल चलकर, संघर्ष कर, निःस्वार्थ भाव से किया, जिससे उत्तराखंड के प्रवासी व भविष्य मे आने वाली पीढ़ी अन्यत्र के भेद-भावो को भूल एक सूत्र मे बंधी रह सके।
वक्ताओं ने कहा, स्व.स्वरूप ढोंडियाल ने सरकारी नोकरी छोड़ मानवीय गुणों को आधार बना कर सराहनीय व प्रेरणा दायक कार्य किया। साहित्य लेखन व जनसरोकारों के क्षेत्र मे पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी से जोड़ने की उनकी उत्कृष्ट व नायाब सोच रही। ऐसे पुण्य व्यक्तित्व को याद करना एक चेतना को याद करना है, संघर्ष को याद करना है।
सन 1972 से प्रकाशित ‘अलकनंदा’ मासिक पत्रिका जो उत्तराखंड के साहित्य, संगीत, कला, भाषा व समसामयिक जनसरोकारो से जुड़े विषय समाहित कर बेबाक रुप से विगत 46 वर्षो से दिल्ली प्रवास मे उनके संपादक पुत्र विनोद ढोंडियाल के अथक प्रयास द्वारा अपने पिता के आदर्शों व मूल्यों पर चल कर, अनेको जटिल समस्याओं व संघर्षो को झेलकर, जनसरोकारों को प्रमुखता देकर प्रकाशित की जा रही है, सराहा गया। वक्ताओं ने दिल्ली प्रवास मे अनेको प्रकार के संघर्ष व प्रयास कर निरंतर प्रकाशित हो रही ‘अलकनंदा’ पत्रिका को उत्तराखंड की प्रमुख पत्रिका का दर्जा दिया।
वक्ताओं ने कहा, पत्रिका मे प्रकाशित सामग्री से उन्हे प्रवास मे अपनी मध्य हिमालय की प्रकृति व पहाड़ो मे निवासरत जनजीवन के सुख-दुःखो का पता चलता है। अपनी जड़ों से रूबरू होने का अवसर मिलता है।
अलकनंदा पत्रिका संपादकीय परामर्श मंडल के महेश चंद्र द्वारा सभी सम्मानित अतिथियो व सभागार मे बैठे प्रबुद्ध जनो का आयोजन मे आने हेतु आभार व्यक्त करने के साथ ही आयोजित जयंती कार्यक्रम का समापन हुआ।
मंच संचालन अलकनंदा पत्रिका सम्पादकीय सलाहकार सुषमा जुगरान ध्यानी तथा डॉ रजनी खंतुवाल पन्त द्वारा बखूबी किया गया।