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जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य का अंतिम संस्कार हरिद्वार में किया जायेगा

वैष्णव रामानंद संप्रदाय के जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य का हरिद्वार से करीब 40 वर्ष पुराना नाता था। वह मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले के दुजाना गांव निवासी थे। उन्होंने 14 वर्ष की आयु में घर संसार छोड़ कर वैराग्य धारण कर लिया था और अपने गुरु पूरण जी महाराज के पास ऋषिकेश मनीराम जगन्नाथ धाम आश्रम में चले आए थे। वहां से हरिद्वार आए और बड़ा अखाड़ा उदासीन के महामंडलेश्वर बने, तब उन्हें महामंडलेश्वर हंसदास जी महाराज के नाम से जाना जाता था। 2010 हरिद्वार कुंभ में उन्हें रामानंदाचार्य की उपाधि दी गई तब से वह इस संप्रदाय के सबसे बड़े गुरु के तौर पर पदस्थापित रहे और समाज को अपनी सेवाएं देते रहे। उन्होंने पूरे भारत में संत समाज की एकता पर भी काम किया और करीब 127 धार्मिक संप्रदायों को एक मंच पर लेकर आए और अखिल भारतीय संत समिति का संचालन किया। स्वामी हंस देवाचार्य गौ, गंगा और गायत्री की सेवा में जीवन पर्यंत बने रहे और पूरे राष्ट्र में इसको लेकर उन्होंने अलख जगाई। हालिया संपन्न प्रयागराज कुंभ में हुई धर्म संसद के भी वह अगुआ रहे। पिछले वर्ष दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अखिल भारतीय संत समिति के बड़े सम्मेलन धर्मादेश के आयोजन के प्रणेता भी रहे।
स्वामी हंस देवाचार्य की जितनी पकड़ संत समाज पर थी उतनी पकड़ उनकी भारतीय राजनीति और सरकार पर भी थी। यही वजह थी कि बड़े धार्मिक आंदोलनों और कार्यक्रमों को लेकर सरकार हमेशा उनके संपर्क में रही और उनसे लगातार सलाह मशवरा करती रही। प्रयागराज कुंभ में भी राम मंदिर आंदोलन को लेकर होने वाली बैठकों और कार्यक्रमों को लेकर संत समाज और सरकार के बीच की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी वही बने रहे। हरिद्वार में भारत माता मंदिर के संस्थापक निवृत्तमान शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी और महामंडलेश्वर सीता शरण दास जी ने पिछले वर्ष दिसंबर में राम मंदिर निर्माण को लेकर जब देह त्याग की घोषणा की तब भी वे मामले को संभालने आगे आए और दोनों संतों से मिलकर अपने इस हठ को वापस लेने का सफल आग्रह भी किया। जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी हंस देवाचार्य अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के पक्षधर थे और चाहते थे कि वहां पर जल्द से जल्द राम मंदिर निर्माण हो, पर इसके लिए वह देश के सांप्रदायिक सद्भाव से कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। यही वजह थी कि वह इस मामले को लेकर हर आंदोलन के अगुआ तो रहे पर उन्होंने कभी भी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे देश का माहौल बिगड़े। समाज सेवा में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा तमाम स्कूलों , चिकित्सालयों और संस्कृत पाठशालाओं को तो वह अपना योगदान देते थे साथ ही वह चिकित्सालय का निर्माण भी करा रहे थे। उनका जन्म 1967 में हरियाणा के झज्जर जिले के एक गांव दुजाना में हुआ था, उनकी माता का नाम तारा देवी और पिता का नाम सूरजभान था। उन्होंने हाई स्कूल तक अपनी नियमित पढ़ाई की थी, इसके बाद पढ़ाई और घर छोड़कर धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में चले आए थे और संन्यास ग्रहण कर लिया था। स्वामी हंस देवाचार्य ने स्वामी पूरण दास जी महाराज से दीक्षा ग्रहण की थी और उन्हें अपना गुरु माना था। संत जगत में उनके निधन से बड़ी क्षति हुई है। हरिद्वार के संतों ने इसे संत समाज समाज सेवा और राष्ट्र की अपूरणीय क्षति बताया है। उनके निजी सचिव ने बताया कि स्वामी हंस देवाचार्य का अंतिम संस्कार हरिद्वार के खड़खड़ी श्मशान घाट पर होगा। फिलहाल उनका पार्थिव शरीर लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में पोस्टमार्टम के लिए हैं, जहां से उसे वायु मार्ग से हरिद्वार लाया जाएगा।

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