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सी एम पपनैं
नई दिल्ली। सु-विख्यात पर्यावरण विद स्व. सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से संग्रामी श्रीदेव सुमन के जन्मदिवस के पावन अवसर पर वर्ष 1974 से निरंतर प्रति दस वर्षो बाद सुप्रसिद्ध ‘अस्कोट-आराकोट यात्रा’ अभियान के पचास वर्ष पूर्ण होने पर पहली बार उक्त यात्रा अभियान पर डॉ. कमल कर्नाटक द्वारा रचित व डॉ. पुष्पा तिवारी बग्गा द्वारा संगीत बद्ध तथा ममता कर्नाटक द्वारा निर्देशित नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’ का प्रभावशाली मंचन ‘पहाड़’ फाउंडेशन के सौजन्य से 15 दिसंबर की सायं मंडी हाउस स्थित कमानी सभागार में मंचित किया गया। 
मंचित नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’ कोई सामान्य रंगमंचीय प्रस्तुति के तौर पर नहीं हिमालय की स्मृति और भविष्य के बीच बुना गया एक जीवंत सफरनामा के तहत एक बहुउद्देश्य परख सोच को लेकर मंचित किए गए नाटक के रूप में याद करने योग्य कहा जा सकता है। जो विगत छह दशकों में निरंतर की गई यात्रा अभियान की भावना के साथ-साथ अंचल के गांव, ग्रामीणजन का सरल जीवन, कठिन परिस्थितियां, ग्रामीणजन का आपसी सहयोग व संवेदनशीलता को मंच पर दर्शकों के मध्य बड़ी खूबी से उतारता नजर आया। 
‘यात्राओं की यात्रा’ का मंचन एक सशक्त और विचारोत्तेजक नाटक के रूप में जन गीत व आंचलिक लोक संगीत को पिरो कर प्रभावशाली अंदाज में मंचित किया गया। नाटक का कथासार उक्त ऐतिहासिक यात्रा अभियान के प्रारंभिक चरण वर्ष 1974 से वर्ष 2024 तक प्रति दस वर्ष बाद निरंतर आयोजित की गई छह यात्रा अभियानों से जुड़ी गाथा पर आधारित रहा। ऐतिहासिक यात्रा अभियान की पृष्ठभूमि में पहाड़ के सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संघर्षों को मंच पर जीवंत करता नजर आया। मंचित नाटक को अंचल के ग्रामीण लोगों के विचारों, मूल्यों और जनचेतना की उस लंबी यात्रा का प्रतीक स्वरूप माना जा सकता है जिसमें आम लोगों को अपने अधिकारों, प्रकृति और भविष्य के प्रति जागरूक करने का कार्य किया गया है। 
मंचित नाटक में यात्रा अभियान दल यात्रियों के अनुभव, संवाद और घटनाए दर्शकों को उस दौर की याद दिलाती नजर आती हैं जब आयोजित यात्राएं स्वयं एक आंदोलन बन जाती थी। ग्रामीण जन से मिलना, संवाद करना, उनके दुख दर्द और आत्मीयता को जानना इत्यादि इत्यादि को बड़ी खूबी से नाटक में पिरो कर प्रेमभाव का प्रभावी संदेश मंचित नाटक के माध्यम से देने का प्रयास किया गया है। 
मध्य हिमालय भारत, नेपाल के सीमांत गांव पांगू व अस्कोट से उत्तराखंड तथा हिमाचल के सीमांत गांव आराकोट तक की करीब 1150 किलोमीटर तक की पैदल ‘पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा’ के असल मायने और यात्रा अभियान के महत्व को उजागर करने हेतु सफलता पूर्वक मंचित किए गए उक्त नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’ में दिल्ली के रंगमंच से जुड़े करीब साठ कलाकारों द्वारा प्रतिभाग किया गया। 
यात्राओं की यात्रा के मंचन को देखने हेतु पहाड़ संस्था संस्थापक व प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक तथा मंचित नाटक के मुख्य यात्री रहे पद्मश्री डॉ.शेखर पाठक के साथ उक्त यात्राओ से जुड़े रहे गोबिंद पंत राजू, चंदन डांगी, डॉ. कमल कर्नाटक, प्रकाश उपाध्याय, भगवत सिंह नेगी, सुषमा नैथानी, अलका कौशिक, माया चिलवाल, मन मोहन चिलवाल, हर्ष काफ़र, जयदीप सिंह रावत, नीलेश, गौरव वशिष्ठ, अंकिता ओझा, गायत्री बेरी, प्रकृति मुखर्जी, प्रेम बहुखंडी, पुष्पा डांगी, उमेश पंत, अरुण फुलारा, करन थपलियाल, विकल्प पांडे, सिधार्थ शुक्ला, नीलांश मित्रा, जितेन्द्र भट्ट इत्यादि इत्यादि द्वारा भी स्वयं कमानी सभागार में उपस्थित होकर कलाकारों का हौसला अफजाई की गई। मंचित किए गए नाटक रचयिता डॉ. कमल कर्नाटक, संयोजक चंदन डांगी व हर्ष काफ़र द्वारा नाटक में यात्री के तौर पर प्रतिभाग भी किया गया।
प्रोफेसर शेखर पाठक द्वारा नाटक समाप्ति पर खचाखच भरे सभागार में उपस्थित श्रोताओं और कलाकारों को आयोजित यात्राओं के यादगार संस्मरण सुना कर यात्रा अभियान के महत्व और दूरगामी निष्कर्षों पर प्रकाश डाला। अवगत कराया गया, बिना पैसा खर्च किए उक्त पैंतालीस दिनों की पैदल यात्रा में ग्रामीण जन द्वारा जो प्रेमभाव, सहयोग व आदर दिया जाता रहा, प्रेरणादाई रहा है जो आजीवन याद रहेगा। अवगत कराया गया, देश-विदेश के अनेकों प्रबुद्ध जनों, शोधरत छात्रों व उत्साही जनों के सानिध्य में हिमालय की जड़ों को समझने की ठोस पहल हेतु किया जाता रहा उक्त यात्रा अभियान जन के सहयोग से आगे भी निरंतर जारी रहेगा। 
मंचित नाटक के दृश्यों के बावत प्रोफेसर शेखर पाठक द्वारा कहा गया, यात्रा जहां जहां से गुजरती जा रही थी मुझे उन ग्रामीण क्षेत्रों की दर्शक दीर्घा में बैठ उनकी याद आ रही थी। कहा गया, सभागार में इस यात्रा अभियान को आज सैकड़ों लोगों द्वारा देखा गया, की गई छह यात्राओं को हजारों लोगों ने देखा। शेखर पाठक ने कहा, वर्ष 2024 की यात्रा में महिलाओं की बड़ी भागीदारी रही। पांच महिलाओं द्वारा पैंतालीस दिन की यात्रा पूरी की गई। कहा गया, आज मंचित नाटक को भी महिलाओं ने निर्देशित किया है, संगीत दिया है और लाइटिंग का जिम्मा निभाया है जो सुकून देता नजर आता है। सफल मंचन पर शेखर पाठक द्वारा सभी कलाकारों को बधाई दी गई। 
शेखर पाठक द्वारा अवगत कराया गया, उत्तराखंड पर्वतीय अंचल के पूर्वी कोने पर नेपाल सीमा पर स्थित पांगू, जिला पिथौरागढ़ से पांगू-अस्कोट-आराकोट यात्रा अभियान अनेक टोलियों में अनेक मार्गो से यात्रा करते हुए सम्पन्न होती आइ है। आयोजित यात्रा अभियानों की अलग-अलग थीम रखी जाती रही है। वर्ष 2024 में आयोजित यात्रा अभियान की थीम ‘स्त्रोत से संगम’ रखी गई थी ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई और समग्र जलागम के संदर्भ में समझा जा सके।
45 दिन की महत्वपूर्ण यात्रा में अभियान दल के सदस्य कुमाऊं , गढ़वाल और जौनसार के सैकड़ों गांवों से होते हुए गुजरते है। अंचल की दर्जनों नदियों, बुग्यालों-दर्रो, खरको, भूकंप और भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों और अनेक घाटियों, उजड़ी चट्टियों, चिपको आंदोलन क्षेत्रों, जनजातीय क्षेत्रों, अनेकों तीर्थ यात्रा मार्गों तथा भारत-तिब्बत मार्गों से गुजरने वाली यह यात्रा लगभग 1150 किलोमीटर की होती है।
अवगत कराया गया, संयोग से आयोजित यात्रा के पहले अभियान वर्ष 1974 में अंचल में ‘चिपको आंदोलन’ का जन्म हुआ था। उसके बाद प्रति दस वर्षो के अंतराल में आयोजित की गई अस्कोट-आराकोट यात्रा वर्ष में ही संयोग से 1984 में ‘नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन’, 1994 में ‘उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन’ के साथ ही हैवल नदी घाटी में ‘बीज बचाओ आंदोलन’ इत्यादि इत्यादि चले थे।
मंचित नाटक में अस्कोट आराकोट यात्रा अभियान यात्रियों द्वारा समय-समय पर जारी रहेगा जारी रहेगा अस्कोट आराकोट यात्रा अभियान जारी रहेगा नारे का उद्बोधन किया जाता रहा। मंचित नाटक में पिरोए गए जन गीतों व लोकगीतों में प्रमुख रहे –
1- अपने गांवों को पहचानो, अपने लोगों को पहचानो अपनी माटी… इस धरती की कसम यह तानाबाना बदलेगा…।
2- लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथा…. फिर भोल उज्ज्याल होलो…।
3- ये मसाले चल पड़ी हैं, लोग मेरे गांव के…।
4- … ओहो खेती बचाओ, डाई बोटू कै, झन जलाया हांग…।
5- तू जिंदा है… जिंदगी की जीत पर….।
6- होय होय स्वर्गीतारस, जुनाली राता….
7- ऊंचा हिमालय का मोल… जागो रे जागो रे…।
8- पारा का भिड़ा को…
9- …मेरी मातृ भूमि, पितृ भूमि तेरी जै जै कारा मय्यर हिमाला…।
इत्यादि इत्यादि।
मंचित नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’ में सूत्रधार के रूप में कमल कर्नाटक, शिखर नाम के यात्री रूप में अजय सिंह बिष्ट, राजू यात्री की भूमिका में दीपक राणा, विमल यात्री के रूप में महेंद्र सिंह लटवाल, यात्री कवि के रूप में हर्ष काफ़र, महिला यात्रियों में पुष्पा भट्ट, अंजू पुरोहित तथा वैभवी नेगी, ग्रामीण महिलाओं में पूनम तोमर, लक्ष्मी रौतेला महतो, तूलिका बिष्ट, शोभा नेगी व विजय लक्ष्मी वेदवाल तथा अन्य पात्रों की भूमिका में हेम पंत, अखिलेश भट्ट, वेदांत कर्नाटक, बीरेंद्र सिंह कैटा, के एन पांडे ‘खिमदा’ भगत सिंह नेगी, भुवन रावत, सी आर सुरेश, नवीन त्रिपाठी, हरीश रावत इत्यादि इत्यादि द्वारा निभाई गई भूमिका व व्यक्त संवादों ने श्रोताओं को प्रभावित किया, मंचित नाटक को सफल बनाया।
डॉ. पुष्पा तिवारी बग्गा का संगीत नाटक के अनुकूल व प्रभावी था। नाटक निर्देशन, सैट व दृश्य बदलाव, लाइटिंग तथा साउंड व्यवस्था में आंशिक कमियां दृष्टिगत थी। नाटक की अवधि स्क्रिप्ट एडिट कर घटाए जाने की जरूरत है।
‘पहाड़’ फाउंडेशन द्वारा अस्कोट आराकोट यात्रा अभियान पर रचित नाटक ‘यात्राओं की यात्रा’ का मंचन देखने पत्रकारों, साहित्यकारों, रंगमंच व उद्योग जगत से जुड़े लोगों, लखनऊ, मुंबई तथा उत्तराखंड के विभिन्न शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों से ‘पहाड़’ फाउंडेशन से जुड़े प्रबुद्ध जनों की बड़ी संख्या में उपस्थित देखी गई।
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