मातृभूमि के लिए कुछ करने की छटपटाहट ने बना दिया सफल राजनेता
सीताराम बहुगुणा श्रीनगर।उम्मीद के अनुरूप कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को श्रीनगर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है। इस क्षेत्र से वे लगातार पांचवीं बार चुनाव मैदान में हैं। जिसमें से 2002 और 2012 में उन्हें जीत हासिल हुई। वहीं 2007 एवं 2017 में उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा।
गणेश गोदियाल का जन्म पौड़ी जनपद के थलीसैंण प्रखंड के बहेड़ी गांव में एक साधारण परिवार में हुआ। एक आम उत्तराखंडी की तरह उनका बाल्यकाल भी तमाम अभावों से जूझते हुए बीता। युवा होते ही वे रोजगार की तलाश में अपने किसी रिश्तेदार के साथ मायानगरी मुम्बई चले गए। और वहां एक व्यवसायी के रूप में सफल भी हुए। युवा गणेश रहता भले ही मुंबई में था लेकिन उसका मन हमेशा ही अपनी मातृभूमि पर लगा रहता था। मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने की छटपटाहट उसे हमेशा ही बेचैन रखती थी। इसी छटपटाहट के बीच आखिरकार युवा गणेश एक दिन मुम्बई से अपनी जड़ों की ओर वापस लौट गया।
उस दौर में राठ क्षेत्र के ज्यादातर युवाओं को बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ती थी। क्योंकि तब क्षेत्र में कोई डिग्री कॉलेज नहीं था। आर्थिक रूप से सम्पन्न घरों के छात्र छात्राएं ही उच्च शिक्षा के लिए पौड़ी श्रीनगर जा पाते थे। यहां के छात्रों की इस समस्या ने जैसे मुंबई से लौटे युवा गणेश को जीवन का मकसद दे दिया। कुछ प्रवासियों की सहायता से वे राठ क्षेत्र के पैठाणी में एक निजी डिग्री कॉलेज की स्थापना में जुट गए। लगभग इन्हीं दिनों उत्तराखंड राज्य का भी गठन हुआ था। अविभाजित उत्तर प्रदेश में राठ क्षेत्र कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता था। भाजपा के डॉ रमेश पोखरियाल निशंक से लगातार तीन चुनाव हारने के बाद कांग्रेसी दिग्गज डॉ शिवानंद नौटियाल का करिश्मा क्षेत्र में फीका पड़ गया था। उत्तराखंड विधानसभा के पहले चुनाव 2002 में थलीसैंण विधानसभा से निशंक को टक्कर देने के लिए कांग्रेस पार्टी किसी करिश्माई युवा की तलाश कर रही थी। पार्टी के तब के वरिष्ठ नेता सतपाल महाराज को युवा गणेश गोदियाल में निशंक को टक्कर देने की क्षमता दिखी। महाराज की सिफारिश पर कांग्रेस पार्टी ने डॉ शिवानंद नौटियाल के स्थान गणेश गोदियाल को निशंक के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा। तब तमाम राजनीतिक पंडित ये मान रहे थे कि कांग्रेस पार्टी ने गणेश गोदियाल को टिकट देकर निशंक को वाकओवर दे दिया है। लेकिन चुनाव परिणामों ने सबको चौंका दिया। गणेश गोदियाल अप्रत्याशित रूप एक हजार वोटों से निशंक को हराने में सफल रहे।
2007 में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को गोदियाल से चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था। गणेश गोदियाल की चुनौती इतनी कड़ी थी कि बीजेपी के स्टार प्रचारक होने के बावजूद निशंक श्रीनगर विधानसभा से बाहर प्रचार के लिए नहीं निकल पाए थे। इन चुनावों में बमुश्किल दो हजार से भी कम मतों से निशंक विजयी हो पाए थे। गोदियाल से मिल रही कड़ी चुनौती को देखते हुए निशंक 2012 में श्रीनगर का रण छोड़कर डोईवाला चले गए।
2012 के चुनावों में गणेश गोदियाल ने डॉ धन सिंह रावत को बड़ी आसानी से पराजित किया।
गणेश गोदियाल ने अपने बड़े नेता होने का परिचय एक बार फिर 2016 में दिया जब बड़ी से संख्या में कांग्रेस विधायक बीजेपी के पाले में चले गए। अपने राजनीतिक गुरु सतपाल महाराज के बीजेपी में शामिल होने के भारी दबाव के बावजूद उन्होंने अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए कांग्रेस पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। 2017 की मोदी लहर में वे भले ही विधानसभा चुनाव हार गए हों बावजूद इसके वे लगभग 22 हजार वोट लाने में सफल रहे।
बतौर विधायक बिजली, सड़क, पानी जैसे सामान्य विकास के काम तो उन्होंने करे ही हैं, लेकिन अपने क्षेत्र के लिए उनके दो काम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। पहला राठ क्षेत्र को ओबीसी का दर्जा दिलवाना जिससे राठ क्षेत्र के बच्चों सरकारी नौकरियों एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हुआ। दूसरा राठ महाविद्यालय की स्थापना, जिससे राठ जैसे पिछड़े क्षेत्र में उच्च शिक्षा के द्वार खुले हैं। फलस्वरूप आज राठ विकास की मुख्य धारा में शामिल है। इन दो महत्वपूर्ण कामों करवाने के लिए वे लंबे समय तक याद किए जाएंगे।
गणेश गोदियाल को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का जिम्मा बहुत ही मुश्किल दौर में मिला। जब देश ही नहीं प्रदेश में भी वह अब तक की सबसे कमजोर स्थिति में थी। अपनी नेतृत्व क्षमता से गणेश गोदियाल कम ही समय मे प्रदेश कांग्रेस में एक नई जान फूकने में सफल हुए हैं। उनके सरल व्यवहार से प्रभावित होकर पिछले कुछ समय मे लोग बड़ी संख्या में कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं।
यदि 2022 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी जीतती है तो नई सरकार में गणेश गोदियाल की भूमिका काफी अहम होने वाली है।