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सुप्रसिद्ध कथाकार, संस्थापक-संपादक ‘अलकनंदा’ स्व.स्वरूप ढोंडियाल की स्मृति में कहानी संग्रह का विमोचन व संवाद

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। आजादी के अमृत महोत्सव पर सुप्रसिद्ध कहानीकार, पत्रकार, नाट्य लेखक व निर्देशक, समाजसेवी तथा मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ संस्थापक-संपादक स्व.स्वरूप ढोंडियाल की स्मृति में आईटीओ स्थित गांधी शान्ति प्रतिष्ठान मे 22 अक्टूबर की सांय अलकनंदा परिवार द्वारा सु-प्रसिद्ध समाज सेवी के सी पांडे की अध्यक्षता व सु-विख्यात साहित्यकार पंकज बिष्ट, प्रेस क्लब अध्यक्ष उमाकांत लखेडा, पूर्व तटरक्षक महानिदेशक व वर्तमान मे आपदा प्रबंधन सदस्य भारत सरकार राजेन्द्र सिंह,

आयकर आयुक्त उमाशंकर ध्यानी, दिल्ली विश्व विद्यालय प्रोफेसर (डाॅ) हरेन्द्र असवाल, सेवानिर्वत उच्च अधिकारी भारत सरकार महेश चन्द्रा मंचासीनो के सानिध्य, अलकनंदा पत्रिका मुख्य संपादक विनोद ढोंडियाल तथा सभागार में बडी संख्या मे साहित्यकारों, पत्रकारों व समाजसेवियो की उपस्थिति में, स्व.स्वरूप ढोंडियाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर संवाद एव उनके कहानी संग्रह ‘मैं क्यों नहीं’ के दूसरे संस्करण का विमोचन किया गया।

आयोजित आयोजन का श्रीगणेश स्व.स्वरूप ढोंडियाल के चित्र पर पुष्प अर्पित कर व अलकनंदा परिवार की ओर से सभी मंचासीनो को पुष्पगुच्छ भैट कर तथा मंच संचालक व अलकनंदा सलाहकार संपादक सुषमा जुगरान ध्यानी द्वारा मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ संस्थापक-संपादक स्व.स्वरूप ढोंडियाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर किया गया।

स्मृति समारोह के इस अवसर पर प्रबुद्ध मंचासीनो द्वारा स्व.स्वरूप ढोंडियाल के 1990 मे प्रकाशित कहानी संग्रह ‘मैं क्यों नहीं’ के दूसरे संस्करण का विमोचन कर रचनाकार द्वारा रचे अन्य साहित्य व रचित कहानियो के साथ-साथ 49 वर्षो से निरंतर प्रकाशित मासिक ‘अलकनंदा’ पत्रिका की खासियत व खूबियो तथा प्रकाशन संघर्ष व चुनोतियों पर प्रकाश डाला गया।

मुख्य वक्ताओ उमाकांत लखेडा, उमाशंकर ध्यानी, पंकज बिष्ट, राजेन्द्र सिंह, प्रोफेसर (डाॅ) हरेन्द्र असवाल द्वारा स्व.स्वरूप ढोंडियाल को श्रद्धासुमन अर्पित कर व्यक्त किया गया, स्व. स्वरुप जी ने अपने जीवन काल में कभी हार नहीं मानी। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ मानवीय गुणों को आधार बना कर सराहनीय व प्रेरणा दायक कार्य किया। साहित्य लेखन व जनसरोकारों के क्षेत्र मे पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी से जोड़ने की उनकी उत्कृष्ट व नायाब सोच रही। ऐसे पुण्य व्यक्तित्व को याद करना एक चेतना को याद करना है, संघर्ष को याद करना है।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, उनकी रचनाऐ व साहित्य तथा साहित्य में पिरोया गया व्यंग आज भी सार्थक हैं, पाठकों के मध्य जिंदा है। उनके साहित्य का पठन-पाठन कर लगता है, यह सब तो वर्तमान मे घटित हो रहा है। किसी भी कालखंड मे उनकी रचनाओ व रचित तीन सौ कहानियो को पढ़ा जा सकता है जो तत्कालीन तथा वर्तमान परिस्थितियों के भी अनुकूल हैं। कहानियो मे मार्मिक वर्णन है, उनमे गहराई छुपी हुई है। पहाडी अंचल जनमानस के अभाव ग्रस्त जीवन का कहानियो मे मार्मिक वर्णन है।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, बेरोजगारी पर लिखी उनकी कहानी को कोंन भूल सकता है। हिंदी भाषियों के लिए लिखी उनकी कहानिया महत्वपूर्ण हैं। उन्हे तीन पीढ़ियों का ज्ञान था। उनकी रचनाओ मे मानवीय चिंतन के दर्शन होते हैं। जिनका सार उनको बल्लभ डोभाल, शैलेश मटियानी के साथ-साथ तत्कालीन देश के बडे रचनाकारो की पांत मे खड़ा करता है।

अपने संस्मरणों मे वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, सन 1972 मे स्व.स्वरूप ढोंडियाल द्वारा दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ के प्रकाशन के साथ-साथ ‘दिल्ली एक मिनी उत्तराखंड’ व ‘शिखर के स्वर, सागर के तट’ का प्रकाशन किया गया। उत्तराखंड के प्रवासी जनो को दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों मे सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्र मे संवाद बनाने व उन्हे एक जुट कर एक माला मे पिरो कर एक दिशा देने का जो कार्य स्व.ढोंडियाल ने किया वह भविष्य की पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई रहा। वक्ताओं ने कहा, यह कार्य उन्होंने धूल-मिट्टी मे पैदल चलकर, संघर्ष कर, निःस्वार्थ भाव से किया, जिससे उत्तराखंड के प्रवासी व भविष्य मे आने वाली पीढ़ी अन्यत्र के भेद-भावो को भूल एक सूत्र मे बंधी रह सके।

व्यक्त किया गया, स्व.स्वरूप ढोंडियाल ताउम्र एक संवेदनशील कहानीकार के साथ-साथ जनसरोकारों से जुड़े एक प्रतिबद्ध पत्रकार व समाज सेवी के नाते समाज मे अपनी जो अमिट गहरी छाप छोड़ कर गए हैं, वह आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी है।

आयोजन के इस अवसर पर आयोजक अलकनंदा पत्रिका परिवार की ओर से सभी मंचासीन अतिथियों के साथ-साथ समाजसेवी क्रमश: रवीन्द्र, गिरीश मैठाणी, बृजमोहन बहुगुणा, पुलिस अधिकारी यशोदा रावत तथा एसीपी राकेश रावत, गढ़वाल महासभा पूर्व महासचिव पवन मैठाणी के साथ-साथ वरिष्ठ पत्रकार क्रमश: चंद्र मोहन पपनैं, सुनील नेगी, व्योमेश जुगराण, चारु तिवारी तथा कमल चौरसिया को स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।

आयोजित कार्यक्रम अध्यक्षता कर रहे उत्तराखंड के प्रमुख प्रवासी समाजसेवी के सी पांडे द्वारा अध्यक्षीय संबोधन में व्यक्त किया गया, सन 1972 से प्रकाशित ‘अलकनंदा’ मासिक पत्रिका जो उत्तराखंड के साहित्य, संगीत, कला, भाषा व समसामयिक जनसरोकारो से जुड़े विषय समाहित कर बेबाक रुप से विगत 49 वर्षो से दिल्ली प्रवास मे उनके संपादक पुत्र विनोद ढोंडियाल के अथक प्रयास द्वारा अपने पिता के आदर्शों व मूल्यों पर चल कर, अनेको जटिल समस्याओं व संघर्षो को झेलकर, जनसरोकारों को प्रमुखता देकर प्रकाशित की जा रही है, अति सराहनीय है। पत्रिका मे प्रकाशित सामग्री से उन्हे प्रवास मे अपनी मध्य हिमालय की प्रकृति व पहाड़ो मे निवासरत जनजीवन के सुख-दुःखो का पता चलता है। अपनी जड़ों से रूबरू होने का अवसर मिलता है। दिल्ली प्रवास मे अनेको प्रकार के संघर्ष व प्रयास कर निरंतर प्रकाशित हो रही उत्तराखंड की प्रमुख ‘अलकनंदा’ पत्रिका को सहयोग देने व सहयोग जुटाने का के सी पांडे द्वारा आहवान कर व्यक्त किया गया, पत्रिका का पचासवा स्थापना दिवस बडे स्तर व विशेष तौर से मनाया जायेगा। आयोजन हेतु हर सम्भव मदद जुटाई जायेगी।

अलकनंदा पत्रिका संपादकीय सलाहकार सुषमा जुगराण ध्यानी द्वारा विख्यात कवि गोपाल दास नीरज की कविता-

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना…।

का वाचन व दीपावली की शुभकामना प्रेषित कर तथा परामर्श मंडल सदस्य महेश चंद्रा द्वारा सभी सम्मानित अतिथियो व सभागार मे बैठे प्रबुद्ध जनो का आयोजन मे आने हेतु आभार व्यक्त करने के साथ ही आयोजित कार्यक्रम का समापन हुआ।
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